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________________ ( ८६ ) कर्मों का विकार कार्मण है, जो आठ प्रकार के विचित्र कर्मों के द्वारा निष्पन्न होता है तथा यह सभी औदारिका दि शरीरों का बीजभूत कार्मण शरीर है, क्योंकि भवप्रपञ्च रूप वृक्ष के वीजभूत कार्मण शरीर के आमूल नष्ट हो जानेपर शेष शरीरों का प्रादुर्भाव होना संभव नहीं है। __ यह कार्मणशरीर जीव के गत्यन्तर संक्रमण करने में प्रमुख कारण है। कामण शरीर से ही परिकरित-सुरक्षित होकर जीव मरणदेश को छोड़कर उत्पत्तिदेश में उपसर्पण करता है। __ यद्यपि कामणशरीर से घिरकर जीव गत्यन्तर में संक्रमण करता है तथापि जाता हुआ देखा नहीं जाता है, क्योंकि कर्म पुद्गलों के अति सूक्ष्म होने के कारण चक्षुरादि इन्द्रियों के अगोचर रहता है। प्रज्ञाकरगुप्त ने कहा है भवशरीर पास से निष्क्रमण या प्रवेश करते हुए सूक्ष्मता के कारण दिखाई नहीं देता है, किन्तु दिखाई नहीं देने के कारण उसका अभाव नहीं है। कार्मण रूप काय से वोगप्रवृत्ति को कामण काययोग कहते हैं। कार्मण काययोग जीव की विग्रहगति में तथा केवली के ससुद्घातावस्था में होता है। कर्म ही कामण शरीर है अर्थात आठ प्रकार के कर्मस्कन्ध है। अथवा कर्म में होने वाला कार्मण शरीर है, इससे नामकर्म के अवयव रूप कर्म का ग्रहण होता है। इस प्रकार के काय के द्वारा होनेवाला योग-प्रवृत्ति को कामणकाययोग कहते है। अर्थात् यह केवल कर्मजनित वीर्य के द्वारा होनेवाला योग है । ०२०२३ सत्यमनोयोग का लक्षण सत्यार्थालोचननिबन्धनं मनः सत्यमनस्तस्य प्रयोगो-व्यापारः सत्यमनः प्रयोगः। -सम० सम १५ । सू १५ । टीका । पृ०८४६ सम्भावमणो सञ्चो जो जोगो तेण सञ्चमणजोगो। -गोजी० गा २१७ सत्यार्थ के आलोचन में व्यापृत मन के प्रयोग-व्यापार को सत्यमनःप्रयोग या सत्यमनोयोग कहते है। सत्ये मनः सत्यमनः तेन योगः सत्यमनोयोगः । -षट खं १, १ । सू ४६ । टीका । पु १ । पृ० २८० सत्यनिष्ठ मन के योग-व्यापार को सत्यमनोयोग कहते हैं । •०२०२४ असत्यमनोयोग के लक्षण सत्यविपरीतमसत्यं x x x| - पण्ण० प १६ । सू१०६८ । टीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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