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________________ ( ११७ ) आह, सुएञ्चिय निसिरइ संतरियं न उ निरंतरं भणियं । एगेण जओ गिण्हइ समयेणेगेण सो मुयइ ॥ -विशेभा• गा ३६७ टीका-परः प्राह-यथा स्वपक्षसमर्थकं सूत्रं त्वया दर्शितं, तथा श्रुत एवाऽस्मत्पक्षसमर्थकमपि तद् भणितमेव । किं तत् ? इत्याह-'निसिरह' इत्यादि इत्थं (प्र०..... इदं ) प्रज्ञापनोक्तसूत्रं गायाथामुपनिबद्ध, तच्चेदम्"संतरं निसिरइ, नो निरंतर निसिरइ ; एगेणं समयेणं गिण्हइ, एगेणं समयेणं निसिरइ” इत्यादि । तदनेन सूत्रेण निसर्गस्य सान्तरस्योक्तत्वात् मव्याख्यानमुपपन्नमेव । इति परस्याभिप्रायः। अत्रोत्तरमाह अणुसमयमणंतरियं गहणं भणियं जओ घिमुक्खो वि। जुत्तो निरंतरो श्चिय भणइ, कह संतरो भणिओ १॥ -विशेभा० गा ३६८ टीका-आचार्यः प्राह-हन्त ! तावद् ग्रहणमनुसमयमनन्तरितमव्यवहितं प्राक्तनसूत्रेण भणितं प्रतिपादितमिति भवतोऽपि प्रतीतम् । यत एवम्, अतो विमोक्षोऽपि निसर्गोऽपि निरन्तर एव युक्तः, गृहीतस्याऽवश्यमेषाऽनन्तरसमये निसर्गादिति । प्रेरकः पुनरपि भणति । किम् १ इत्याह-'कह संतरो भणिउ त्ति' इदमुक्त भवति-अहमपि जानामि यतः सूत्रे ग्रहणं निरन्तरमुक्तं, परं यस्तत्रैव निसर्गः सान्तर उक्तः स कथं नीयते ? इति भवानपि निवेदयतु । सत्यम्, किन्तु विषयविभागोऽत्र द्रष्टव्यः । वादी का कथन है-जिस प्रकार अपने पक्ष के समर्थन में तुमने सूत्र दिखाया उसी प्रकार मेरे पक्ष के समर्थन में भी श्रत में कहा गया है। जैसा कि प्रशापना में कहा गया है-'सान्तर निसर्ग होता है, निरन्तर निसर्ग नहीं होता है। एक समय से ग्रहण होता है तथा एक समय से निसर्ग होता है। इस सूत्र में निसर्ग को सान्तर कहा गया है, अतः मेरा (परपक्ष ) कथन भी उपयुक्त ही है। वादी पक्ष का ऐसा अभिप्राय है। इसके उत्तर में आचार्य का कथन है पूर्व सूत्र में जो योगग्रहण का समय अनुसमय अर्थात् अव्यवहित -निरन्तर कहा गया है-यह वादी पक्ष को भी अभीष्ट है। जबकि ग्रहण निरन्तर होता है तो निसर्ग भी निरन्तर ही होना चाहिए, क्योंकि गृहीत द्रव्य का अनन्तर समय में अवश्य ही निसर्ग होता है। वादी पक्ष का पुनः कथन है-सूत्र में जो ग्रहण का समय निरन्तर कहा गया है-यह तो मैं भी समझता हूँ, परन्तु वहीं पर निसर्ग को जो सान्तर कहा गया है उसको कैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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