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________________ ( ६१ ) टीका - संजमजोगविसन्ना मरंति जे तं वलायमरणंतु । इंदियविसयवसगया मरंति जे तं वसतु ॥ संयम योग से निवृत होकर, परिषहादि के बाधित होने से वलायमरण है । ०१९८ सजोगिभवत्थ केवलणाणे ( सयोगिभवस्थ केवलज्ञान ) - ठाण० स्था २ । १ । सू ८६ । पृ० ५०६ योगयुक्त अवस्था में होनेवाला केवलज्ञान । मूल - भवत्य केवलणाणे दुबिहे पण्णत्ते, तं जहा - सयोगिभवत्थकेवलणाणे x x × । टीका- 'भवत्थे' त्यादि सह योगेः - कायव्यापारादिभिर्यः स सयोगी इन्समासान्तत्वात् स वासौ भवस्थश्च तस्य केवलज्ञानमिति विग्रहः । मन, वचन, काय के व्यापार के साथ बरतनेवाले भवस्थ मनुष्य में होनेवाला एक ज्ञान-सयोगिभवस्थकेवलज्ञान । ०१९९ सजोगी केवली ( सयोगी केवली ) मन, वचन, और काय के व्यापार से युक्त केवलज्ञानी । मूल - कम्मविसोहिमग्गणं पडुश्च वउद्दस जीवद्वाणा पण्णत्ता, तंजहामिच्छदिट्ठी x x x सयोगी केवली X × × ! सम० सम १४ । सू ५ | पृ० ४१ टीका - सयोगी केवली - मनः प्रभृतिव्यापारवान् केवलज्ञानीति । कर्म - विशोधन के द्वारा होनेवाले जीव के चौदह स्थान — गुणस्थान होते हैं, उनमें तेरहवाँ गुणस्थान — सयोगी केवली । • ०२०० संजमजोगयं ( संयमयोगज ) संयम रूप योग - आचरण । तवं चिमं संजमजोगयं च सज्झायजोगं च सया अहिट्ठए । सूरे व सेणाए समत्तमाउहे अलमप्पणो होइ अलं परेसिं ॥ टीका - 'समयोगं व' पृथिव्यादिविषयं संयमव्यापारं च । • ०२०१ सजोगाजोगा ( सयोगायोग ) योगयुक्त तथा योगरहित साधक । जीवकाय, इन्द्रिय तथा मन के संयम के प्रति समाचरण करना - जागरूक रहनासंयमयोग कहा जाता है । Jain Education International - दसवे० अ८ । गा ६१ एएश्चिय पुग्वाणं पुग्बधरा सुप्पसत्यसंघयणा । दोण्ह सजोगाजोगा सुकाण पराण केवलिणो ॥ For Private & Personal Use Only - ध्याश० गा ६४ www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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