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________________ सूक्ष्म (पुद्गल)] ११६७, जैन-लक्षणावली [सूक्ष्मऋजुसूत्र वर्गणायोग्यास्ते सूक्ष्मा इन्द्रियज्ञानाविषयाः । (पंचा. रूढानि वालाग्राणि तेषामेकैक वालाग्रमसंख्येयानि का. जय. वृ. ७६) । ५. कर्म सूक्ष्मम्, यद् खण्डानि क्रियन्ते । किंप्रमाणमसंख्येयंखण्डमिति द्रव्यं देशावधि-परमावधिविषयं तत्सूक्ष्ममित्यर्थः । चेदुच्यते - इह विशुद्धलोचनश्छद्मस्थः पुरुषो यदतीव (गो. जी. जी. प्र. ६०३ । ६. कर्म सूक्ष्मम्, सूक्ष्म द्रव्यं चक्षुषा पश्यति तदसंख्येयभागमात्रमयद् द्रव्यं देशावधि-परमावधिविषयं तत् सूक्ष्म संख्येयं खण्डम् । इदं द्रव्यतोऽसंख्येयस्य खण्डस्य प्रमामित्यर्थः । (कातिके. टी. २०६) । ७. तत्र णम् । क्षेत्रतः पुनरिदम् -सूक्ष्मस्य पनकजीवस्य या धर्मादयः सूक्ष्मा: सूक्ष्मा: कालाणवोऽणवः। (लाटीसं. जघन्यावगाहना तया यत् व्याप्तं क्षेत्रं तदसंख्येय गुण४.७)। ८. सूक्ष्मास्ते कामणस्कन्धाः प्रदेशानन्तयो- क्षेत्रावगाहिद्रव्यप्रमाणमसंख्येयं खण्डम् । तथा चागतः ॥ (जम्बू. च. ३-४६)। त्रार्थेऽनुयोगद्वारसूत्रम् -- तत्थ णं एगमेगे वालग्गे १ वैक्रियिक प्रादि पाँच शरीरों, मन और वचन को असंखिज्झाई खण्डाइ कज्जति, ते णं वालग्गा दिदिजो वर्गणायें कही गई हैं वे यथाक्रम से सूक्ष्म हैं तथा प्रोगाहणामो असंखेज्जतिभागमेत्ता सुहमस्स पणइनके मध्यवर्ती जो अनन्तानन्त संहत वर्गणायें हैं गजीवस्स सरीरोगाहणाो असंखेज्जगुणा इति । उन्हें भी सूक्ष्म जानना चाहिए : २ सूक्ष्म होने पर अत्र वृद्धाः पूर्वपुरुषपरम्परायातसंप्रदायवशादेवं भी जो कार्मणवर्गणा आदि इन्द्रियगोचर नहीं हैं निर्वचन्ति -बादरपर्याप्तपृथिवीकायिकशरीरप्रमाणउन्हें सूक्ष्म माना गया है। ४ कर्म सूक्ष्म है, कारण मसंख्येयं खण्डमिति । तथा चानुयोगद्वारटीकायह है कि जो द्रब्य देशावधि और परमावधि का कृदाह हरिभद्रसूरि:- बादरपृथिवीकायिकपर्याप्त. विषय है उसे सूक्ष्म कहा जाता है। यह पुदगल के शरीरतुल्यान्यसंख्येयानि खण्डानीति वृद्धवादः । एवं. सूक्ष्म-स दे छह भेदों में पांचवां है। प्रमाणासंख्येयखण्डीकृतालाः स पल्यः प्राग्वदासूक्ष्म-अ प्रद्धापल्योपम-तथा स एव पल्यस्ताव- कर्णभूतो निचितश्च तथा विधीयते यथा न किमपि प्रमाणः प्राग्वद्वालाग्राणि प्रत्येकमसंख्येयखण्डानि तत्र वह्नयादिकमाक्रमति । ततः समये समये एकककृत्वा तैराकीणं भृतो निचितश्च तथा क्रियते यथा वालाग्रापहारेण यावता कालेन स पल्यः सर्वात्मना न वह्नयादिकं तत्राकामति, ततो वर्षशते वर्षशतेऽति- निर्लेपो भवति तावान् कालविशेषः सूक्ष्ममुद्धारपल्योक्रान्ते सत्येकैकवालाग्रापहारेण यावता कालेन स पमम् । (बहत्सं. मलय. वृ. ४)। पल्यः सर्वात्मना निर्लेपीभवति तावान् कालविशेषः उत्सेधांगुल प्रमित योजन प्रमाण लम्बे, चौड़े व गहरे सूक्ष्ममद्धापल्योपमम् । (बृहत्सं. मलय. वृ. ४)। पल्य को शिर के मूड़ने पर एक दिन-रात में उगे एक योजन प्रमाण लम्बे चौड़े पल्य के वालानों में हुए, दो दिन-रातों में उगे हुए, इस प्रकार सात से प्रत्येक के असंख्यात खण्ड करे व उनसे उसे इस दिन-रात तक के उगे हए बालागों में से प्रत्येक के प्रकार से ठसाठस भरे कि जिससे अग्नि प्रादि भी असंख्यात खण्ड करे और उनसे इस प्रकार से ठसाप्रवेश न कर सके । पश्चात सो सौ वर्षों के बीतने ठस भरे कि उसमें अग्नि प्रादि न प्रविष्ट हो सके। पर एक एक बालाग्र को उसमें से निकाले, इस पश्चात उनमें से एक एक समय में एक एक बालान प्रकार जितने काल में वह पल्य रिक्त होता है उतने के निकालने पर जितने काल में वह पूर्णतया रिक्त कालविशेष को सूक्ष्म प्रद्धापल्योपम कहा जाता है। होता है उतने कालविशेष को सूक्ष्म उद्धारपल्योपम सूक्ष्म-अद्धासागरोपम-तेषां च सूक्ष्माद्धापल्योप. कहा जाता है। मानां दश कोटीकोट्य एक सूक्ष्ममद्धासागरोपमम् ।। सूक्ष्म-उद्धारसागरोपम-एवं रूपाणां च सूक्ष्मो(बहत्सं. मलय. वृ. ४)। द्धारपल्योपमानां दश कोटीकोटय एक सूक्ष्ममद्धार. दश कोडाकोडी सूक्ष्म प्रद्धापल्योपमों का एक सागरोपमम् । (बृहत्सं. मलय. वृ. ४)। सूक्ष्म प्रद्धासागरोपम होता है। दश कोडाकोडी सूक्ष्म उद्धारपल्योपमों का एक सूक्ष्म-उद्धारपल्योपम- तथा स एवोत्सेधाङ्गुल- सूक्ष्म उद्धारसागरोपम होता है। प्रमितयोजनप्रमाणायाम-विष्कम्भावगाहः पल्यो सूक्ष्म-ऋजूसूत्र-देखो ऋजुसूत्रनय। १. जो एयसमण्डिते शिरसि यानि संभाव्यमानान्येकाहोरात्रप्र- मयवट्टी गिण्हइ दब्वे धुवत्तपज्जानो। सो रिउसुत्तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016023
Book TitleJain Lakshanavali Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1979
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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