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________________ ब्राह्मण] ८३०, जैन-लक्षणावलो [भक्तकथा आगंतं, पव्वयंतो न सोअई। रमए अज्जवयणम्मि, २. ब्राह्मो विवाहो यत्र वरायालङ्कृता कन्या प्रदीतं वयं बम माहणं ।। जायरूवं जहामठें, निद्धत- यते 'त्वं भवास्य महाभागस्य सधर्मचारिणीति' । मलपावगं । रागहोसभयातीतं, तं वयं बम माहणं ॥ (धर्मवि. म. व. १-१२, पृ. ६)। ३. तत्रालंकृत्य तसपाणे वियाणित्ता, संगहेण य थावरे। जो न कन्यादानं ब्राह्मो विवाहः । (योगशा. स्वो. विव. हिंसइ तिविहेणं, तं वयं बूम माहणं ॥ कोहा वा १-४७, पृ. १४७)। ४. तत्रालंकृत्य कन्यादानं जइ वा हासा, लोहा वा जइ वा भया। मुसंन ब्राम्यो विवाहः । (श्राद्धग. प्र. १४) । वयई जो उ, तं वयं बम माहणं ।। चित्तमंतमचित्तं १ वर के लिए अलंकृत करके कन्या का प्रदान वा, अप्पं वा जइ वा बहुं । न गिण्हई अदत्तं जो, करना, यह ब्राह्म या ब्राह म्य विवाह कहलाता है। तं वयं बम माहणं ॥ दिव्व-माणुस्स-तेरिच्छं, जो न ब्राह्मीलिपि-ब्राह्मी आदिदेवस्य भगवतो दुहिता, सेवइ मेहुणं । मणसा काय-वक्केणं, तं वयं बूम ब्राह्मी वा संस्कृतादिभेदा वाणी, तामाश्रित्य तेनैव माहणं ।। जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारि- वा दर्शिता अक्षरलेखनप्रक्रिया सा ब्राह्मीलिपिः । णा। एवं अलितं कामेहि, तं वयं बूम माहणं ॥ (समवा. अभय. व. १६)। अलोलुयं मुहाजीवि, अणगारं अकिंचणं । असंसत्तं श्रादिनाथ भगवान ने अपनी पुत्री ब्राह्मी का अथवा गिहत्थेहि, तं वयं बूम माहणं । जहित्ता पुव्वसंजोगं, संस्कृतादिरूप विविध प्रकार की सरस्वती (वाणी) नाइसंगे य बंधवे । जो न सज्जइ एएसुं, तं वयं बूम का प्राश्रय लेकर जिस अक्षरादिरूप लेखन की माहणं ॥ (पाठा. २७; उत्तरा. २५, १६-२७)। प्रक्रिया का आविष्कार किया था उसे ब्राह्मीलिपि ३. Xxx ब्राह्मणो ब्रह्मचर्यतः । (पद्मपु. ६, कहा जाता है । २०६) । ४. ब्राह्मणा व्रतसंस्कारात् xxx। ब्रायविवाह-देखो ब्राह्म विवाह । (म. पु. ३८-४६)। ५. अहिंसः सवतो ज्ञानी भक्तकथा-१. भक्तस्य कथा---रसनेन्द्रियलुब्धस्य निरीहो निष्परिग्रहः । यः स्यात् स ब्राह्मणः सत्यं चतुविधाहारप्रतिबद्धवचनानि-तत्र शोभनं भक्ष्यं न तु जातिमदान्धलः ॥ (उपासका. ८८६)। खाद्यं लेां पेयं सुरसं मिष्टमतीव रसोत्कटम्, १ जो समस्त पापक्रियाओं से रहित होता हुआ जानाति सा संस्कर्तुं बहूनि व्यञ्जनानि, तस्या प्रेम, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान (असत्य प्रारोप) • हस्तगतमशोभनमपि शोभनं भवेत्, तस्य च गृहे पिशुनता (चुगली), परनिन्दा, परति-संयमसे द्वेष, सर्धमनिष्टं दुर्गन्धं सर्व स्वादुरहितं विरसमित्येवमा. रति-विषयों से अनुराग, माया, मृषा (असत्य) दिकथनं भक्तकथाः । (मूला. वृ. ६-८६) । मौर मिथ्यादर्शन-अतत्वश्रद्धानरूप शल्य इन २. अतिप्रवृद्धभोजनप्रीत्या विचित्रमण्डकावलीखण्डसबका परित्याग करता है। ईर्या-भाषा आदि समि- दधिखण्डशिताशनपानप्रसंसा भक्तकथा । (नि. सा. तियों का पालन करता है, हित से-परमार्थ से- व.६७)। ३. तथा भक्तकथा यथा- इदं चेदं च अथवा ज्ञानादि से सहित होता है, तथा सदा संयम मांस्पाकमाष-(सा. ध. 'श्यामाकषाय-') मोदकादि के अनुष्ठान में प्रयत्नशील रहता है। ऐसे साधु को साधु भोज्यम्, साध्बनेन भुज्यते, अहमपि बा इदं ब्राह्मण कहना चाहिए। ३ जो ब्रह्मचर्य का पालन भोक्ष्ये इत्यादिरूपा । (योगशा. स्वो. विय. ३-७६; करने वाला है उसे ब्राह्मण कहा जाता है। ४जो सा.ध. स्वो. टी. ४-२२) । व्रतों से संस्कृत होता है वह ब्राह्मण कहलाता है। १ रसना इन्द्रिय का लोलुपी पुरुष 'यह अन्न व ५ जो हिंसा से दूर रहता है, समीचीन व्रतों का खाद्य प्रादि बहुत मधुर है, वह अनेक व्यञ्जनों को पालन करता है, ज्ञानवान होता है, निःस्पृह रहता है संस्कृत करना जानती है, उसके हाथ में पाया और परिग्रह से रहित होता है उसे ब्राह्मण जानना हमा नीरस पदार्थ भी बहुत स्वादिष्ट बन जाता चाहिए । जो जाति के मद से अन्धा रहता है उसे है, इसके विपरीत अमुक के घर पर सभी अनिष्ट, ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता। दुर्गन्ध युक्त व स्वाद से रहित है, इत्यादि प्रकार से ब्राह्मविवाह-१. स ब्राह्मयो विवाहो यत्र वरा- जो चार प्रकार के भोजन से सम्बद्ध चर्चा की यालङ्कृत्य कन्या प्रदीयते। (नीतिवा. ३१-४)। ज्ञाती है उसे भक्तकथा कहा जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016023
Book TitleJain Lakshanavali Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1979
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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