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________________ [बादर अद्धासागरोपम कोटिव्यतिक्रान्तिसमकालम् । ( त. भा. सिद्ध. वू. ४-१५, पृ. २४) । २. तत्र स एवोत्सेघाङ्गुलप्रमितयोजनप्रमाणायाम - विष्कम्भोद्वेधः पल्यो मुण्डिते बहुश्रुतता - बहुश्रुतता युगप्रधानागमता । ( उत्तरा शिरसि यानि संभाव्यमानानि एकाहोरात्र - द्वय होनि. शा. खू. ५८, पृ. ३६ ) । रात्रयावत्सप्ताहोरात्रप्ररूढानि बालाग्राणि तैः प्रायुगश्रेष्ठ भागमों की जानकारी को बहुश्रुतता ग्वन्निचितो भ्रियते ततो वर्षशते वर्षशतेऽतिक्रान्ते कहते हैं । एक बालाग्रापहारेण यावता कालेन स पल्यो निर्लेपो बहुश्रुतभक्ति- १. वारसंगपारया बहुसुदा णाम, भवति तावान् कालविशेष: संख्येयवर्ष कोटीप्रमाणो तेसु भत्ती तेहि वक्खाणिदश्रागमगंथाणुवत्तणं तद- बादरमद्धापल्योपमम् । (बृ. संग्रहणी मलय. वृ. द्वाणपासो वा बहुसुदभत्ती । (धव. पु. ८, पृ. ८) ४) । ३. तस्मिन्नेवोत्सेधाङ्गुलप्रमितयोजनप्रमाणा२. स्व-परसमयविस्तरनिश्चयेषु बहुश्रुतेषु विशुद्धि- याम - विष्कम्भोद्वेधे पल्ये पूर्वोक्तसहजबादरबालायुक्तोऽनुरागो भक्ति: । (चा. सा. पृ. २६) । ३. बहु- निभूतं भृते सति प्रतिवर्षशतमेकैकं बालाग्रमपह्रियते श्रुतेष्वनुरागो भक्तिः । ( भावप्रा. टी. ७७ ) । यावता कालेन स पल्यो निर्लेपीक्रियते तावान् कालो १ जो बारह अंगों के पारगामी हैं वे बहुश्रुत कह- बादरमद्धापल्योपमं विज्ञेयम् । तत्र बादरेऽद्धापल्योलाते हैं, उनके द्वारा व्याख्यात ( उपदिष्ट) आगम पमे संख्या वर्षको यो भवन्तीति । ( प्रव. सारो. ग्रन्थों का पारायण करना व तदनुसार श्राचरण वृ. १०२४ ) । ४. तथा वर्षशते वर्षशते प्रतिक्रान्ते करना, यह उन बहुश्रुतों की भक्ति कहलाती है । पूर्वोक्तपल्यादेक कबालाग्रापहारेण निर्लेपनाकालः २ जो स्व-पर समयों (सिद्धान्तों) के ज्ञाता हैं उन्हें संख्येयवर्ष कोटीमानो बादरमद्धापल्योपमम् । ( संग्रबहुभुत कहा जाता है, उनके विषय में निर्मल परिहणी दे. वृ. ४) । ५. एकादिसप्तान्तदिनोद्गतैः नाम के साथ अनुराग रखना, इसे बहुश्रुतभक्ति केशान्नराशिभिः । भृतादुक्तप्रकारेण पल्यात् पूर्वोक्तकहते हैं । मानतः ॥ प्रतिवर्षशतं खण्डमेकमेकं समुद्धरेत् । निःशेषं निष्ठिते चास्मिन्नद्धापल्यं हि बादरम् ।। (लोकप्र. १, ६८-६६ ) | १ एक योजन विस्तीर्ण और एक योजन गहरे गोल गड्ढे को एक दिन से लेकर अधिक से अधिक सात दिन के उत्पन्न शरीरगत रोमों से ठसाठस भरने पर उनसे परिपूर्ण वह पल्य कहलाता है; उसमें से सौ सौ वर्षों में एक एक रोम के निकालने पर जितने समय में वह रिक्त होता है उतने समय का नाम बादर श्रद्धापल्य है । २ उत्सेघांगुल के प्रमाण से एक योजन लम्बे, चौड़े व गहरे गड्ढे को बालाग्रों से भरकर उनमें से सौ सौ वर्ष में एक एक बाला के निकालने पर जितने सभय में वह रिक्त होता है उतने काल को बादर श्रद्धापल्योपम कहते हैं, जो संख्यात कोटि वर्ष प्रमाण होता है । बादर श्रद्धासागरोपम - १ तथा वर्षशते वर्ष - शते प्रतिक्रान्ते पूर्वोक्तपल्यादेकैकबालाग्रापहारेण निलॅपनाकालः संख्ये वर्ष कोटीमानो बादरमद्धापल्योपमम् । तद्दशकोटीकोट्यो बादरमद्धासागरोपमम् । ( संग्रहणी दे. वृ. ४) । २. तेषां च बादराद्धापल्यो बहुश्रुतता] ( श्रोत्रेन्द्रियजनित) है । २ बहुत प्रकार के घोड़ा, हाथी, गाय और भैंस आदि का जो ग्रहण होता है, इसे बहुविध प्रवग्रह कहा जाता है । ८१२, जैन-लक्षणावली बादर - १. बादरशब्दः स्थूलपर्याय: । ( धव. पु. १, पृ. २४६ ) ; बादरसद्दो कम्मक्खंधस्स स्थूलत्तं भदि । ( धव. पु. १३, पृ. ५० ) । २. छिन्नाः स्वयं संघानसमर्थाः क्षीर-घृत-तैल-तोय- रसप्रभृतयो बादरा: । (पंचा. का. अमृत. वृ. ७६ ) । ३. ये तु छिन्नाः सन्तः तत्क्षणादेव संधानेन स्वयमेव समर्थास्ते स्थूलाः (बादराः) सर्पिस्तैल-जलादय: । (पंचा. का. जय. वृ. ७६) । ४. जलं बादरम्, यत् छेत्तुं भेत्तुमशक्यमन्यत्र नेतुं शक्यं तद्वादरमित्यर्थः । ( कार्तिके. टी. २०६ ) । १ बादर शब्द स्थूल का पर्यायवाची है । २ छिन्न होकर जो स्वयं जुड़ने में समर्थ हैं वे दूध, घी, तेल और पानी आदि बादर माने जाते हैं । बादर श्रद्धापल्योपम - १. तत्रोक्तलक्षणं भाष्ये ( तद्यथा हि नाम योजनविस्तीर्णं योजनोच्छ्रायं वृत्तं पत्यमेकत्राद्युत्कृष्टसप्तरात्रजातानामङ्ग लोम्नां गाढं पूर्णं स्यात्, वर्षशताद् वर्षशताद् एकैकस्मिन्नुद्प्रियमाणे 'शुद्धिनियमतो यावता कालेन तद्रिक्तं स्यादेतत् पल्योपमम् ।) बादराद्धापल्यं संख्येयवर्ष - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016023
Book TitleJain Lakshanavali Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1979
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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