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________________ ( १०८ ) .०८ परिणामयोग का स्वामित्व टीका-लद्धिअपजत्ताणमाउअबंधकाले चेव परिणामजोगो होदि त्ति के वि भणंति । तण्णघडदे, परिणामजोगेटिदस्स अपत्तववादजोगस्स एयंताणुपढिजोगेण परिणामविरोहादो। एयंताणुवड्ढिजोगकालो जहण्णुकस्सेण एगसमओ। पजत्तपढमसमयप्पहुडि उवरि सम्वत्थ परिणामलोगो चेष । णिव्यत्तिअपजत्ताणं णस्थि परिणामजोगो। -षट ० खण्ड ४ । २ । ४ सू १७३ । पु १० । पृष्ठ ४२० । १ कितने ही आचार्यों का मत है कि लब्धि-अपर्याप्त के आयु बन्धकाल में ही परिणाम योग होता है. परन्तु यह घटित नहीं होता है, क्योंकि जो जीव परिणाम योग में स्थित है वह उपवाद योग को प्राप्त नहीं हुआ है उसके एकान्तानुवृद्धि योगके साथ परिणमन करने में विरोध आता है । एकान्तानुवृद्धि योग का जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय मात्र है, अतः पर्याप्ति के प्रथम समय से लेकर आगे सर्वत्र परिणाम योग ही रहता है। निवृत्तिअपर्याप्त में परिणाम योग नहीं रहता है। ..९ पचनयोग के भेद पचिजोगो चउन्धिहो सञ्चवचिजोगो मोसवचिजोगो सञ्चमोसवचिजोगो असश्चमोसवचिजोगो चेदि। -षट् • खं १।१ । सू ५२ । पु १ । पृ० २८६ .०१० मनयोग के भेद ___ मणजोगो चउविहो, सञ्चमणजोगो मोसमणजोगो सच्चमोसमणजोगो असचमोसमणजोगो चेदि । -षट • खं० १।१ .०११ सत्य (वचनयोग) के भेद दसविहे सच्चे पण्णत्ते तंजहासंगहणी गाहा जणषय समय ठवणा, णामे रूवे पडुश्चसच्चेय । ववहार भाव जोगे, दसमे ओवम्मसच्चेय ॥ -ठाण० स्था १० । सू८९ .०१२ मृषा ( पचनयोग) के भेद दस बिधे मोसे पण्णत्ते, तं जहा क्रोधे माणे माया, लोभे पेज्जे तहेव दोसेय । हास भए अक्खाइय, उवधात णिस्सिते दसमे। -ठाण• स्था १० । सू६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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