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________________ ( २१ ) रूषविरतिसमितिजोगेण भाषितो भवति अंतरप्पा, xxx जितेंदिए बंभचेरगुत्तो टीका-नारीणां-- स्त्रीणां हसितं हास्थं विकारं नर्मादि भणितं xxx अनुचरता-ब्रह्मवतमासेवता यतिना न चक्षुषा द्रष्टव्यानि अभिलाषतया दृष्टादृष्टि न बध्नातीत्यर्थः। न मनसा चिन्तयितव्यानि । Xxx एवमुक्तप्रकारेण स्त्रीरूपविरतिसमितियोगेन भावितो भवति अन्तरात्मा--जीवः x x x । आत्मा को भावित करने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत का सेवन करने वाले साधु का नारी के सौन्दर्य को देखने, हास्यादि के सुनने या मन में अभिलाषा करने के प्रति विराग धारण कर संयम का पालन करना - स्त्रीरूपविरतिसमितियोग। .०५२ इरियासमितिजोगेण ( ईर्यासमितियोग) - पण्हा० अ६।दा १।सू १७/पृ॰ ६८७ ई-गमन में सावधानता रूप योग-व्यापार । मुल-एवं इरियासमितिजोगेण भावितो x x x अहिंसए संजए सुसाहू। टीका-ईरितव्यं - गन्तव्यं xxx ईर्यासमितिव्यापारेण भाषितोपासितो भवति अन्तरात्मा-जीवः। __अन्तरात्मा को वासित- पवित्र करने में एक कारणभूत गमन करते समय क्षुद्र जन्तुओं की हिंसा से बचने के लिए संयम बरतना-ई-समितियोग । .०५३ उक्कडजोगी (उत्कटयोगी) --कम भा ५ागा ८६पृ० १.५ योग का उत्कृष्ट व्यापार करनेवाला। अप्पयरपडिबंधी, उक्कडजोगी य सन्नि पज्जत्तो। कुणइ पएसुक्कोसं, जहन्नयं तस्स बञ्चासे ।। टीका-'उत्करयोगी' उत्कटवीर्यवान् , सर्वोत्कृष्टयोगव्यापारे वर्तमान इत्यर्थः। उत्कृष्ट प्रदेशों को बाँधने के लिए सर्वतः उत्कृष्ट योग-व्यापार में वर्तमान संशी पर्याप्त जीव-उत्कटयोगी। .०५४ उक्कडजोगी ( उत्कष्टयोग) -गोक• गा २१० उत्कृष्ट योग का धारक । उक्कडजोगो सण्णी पज्जत्तो पयडियंधमप्पदरो। कुणदि पदेसुक्कस्सं जहण्णये जाण विषरीयं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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