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________________ ( 20 ) कामण काययोग होता है और अन्य योग नहीं होते हैं परन्तु लेश्या छओं हो सकती है अतः वचनयोग और मनोयोग के अभाव में छओं लेश्या हो सकती है। निष्कर्ष यह निकला कि कावयोग के साथ लेश्या का सहावस्थान है। काय योग का सम्बन्ध शरीर की क्रिया से है। शरीर के रहते हुए भी चौदहवें गुणस्थान में योग और लेश्या नहीं होते हैं। एकेन्द्रिय में प्रथम चार लेश्या होती है परन्तु मनोयोग व वचनयोग नहीं होते है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व असंशी पंचेन्द्रियमें प्रथम तीन लेश्या होती है परन्तु मनोयोग नहीं होता है अतः मनोयोग व वचनयोग के साथ लेश्या का अविनाभाव सम्बन्ध नहीं है ? सलेशी केवली के एक ऐसी अवस्था बनती है कि वर्तमान में किसी भी कर्म का बंध नहीं होता है परन्तु सयोगी केवली के ऐसी अवस्था नहीं बनती कि वर्तमान में वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं हो। प्राचीन आचार्यों ने योग परिणाम को लेश्या कहा है-यह सिद्धांत सर्व सम्मत नहीं है। कषाय के अभाव में भी सात योग होने का उल्लेख मिलता है, तथा---- १- सत्य मनोयोग २- व्यवहार मनोयोग ३. सत्य वचनयोग ४-व्यवहार वचनयोग ५-औदारिक काययोग ६-औदारिक मिअ काययोग ७-कामण काययोग अतः कषाय के साथ भी योग का अन्वय--- व्यतिरेक सम्बन्ध नहीं है । भाव मनोयोग के साथ भाव लेश्या का भी अन्वय व्यतिरेक सम्बन्ध घटित नहीं होता है - ऐसा कतिपय आचाय मानते है। शुभयोग से कर्म क्षीण होते हैं अतः उसका निर्जरी में समावेश होता है। शुभ योग से पुण्य का बंघ होता है अतः उसे योग आश्रव कहा है। मनोयोग व व चय... योग का सम्बन्ध औदारिक शरीर या स्थूल शरीर के साथ है तथा काययोग का सम्बन्ध पाँचों शरीर के साथ है। शरीर धारी के ही योग और लेश्या होते हैं । अशरीरी के नियम से योग और लेश्या नहीं होते है। शुभयोग का समावेश औदयिक आदि पाँचों भावों में होता है तथा अशुभ योग का समावेश औदयिक और पारिणामिक दो भावों में होता है शुभयोग से पुण्य कर्म का बंधन होता है अतः शुभयोग नाम कर्म के उदय से निष्पन्न औदयिक भाव है। शुभयोग वीर्य अंतराय कर्म का क्षय-क्षयोपशम है तथा मोहनीय कर्म का उपशम भी है। उपशम अवस्था में कर्म के तीव विपाकोदय का उपशम होता है। प्रदेशोदय और मंद विषाकोदय के द्वारा कर्मों का क्षय होता रहता है। इससे उपशम और क्षय दोनों होते है, इस अपेक्षा से इसका नाम क्षयोपशम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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