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________________ ( ३१ ) कम्मलिपाओग्गाण जोगट्ठाणाणं पंतीए देसादिनियमेणावठ्ठिदाए खग्गधारासरिसीए जहण्णुकस्सजोगा अस्थि । कर्म स्थिति के प्रथथ समय से लेकर उसके अन्तिम समय तक गुणित कम शिक जीव के योग्य योगस्थानों के देशादि के नियम से एक पंक्ति में अवस्थित रहनेवाला - जघन्य उत्कृष्ट योग । ०८९ जहा- जोग (यथा- योगम् ) कालानुरूव किंरियं सुयानुसारेण कुरु जहा - जोगं । जह के सिगणहरेणं गोयम गणहारिणो बिहिया || अर्थात् कालानुरूप से क्रिया को श्रुत के अनुसार यथा योग करनी चाहिए। जैसे केशी स्वामी ने गोतम स्वामी के समीप कालानुरूप क्रिया - पंच महाव्रतादिका अनुसरण किया । - दसवे० च २ । गा १५ • ०९० जोग ( योग ) - धर्मो० पृ० १४० स्कृत तथा दुष्कृत में प्रवृत्ति करानेवाली बुद्धि । जस्सेरिसा जोग जिई दियस्सा धिइमओ सप्पुरिसस्स निच्च । तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी सो जीवइ संजमजीषिणं ॥ जितेन्द्रिय, धृतिमान् सत्पुरुष बराबर सावधान रहता है जिससे उसका मन दुष्प्रवृत्त न हो, उसकी इस प्रत्युत्पन्न बुद्धि को योग कहा गया है । ०९१ जोगचलना ( योगचलन ) योगाश्रित पुद्गलों का व्यापार । कइबिहा णं भंते ! चलणा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा चलणा पण्णत्ता, तंजहा - सरीरचलणा इंदियचलणा जोगथलणा । भग० श १७ । उ ३ । प्र ११ टीका - अस्यौदारिकादेश्चलना तत्प्रायोग्यपुद्गलानां तद्रूपतया परिणमने व्यापारः शरीरखलना, एवमिन्द्रिययोगचलने अपि । योग प्रायोग्य पुद्गलों का ग्रहण कर उस रूप से परिणमन करने के लिए व्यापार होना - योगचलना । ०१२ जोगट्ठाणचरिमगुणहाणीए ( योगस्थान चरम गुणहानि ) Jain Education International - षट् खं ४, २, ४ । सू २६ | टीका | १० | पृ० १०५ योगस्थान की अन्तिम गुणहानि । जारिमगुणहाणीए असंखेज्जदिभागो जीवगुणहाणी होदि सि कुदो णव्वदे ! तंतजुत्ती दो । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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