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________________ क्षायोपशमिक-अवधिज्ञानावरणीय] ३८९, जैन-लक्षणावली [क्षायोपशमिक भाव क्षायोपशभिक-अवधिज्ञानावरणीय - गुणपरि- शमिक नाम स्यादवस्थान्तरं स्वतः ।। (पंचाध्या. णामप्रत्ययाः क्षयोपशमनिर्वत्ताः क्षायोपशमिकाः। २-२६२)। (प्राव. हरि. वृ. नि. २५, पृ. २७) । १ मतिज्ञानावरणादि और वीर्यान्तराय कर्म के सर्वक्षयोपशम से रचित अवधिज्ञानावरणप्रकृतियां घाती स्पर्द्धकों के उदयाभावी क्षय से तथा अनदयक्षायोपशमिक या गणपरिणामप्रत्यय कहलाती हैं प्राप्त उन्हीं के सदवस्थारूप उपशम से होने वाले और वे मनुष्य व तियंचों के होती हैं। मति प्रादि ज्ञानों को क्षायोपशमिक ज्ञान कहते हैं। क्षायोपशमिक गुण-कर्मणां क्षयादुपशमाच्चो- क्षायोशमिक भाव-१. उभयात्मको मिश्रः । (स. सि. २-१); सर्वघातिस्पर्द्धकानामुदयक्षयात् त्पन्नो गुणः क्षायोपशमिकः । (धव. पु. १, पृ. तेषामेव सदुपशमाद्देशघातिस्पर्द्धकानामुदये क्षायोप१६१)। कर्मों के क्षय और उपशम (क्षयोपशम) से जो गुण शमिको भावो भवति । (स. सि. २-५) । २. सर्वउत्पन्न होता है उसे क्षयोपशमिक गुण कहते हैं। घातिस्पर्द्धकानामुदयक्षयात्तेषामेव सदुपशमाद्देशघा. तिस्पर्द्धकानामुदये क्षायोपशमिको भाबः ।xxx क्षायोपशमिकगुरपयोग - प्रोहि-मणपज्जयादोहि तत्र यदा सर्वघातिस्पर्द्ध कस्योदयो भवति तदेषजीवस्स जोगो खग्रोवस मियगुण जोगो णाम । (धव. दप्यात्मगुणस्याभिव्यक्ति स्ति, तस्मात्तदुदयस्याभावः पु. १०, पृ. ४३३)। क्षय इत्युच्यते, तस्यैव सर्वघातिस्पर्द्धकस्यानूदयप्राप्तअवधि और मनःपर्यय आदि गुणों के साथ जो स्य सदवस्था उपशम इत्युच्यते, अनुभूतस्ववीर्यजीव का सम्बन्ध होता है उसे क्षायोपशमिक सचि वृत्तित्वात् प्रात्मसाद्भावितत्सर्वघातिस्पर्द्धकस्योदयत्तगुणयोग कहते हैं। क्षये देशघातिस्पर्द्धकस्य चोदये सति सर्वघात्यभावाक्षायोपशमिक चारित्र-अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यान दुपलभ्यमानो भाव: क्षायोपश मिक इत्युच्यते । (त. प्रत्याख्यानद्वादशकषायोदयक्षयात् सदुपसमाच्च सं. वा. २, ५, ३)। ३. कर्मण एव कस्यचिदंशस्य ज्वलनकषायचतुष्टयान्यतमदेशघातिस्पर्द्धकोदये नो क्षयः, कस्यचिदुपशमः, ततश्च क्षयश्चोपशमश्च कषायनवकस्य यथासम्भवोदये च निर्वत्तिपरिणामः क्षयोपशमो, ताभ्यां निवत्तः क्षायोपशमिकः। (अनुप्रात्मनः क्षायोपशमिकं चारित्रम । (स. सि. २-५; यो. हरि. व. पु. ३८)। ४. क्षयोपशमाभ्यां त. वा. २, ५, ८)। निवत्तः क्षायोपशमिकः । (त. भा. हरि.व. २-१)। अनन्तानुबन्धी प्रादि बारह कषायों के उदयाभावी ५. कम्मोदए संते वि जं जीवगुणक्खंडमुवलंभदि सो क्षय से, उन्हीं के सदवस्थारूप उपशम से तथा संज्व खम्रोवसमियो भावो णाम । (धव. पु. ५, पृ. १८५); लनकषायचतुष्क में से किसी एक के देशघातिस्पर्स पडिबंधिकम्मोदए संत वि जो उवल भइ जीवगुणो कों के उदय से और नौ नोकषायों में से यथा सो खग्रोवसमित्रो उच्चइ। कुदो ? सव्वघादणसम्भव उदय होने पर जो विषय-कषायों से प्रात्मा सत्तीए प्रभावो खग्रो उच्चदि, खो चेव उवसमो में निवृत्ति परिणाम उत्पन्न होता है, उसे क्षायोप खोवसमो, तम्हि जादो भावो खग्रोवसमिमो। शमिक चारित्र कहते हैं। (धव. पु. ५, पृ. १९८); सम्मत्तस्स देशधादिमायापशमिक ज्ञान-१. मतिज्ञानाद्यावरण-वीर्या- फहयाण उदएण सह वट्टमागो सम्मत्तपरिणामो न्त रायकर्मद्रव्याणामनुभागस्य सर्वघातिस्पर्धकानामु- खग्रोवसमियो। (धव. पु. ५, पृ. २००)। ६. तपा. दयाभावः क्षयः, तेषामेवानुदय प्राप्तानां सदवस्था ज्ञानादिघातिनां पुद्गलाना क्षयोपशमो-केचित उपशम:, क्षयश्चासौ उपशमश्च क्षयोपशम;, तत्र क्षपिता: केचिदुपशान्ता इति क्षयोपशमावुच्येते, भवानि तत्प्रयोजनानि वा क्षायोपशमिकानि । (गो. ताभ्या निवतोऽध्यवसायः क्षामोशमिकः। (त. जी. म. प्र. व जी. प्र. टी. ३००)। २. क्षायोप- भा. सिद्ध. व. १-५, पृ. ४८); क्षयोपशमाभ्यां शमिकं ज्ञानमक्षयाकर्मणां सताम् । प्रात्मजातेश्च्यु- निर्वृत्तो मिश्रः प्रजायते । (त. भा. सिद्ध. व. २-१)। तेरेतदबद्धं चाशु द्वमक्रमात् ।। (पंचाध्या. २-१२१); ७. सर्वघा तिस्पर्द्ध कानामुदयक्षयात् तेषामेव सदुपतत्रालापस्य यस्योच्चैर्यावदंशस्य कर्मणः। क्षायोप- शमात् नईशघातिस्पर्द्धकानामुदयात् क्षायोपशमिको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016022
Book TitleJain Lakshanavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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