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________________ योगी । ( ४२ ) जिस गुणस्थान में सात योग कार्यरत होते रहते हैं वह गुणस्थान - सयोगिकेवली - - ०१३१ झाणजोग ( ध्यान योग ) ध्यान की एक अवस्था विशेष । ध्यान की एक अबस्था विशेष । - सू० श्र १ अ दागा २६ । पूर्वार्ध झाणजोगं समाह, कार्यं विउसेज्ज सम्वसो । टीका - 'झाणजोगम्' इत्यादि, ध्यानं वित्तनिरोधलक्षणं धर्म-ध्यानादिकं तत्र योगो विशिष्टमनोवाक्कायव्यापारस्तं ध्यानयोगं 'समाहृत्य' सम्यगुपादाय 'कार्य' देहमकुशल योगग्रवृत्तं 'व्युत्सृजेत्' परित्यजेत् । धर्मध्यान आदि में व्यापृत अवस्था में होनेवाले मन, वचन और काय के विशिष्ट व्यापार को ' ध्यानयोग' कहा जाता है । ·०१३२ झाण- सुहजोग-नाण-सज्झाय- गोषियमणे ( ध्यान -शुभयोग- शान-स्वाध्याय - गोपित मन ) כ' - पण्हा० अ ६ द्वा १ | सू २० | पृ• ६८७ ध्यान, शुभयोग, ज्ञान तथा स्वाध्याय के द्वारा मन को विषयान्तर से रोकनेवाला । वउत्थ आहारएसणाए सुद्ध उछं x x x झाण- सुहजोग-नाण-सज्झायगोवियमणे x x x अहिंसए संजए सुसाहू | टीका -- ध्यानेन धर्मादिना शुभयोगेन - संयमव्यापारेण गुरुविनय-करणादिना ज्ञानेन ग्रन्थानुप्रेक्षणरूपेण स्वाध्यायेन अधीतगुणनरूपेण वा गोपितं विषयान्तरगमनेन निरुद्ध मनो येन स तथा । आहार की गवेषणा करते समय धर्म ध्यानादि, गुरुविनयादि संयमरूप व्यापार, ग्रन्थों के अनुप्रेक्षण रूप ज्ञान तथा अधीत शास्त्रों के अनुशीलन रूप स्वाध्याय के द्वारा संयम के विपरीत विषय से मन को रोकने वाला साधु-- ध्यान - शुभयोग - ज्ञान-स्वाध्याय गोपितमान । - ध्याश० गा १०० .०१३३ झाणाणसणाइजोगेहिं (ध्यानानशनादियोग ) ध्यान, अनशन आदि रूप योग व्यापार | Jain Education International जह रोगासयसमणं विसोलण-विरेयणो सहविहीहि । कम्मामयमणं झणाणसणाइजोहि ॥ तह ठीका - कर्मरोग चिकित्सा ध्यानानशनादिभियोगैः, आदिशब्दाद् ध्यानवृद्धिकारकशेषतपोभेदग्रहणमिति XXX । कर्मरूपी रोग की चिकित्सा अर्थात् निर्जरा के लिए ध्यान, अनशन आदि करना अर्थात् जिससे ध्यान की निरन्तर वृद्धि होती रहे वह -- ध्यानानशनादि योग । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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