SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२३ ) .०१२ योग आस्रव और लेश्या भावलेश्या कृष्णादिक तीन, छद्रव्य मांहि जीष । नषतत्व मांहि जीव अरु आस्रव, जोग आस्रव कहीब ॥४॥ -झीणीचर्चा ढाल १ मिथ्यात अव्रत प्रमाद कषाय, एचिवं लेश्या नांहि । जोग आस्रण पिण अशुभ जोगामें, अशुभलेश्या तीनों आय ॥ ५ ॥ .०१३ योग और प्रमाद आस्रव छठे गुणठाणे प्रमाद कह्यो छ, ते किणहीक वेल्यां आवतो जाणो। विषय कषाय अशुभ जोग आयां, तिण में मूढमती करै उलटी ताण ॥ ३७ ॥ इहां पिण प्रमाद ते अशुभ जोग आश्री छै, ते अशुभ जोग किणहीक वेल्वां आवे छ। किणहीक बेल्यां शुभयोग आवै छ, अने प्रमाद आस्रष नीथीत घणी कही छै॥ - झीणीचर्चा ढाल २२-आचार्य जय .०१४ योग और लेश्या तीन जोगां में किसो जोग है, सुणिये तेहनो न्याय । मन पचन कायारा जोगत्रिवं सलेशी कया जिणराय ॥ ६ ॥ उत्तराध्ययन अध्ययन चोंतीश में, त्रिहूँ जोगां री अगुपत । किसन लेश्यानां लक्षण कहिये, श्रीजिन बयण सुसत्य ॥ ७॥ जिहां सलेशी तिहां सजोगी, जोग तिहां कहीलेश । जोगलेश्या में कांइ फरक छ, जांण रहा जिरेनश ॥ ८॥ -मीणीचर्चा ढाल १ .०१५ जोग और प्रमाद आस्रव निरंतरे, दसर्मा लग निरंतर कषाय । निरंतर पाप लागे तेहने, तीनूं जोगा स्यूँ जुदो कहाय ।। ४५॥ -झीणीचर्चा दाल २२ .०१६ योग और निर्जरा भाषलेश्या जीव आस्रव निर्जरा, तो किसा आस्रव रे मांही। जोग आस्रव में शुभ भाषलेश्या छै निर्जरा कर्म कट इणन्याय ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy