SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६ ) '३६ असश्चामोसवइप्पओगे ( असत्यामृषावचन प्रयोग ) - पण्ण० प १६ / सू २०६८ सत्य और मिथ्या दोनों से विपरित वचन का प्रयोग करना । पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा -- ( असच्चामोसवप्पओगे ) एवं aruओगेवि उहा × × × । टीका - ' एवं पओगेविचउहा' इति यथा मनःप्रयोगश्चतुर्द्धा तथा वाक्प्रयोगोsपितुर्द्धा तद्यथा XX X असत्यामृषावाक्प्रयोगः, एताश्च सत्यवागादयः सत्यमनःप्रमृतिवद्भावनीया इति । किसी पदार्थ के प्रतिपादन करने के निमित्त सर्वज्ञ मतानुसार विकल्प उपस्थित करना, यथा जोव सत्-असत् रूप है, यह तो परिभाषित होने के कारण मिथ्या के विपरीत अर्थात् सत्य है, पुनः संशय उपस्थित होनेपर सर्वज्ञ मत से बाह्य जीव को एकान्त नित्य स्वीकार नहीं करना सत्य के विपरीत है— इस प्रकार के वचन का प्रयोग करना -असत्या मृषावचनप्रयोग | .०३७ असंसत्तवासवसही समितियोगेण ( असंसक्तवासवसतिसमितियोग ) - पहा ० अ हाद्वा ४ सू ७ | पृ० ७०१ स्त्रियों से असंसक्त अर्थात् रहित वास वसति रूप संयम का पालन । मूल - पढमं - सयणासण- घरदुवारअंगण x x x तं तं वज्जेज्ज वजभीरू अणायतणं अंतपंतवासी । एवमसंसत्तबासवसही समितिजोगेण भावितो भवति अंतरपा XXX जितेंदिए बंभचेरगुत्ते । टीका - एवं अनन्तरोक्तस्त्रीभिरसंसक्तवासो वसतिः योऽसौ साधुः तद्विषयो यः समितियोगः - सदाचरणप्रवृत्तिसम्बन्धः स तथा तेन भाषितो - वासितो अंतरप्पा- अन्तरात्मा जीवः । अन्तरात्मा को भावित करने के लिए साधु का स्त्रियों के हास्य शृङ्गारि की कथाओं से असंसक्त स्थान में जहाँ सदाचार में बाधा न हो, ऐसे स्थान में वास वसति रूप संयम में आरूढ़ रहना -असंसक्त वासवसतिसमितियोग । --- .०३८ असुहं जोगं ( अशुभयोग ) आरम्भ समारम्भ रूप अशुभ प्रवृत्ति । Xxx । तत्थ णं जे ते पमत्तसंजया ते Xx X असुहं जोगं पडुश्च आयारंभा वि, परारंभा षि, तदुभयारंभा वि णो अणारंभा । टीका - प्रमत्तसंयतस्य हि शुभोऽशुभश्य योगास्स्यात् संयतत्वात्, पमादपरत्वाश्च । × × × । अशुभयोगस्तु तदेवाऽनुपयुक्ततया । आह व Jain Education International भग० श १ उ १४८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy