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________________ ( 5 ) आहारकशरीर नामकर्म के उदय से असंयम के परिहार तथा सन्देह की निवृत्ति के लिए प्रमत्तविरत (छठे गुणस्थानवर्ती ) मुनि के आहारक शरीर होता है । स्वयं में सन्देह होनेपर जिस शरीर के द्वारा केवली के पास जाकर सूक्ष्म अर्थों का आहरण ( ग्रहण ) करता है, उस शरीर के द्वारा होनेवाले योग को आहारक काययोग कहते है I आहारयमुत्तत्थं विजाण मिस्लंतु अपरिपुण्णं तं । जो तेण संपजोगो आहारयमिस्साजोगो सो ॥ - गोजी० गा २३६ आहारक शारीर जब तक अपरिपूर्ण अर्थात् अपर्याप्त रहता है तब तक उसको आहारक मिश्र कहा जाता है उसके द्वारा होनेवाले योग को आहारकमिश्र काययोग कहते हैं। I २०३६ कार्मण काययोग का लक्षण कम्मेव य कम्मभवं कम्मइथं जो दु तेण संजोगो । कम्मयका जोगो इगिषिगतिगसमयकालेसु ॥ - गोजी० गा २४० कर्मों को ही या कार्मणशरीर नामकर्म के उदय से होनेवाले काय को काम काय कहते हैं । इस काय के द्वारा होनेवाले योग को कार्मणकाययोग कहते हैं । यह योग एक, दो या तीन समय तक होता है । .०५ परिभाषा के उपयोगी पाठ .१ वर्ण - गन्ध-रस - स्पर्श .०५१ द्रव्ययोग की परिभाषा के उपयोगी पाठ .०१ कण्हलेसाणं भंते ! कतिवण्णा, कति गन्धा, कइरसा, कइफासा पन्नत्ता ? गोयमा ! दव्वलेसं पडुश्च पंचपण्णा, जाव अट्ठभासा पन्नता x x x । मणजोगे, बइजोगे, उफासे, कायजोगे अट्ठफासे । - भग० श १२ । उ ५ । सू ११७ द्रव्य योग- द्रव्यमन, द्रव्य वचन और द्रव्य काययोग पाँच वर्ण, दो गंध, पाँच रस वाले है । परन्तु द्रव्य मनोयोग और द्रव्य वचन योग चतुःस्पर्शी है तथा द्रव्य काययोग अष्टस्पर्शी है। .०२ पुद्गल भी वर्ण-गंध-रस-स्पर्शी है अतः द्रव्ययोग पुद्गल है । पोग्गत्थिकाए णंभंते ! कतिपण्णे ? १ कतिगंधे, कतिरसे, कतिफासे गोयमा ! पंचवण्णे, पंचरसे, दुगंधे, अट्ठफासे । भग० श २ । उ १० । सू १२६ पुद्गल भी वर्ण-गंध-रस, स्पर्शी है अतः द्रव्ययोग पुद्गल है । .०३ द्रव्य योग पुद्गल है अतः पुद्गल के गुण भी द्रव्ययोग में है ( पोग्गलस्थिकाए ) रूपी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए, लोगदन्वे । For Private & Personal Use Only Jain Education of Rternational www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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