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________________ बादरस्थिति ] शक्यं तद् बादरसूक्ष्ममित्यर्थः । (गो. जी. जी. प्र. ६०३; कार्तिके. टी. २०६ ) । १ स्थूलता से उपलब्धि के होने पर भी जिनका छेदन, भेदन एवं ग्रहण नहीं हो सकता है वे छाया, प्रातप, अन्धकार एवं चांदनी प्रादि बादर-सूक्ष्म माने जाते हैं । ८१८, जैन-लक्षणावली बादर स्थिति - कम्मट्टिदिमावलियाए प्रसंखेज्जदिभागेण गुणिदे बादरट्टिदी जादा । ( धव. पु. ४, पृ. (३०); के विग्राइरिया कम्मट्ठिदीदो बादरट्ठिदी परियम्मे उप्पण्णा त्ति कज्जे कारणोवयारमवलंबिय बादरट्टिदीए चेव कम्मट्ठिदिसण्णमिच्छति XXX। ( धव. पु. ४, पृ. ४०३ ) । कर्मस्थिति को श्रावली के श्रसंख्यातवें भाग से गुणित करने पर बादरस्थिति उत्पन्न होती है । बाल- १. बालो ह्यसदारम्भो XXX। ( षोडशक. १-३) । २. कुतश्चिदसूक्ष्मादसंयमादनिवृत्ति - त्वाद् बालः । X X X यतश्च सर्वत्रासंयतोऽसंयतसम्यग्दृष्टिस्ततो यथोक्तपाण्डित्य वियुक्तत्वाद् बाल: । (भ. श्री. मूला. २६) । ३. बाल: विशिष्टविवेकविकलो XXX। ( षोडषक. वृ. १) । ४. बालो वर्षाष्टकादर्वाक् । (श्र. वि. पृ. ७४) । ५. द्वाभ्याम् - बुभुक्षया तृषा वा ऽऽगलितो बालः । (बृहत्क. मलय. वृ. १६६ ) । १ जिसकी प्रवृत्ति प्रसत् ( निकृष्ट) होती है, अथवा जो असत् - श्रागम में अविद्यमान - श्राचरण करता है, अथवा जो अपनी शक्ति व समय के अनुसार सदा श्राचरण नहीं करता है; उसे बाल कहा जाता है । २ जो स्थूल असंयम से भी निवृत्त नहीं होता है उसे बाल कहते हैं । बालतप - १. बालतपो मिथ्यादर्शनोपेतमनुपायकायक्लेशप्रचुरं निकृतिबहुलव्रतधारणम् । ( स. सि. ६, २०)। २. बालो मूढः इत्यनर्थान्तरम्, तस्य तपो बालतपः । ( त. भा. ६ - २० ) । ३. यथार्थप्रतिपत्त्यभावादज्ञानिनो बाला मिथ्यादृष्ट्यादयस्तेषां तपः बालतपः अग्निप्रवेश- कारीषसाधनादि प्रतीतम् । (त. वा. ६, १२, ७) । ४. मिथ्याज्ञानोपरक्ताशया बालाः - शिशव इव हिताहितप्राप्ति परिहारविमुखाः, तपो जलानलप्रवेशेहिनीसाधन गिरिशिखर - भृगुप्रपातादिल क्षणं XXX अथवा बालं तपो येषां ते वालतपसः । ( त. भा. सिद्ध. वृ. ६-१३ ) । ५. बालानां मिथ्या Jain Education International [बालबाल दृष्टितापस - सांन्यासिक-पाशुपत परिव्राजकै कदण्ड-त्रिदण्ड- परमहंसादीनां तपः कायक्लेशादिलक्षणं निकृतिबहुलव्रतधारणं च बालतपः । (त. वृत्ति श्रुत. ६–२०) । १ मिथ्यादर्शन से युक्त जो तप मोक्ष का साधक न होकर अधिक कायक्लेश से परिपूर्ण होता है तथा जिसमें मायाचार से युक्त व्रतों को धारण किया जाता है वह बालतप कहलाता है । २ बाल और मूढ़ (मूर्ख) ये समाधार्थक शब्द हैं, बाल के तप को बालतप कहा जाता है । बाल - पण्डितमरण – १. देसेक्क देसविरदो सम्मादिट्ठी मरिज्ज जो जीवो। तं होदि बाल पंडिदमरणं जिणसास दिट्ठ || ( भ. प्रा. २०७८ ) । २. मिस्सा णाम बाल - पण्डिताः, संयतासंयता इत्यर्थः, तस्य मरणं बाल-पण्डितमरणम् ।। (उत्तरा चू. पृ. १२८, १२९ ) । ३. XX X बाल्यं पाण्डित्यं च यस्य भवति बालपण्डितः, तस्य मरणं बाल-पण्डितमरणम् । (भ. श्री. विजयो. २६ ) । ४. बालपण्डिताः देशविरता:, तेषां मरणं बालपण्डितमरणं । ( समवा. अभय. वृ. १७) | १ जो समस्त श्रसंयम के परित्याग में असमर्थ होता हुआ हिंसादि पापों से एकदेश विरत होता है— स्थूल हिंसादि पापों का ही त्याग करता है-वह देशविरत कहलाता है । इस देशविरत में भी जो देशतः विरत होता है उसे एकदेशविरत ( सम्यग्दृष्टि )। कहा जाता है । उसके मरण को बालपण्डितमरण कहते हैं । २ बाल का अर्थ असंयतसम्यग्दृष्टि प्रौर पंडित का अर्थ संयत है, इनके असंयत-संयत के -- मिश्रणरूप ( संयतासंयत ) बालपण्डित कहलाते हैं । उनके मरण को बाल-पण्डितमरण जानना चाहिए। बालप्रयोगाभास — बालप्रयोगाभासः पञ्चावयवेषु कियद्धीनता । ( परीक्षा. ६ - ४६ ) | प्रतिज्ञा व हेतु आदि पांच अवयवों में से कुछ की हीनता का नाम बालप्रयोगाभास है । बालबाल - अत एव (यथोक्तपाण्डित्यवियुक्तत्वादेव) मिथ्यादृष्टिबलबाल इत्युच्यते, सम्यक्त्वस्याप्यभावेन प्राप्तबाल्यातिशयत्वात् । (भ. आ. मूला. २६) । चारित्र के साथ सम्यग्दर्शन और सम्यज्ञान से भी रहित होने के कारण मिथ्यादृष्टि को बालबाल कहा जाता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016023
Book TitleJain Lakshanavali Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1979
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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