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________________ ( ५१ ) साथ-साथ चलते हुए कई लोगों से कदाचित प्रमर्दन - टकराव हो जानाप्रमर्द योग । कृत्तिका, रोहिणी, पुनर्वसू, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा तथा ज्येष्ठा- ये आठ नक्षत्र दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमबद्ध होकर चन्द्रमा के साथ चलते हैं, जिनमें से कदाचित् कोई चन्द्रमा से प्रमर्दित अर्थात् घृष्ट होता है । ०१६१ परपभोगेण ( परप्रयोग ) पर अर्थात दूसरे के प्रयोग अर्थात् सहयोग मूल - गोयमा ! आयप्पओगेण गच्छद्द, नो परप्रयोगेण गच्छइ । टीका- 'आयप्पओगेणं' ति न परप्रयुक्त इत्यर्थः । भग० श ३ ३ ४ | १६८ | पृ० १६३ .०१६२ परिणामजोगठाणा ( परिणामयोगस्थान ) परिणमन के द्वारा होनेवाला योगस्थान | परिणाम जोगठाणा सरीरपजत्तगादु चरिमोत्ति । लद्धिअपजत्ताणं चरिमतिमा गम्हि बोधव्वा ॥ .०१६३ परिणामजोगेहि ( परिणामयोग ) शरीर पर्याप्ति के पूर्ण होने के समय से लेकर अन्त समय तक होनेवाला परिणमन तथा लब्ध्यपर्याप्त जीव के अन्त के त्रिभाग समय के प्रथम समय से लेकर अन्त समय तक होनेवाला परिणमन परिणामयोगस्थान कहलाता है । Jain Education International - गोक० गा २२० - षट् ० परिणमन के द्वारा होनेवाला योग का एक भेद । तेजइयस्स जहण्णिया संघादण परिसादणकदी कस्ल ( जो ) जीवो छावहि- सागरोमाणि सुहुमेसु अच्छिदो । एवं xxx एयंतबड्ढमाणस्स अभिक्खचड्ढीए अपजत्तयस्स जम्हि समए बहुसो बंधो णिजराचणतम्हि समयहि ट्ठिदो, तस्स तेजइयस्स XXX । एयंताणुवड्ढीए सामित्तं किमट्ठ दिण्णं ? परिणामजोगेहि संखिदपोग्गलक्खं धग्गलणहौं । तेजस शरीर की जघन्य संघातन-परिशातन कृति का प्रकरण है । ० खं ४, १ सू ७१| टीका | ६| पृ० ६४३ तेजस शरीर की संघातन परिशातन कृति उस जीव के होती है, जो जीव छयासठ सागरोपम तक सूक्ष्म जीवों में रहता है वहाँ ऊपर उठते हुए एकान्त वृद्धि के द्वारा पर्याप्तिअपर्याप्तयों से अभीक्ष्ण- प्रचुर रूप में बढ़ते हुए अपर्याप्तक जीव के जिस समय बन्ध अधिक होता है, किन्तु निर्जरा नहीं होती है । यहाँ पर एकान्तानुवृद्धि को स्वामित्व होने में कारण रहता है परिणामयोग के द्वारा संचित पुद्गल - स्कन्धों को नष्ट करना । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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