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________________ भाविद्रव्यकृति ८५६, जैन-लक्षणावली [भा विनोआगमद्रव्यान्तर भाविद्रव्यकृति-जा सा भवियदव्वकदी णाम जे परिणामप्राप्ति प्रत्यभिभुखं द्रव्यं भावीत्युच्यते। (त. इमे कदित्ति अणियोगद्दारा भविप्रोवकरणदाए जो वा. १, ५, ७) । २. गत्यन्तरे स्थितो मनुष्यभवट्रिदो जीवो ण ताव तं करेदि सा सव्वा भविय- प्राप्ति प्रत्यभिमखो भाविजीवः, स एक दव्वकदी णाम । (षठ्खं. ४,१, ६४-पु. ६, पृ. दिप्राभूतं न जानाति केवलमग्रे ज्ञास्यति तदा भावि२७१)। नोग्रागमः । (न्यायकु. ७४, पृ. ८०७) । ३. अथवा जो जीव भविष्य में कृति अनुयोगद्वारों के उपकरण यदा जीवादिप्राभृतं न जानाति अग्रे तु ज्ञास्यति रूप से स्थित होकर वर्तमान में उसे नहीं कर रहा तदा भाविनोआगमद्रव्यजीवः । (त. वृत्ति श्रुत. है उसे भावी (नोप्रागम) द्रव्यकृति कहते हैं। १-५)। भाविद्रव्यासंख्यात-जं तं भवियासंखेज्जयं तं १ जीवन-मनुष्यादि जीवन-परिणाम और भविस्सकाले असंखेज्जपाहुडजाणुगजीवो। (धव. पु. सम्यग्दर्शन परिणाम की प्राप्ति के प्रति जो अभि३, पृ. १२४)। मुख द्रव्य है उसे कम से भावी नोमागमद्रव्यजीव जो जीव भविष्य में असंख्यातप्राभूत का ज्ञाता होने और भावी नोप्रागमसम्यग्दर्शन कहते हैं। २ अन्य वाला है उसे भावी द्रव्यासंख्यात कहा जाता है। गति में स्थित जो जीव मनुष्यभव की प्राप्ति के भाविनैगमनय - १. णिप्पण्णमिव पयंपदि भावि- प्रति प्रभिमुख हो रहा है उसे भावी नोमागमद्रव्यजीव पयत्थं खु णरो अणिप्पण्णं । अप्पत्थे जह पत्थं भण्णइ कहते हैं; वही जब जीवादिप्राभृत को वर्तमान में सो भाविणइगमोत्ति णो ॥ (नयच. ३५; नहीं जानता है, किन्तु आगे अवश्य जानेगा तब द्रव्यस्व. प्र. नयच. २०५)। २. भाविनि भूतवत्क- उसे भावी नोग्रागमद्रव्यजीव कहा जाता है । थनं यत्र स भाविनैगमो यथा अर्हन् सिद्ध एव। भाविनोआगमद्रव्यभाव - भावपाहुडपज्जयस(पालापप. पृ. १३८)। ३. भविष्यन्तम् अर्थम् रूवेण जो जीवो परिणमिस्सदि सो णोप्रागमभवियअलीतवत् कथनं भाविनि भूतवत् कथनं भाविनैगमः, दव्वभावो णाम । (धव. पु.५, पृ. १८४)। यथा अर्हन् सिद्ध एव । (कातिके. टी. २७१)। जो जीव प्रागे भावप्राभृत पर्यायरूप से परिणत १ अनिष्पन्न (अनुत्पन्न) भावी पदार्थ को जो होने वाला है उसे भावी नोप्रागमद्रव्य भाव कहते हैं। निष्पन्न के समान कहा जाता है उसे भावी नंगम- भाविनोप्रागमद्रव्यसामायिक-भाविकाले सानय कहते हैं। जैसे-जो प्रस्थ (एक मापविशेष) मायिकप्राभृतज्ञायिजीवो भाविनोग्रागमद्रव्यसामायिअभी उत्पन्न नहीं हना है-मागे उत्पन्न होने कम् । (अन. ध. स. टी. -१६)। वाला है-उसे वर्तमान में प्रस्थ कहना, अथवा जो जीव अागामी काल में सामायिकप्राभत का प्ररहन्त को सिद्ध कहना। ज्ञाता होने बाला है उसे भावी नोग्रागमद्रव्यसामाभाविनोप्रागमज्ञायकशरीरद्रव्यभाव-भाव- यिक कहा जाता है। पाहडपज्जायपरिणदजीवस्स आहारो जे होसदि भाविनोप्रागमद्रव्यानन्त-जं तं भवियाणंतं तं सरीरं तं भवियं णाम । (धव. ५, पृ. १८४)। अणंतप्पाहुडजाणुगभावी जीवो। (धव. पु. ३, पृ. भावप्राभूतपर्यायरूप से परिणत जीव का जो शरीर प्राधार होगा उसे भावी नोमागमज्ञायकशरीरद्रव्य- जो जीव भविष्य में अनन्तप्राभूत का जानकार भाव कहते हैं। होने वाला है उसे भावी नोग्रागमद्रव्यानन्त कहा भाविनोप्रागमद्रव्यकाल- भवियणोप्रागमदब्ब- जाता है। कालो भविस्सकाले कालपाहडजाणो जीवो । भाविनोग्रागमद्रव्यान्तर-भवियणोप्रागमदध्वंत(धव. पु. ४, पृ. ३१४)। रं भविस्सकाले अंतरपाहडजाणो। संपहि संतेवि जो जीब आगामी काल में कालप्राभत का ज्ञाता उवजोए अंतरपाडवगमरहियो। (धव. पु. ५, होने वाला है उसे भावी नोग्रागमद्रव्यकाल कहा पृ. २) । जाता है। जो जीव भविष्य में अन्तरप्राभूत का ज्ञाता होने भाविनोमागमद्रव्यजीव-१. जीवन-सम्यग्दर्शन- वाला है, पर वर्तमान में उपयोग के होने पर भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016023
Book TitleJain Lakshanavali Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1979
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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