SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४६ ) '०१५४ पढमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणे (प्रथमसमयअयोगिभवस्थकेवलज्ञान) -ठाण. स्था २।७ १।सू ६१ पृ५०६ अयोगी अर्थात योग रहित अवस्था के प्रथम समय में होनेवाला केवलज्ञान । मूल-अजोगिभवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--पढमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव Xx x । टीका-न सन्ति योगा यस्य स न योगीति वा योऽसावयोगी xxx प्रथमः समयः सयोगित्वे यस्य स xx x ‘एवं' मिति सयोगिसूत्रवत्प्रथमाप्रथमचरमाचरमविशेषणयुक्तमयोगिसूत्रमपि पाव्यमिति। जिसके कायादि के व्यापार नहीं हैं अथवा जो योगी नहीं है-ऐसे भवस्थ व्यक्ति के प्रथम समय में होनेवाला केवलज्ञान-प्रथमसमयअयोगिभवस्थ-केवलज्ञान । ०१५५ पढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे (प्रथमसमयसयोगिभवस्थकेवलज्ञान) __-ठाण० स्था ।उ १।सू ६. पृ० ५०६ सयोगी अवस्था के प्रथम समय में होनेवाला केवलज्ञान । मूल-सजोगिभवत्थकेचजणाणे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-पढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे येव x x x | टीका-सह योगैः-कायव्यापारादिभिर्यः स सयोगी इनसमासान्तत्वात् सचासौ भवस्थश्च तस्य केवलज्ञानमिति विग्रहः, x x x प्रथमः समय: सयोगित्वे यस्य स तथा xxx । योग-कायादि के व्यापार के साथ बरतनेवाले भवस्थ मनुष्य के प्रथम समय में होनेवाला केवलज्ञान-प्रथमसमयसयोगिभवस्थकेवलज्ञान । .०१५६ पणजोग (पंचयोग) --प्रवसा० गा० १२६७ पाँच भावो की सन्धि । दुगजोगो सिद्धाणं केवलिसंसारियाण तियजोगो। चउजोगजुरं चउसुवि गईसु मणुयाण पणजोगो॥ टीका -xxx मनुष्याणां पञ्चकयोगः-पूर्वोक्तभावपञ्चकयोगः संभपति, केवलं क्षायिकसम्यग्दृष्टयः सन्तो ये उपशमश्रेणि प्रतिपद्यन्ते तेषामेव न पुनरन्येषां, समुदितभावपञ्चकस्य तेषामेव भावादिति । ___ पाँच भावों का संयोग मात्र मनुष्यगति में ही होता है। जो क्षायिक सम्यग्दृष्टि रहते हुए उपशम श्रेणी को प्राप्त करते हैं उनमें ही कथित पाँचों भावों के संयोग को पंचयोग कहा जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy