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________________ प्रकाशकीय 'जैन लक्षणावली' का प्रथम भाग पाठकों के हाथों में सौंपते हुए हार्दिक सन्तोष का अनुभव होता है। इसके प्रकाशन से एक चिर परिकल्पित वृहत् योजना के प्रथम चरण की पूर्ति होती है। प्राचीन भारतीय विद्याओं के व्यापक सन्दर्भ में जैन वाङ्मय, इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व के अध्ययन-अनुशीलन और प्रकाशन के जिस उद्देश्य से 'वीर-सेवा-मंदिर' की स्थापना की गयी थी, उस दिशा में यह एक विशेष कदम है। 'वीर-सेवा-मंदिर' और उसकी शोध-प्रवृत्तियां __'वीर सेवा मंदिर' की स्थापना स्व. प्राचार्य जुगलकिशोर मुख्तार ने अपने जन्म-स्थान सरसावा जिला सहारनपुर (उ. प्र.) में अक्षय तृतीया (बैसाख शुक्ल तृतीया), विक्रम संवत् १९९३, दिनांक २४ अप्रैल सन् १९३६ में की थी । इस संस्था के माध्यम से स्व. मुख्तार साहब ने तथा संस्था से सम्बद्ध अन्य विद्वानों ने जैन वाङ्मय के अनेक दुर्लभ, अपरिचित और अप्रकाशित ग्रन्थों की खोज की तथा प्राचीन पाण्डुलिपियों के सम्यक परीक्षण-पर्यालोचन और सम्पादन की नींव डाली। संस्था ने जो ग्रन्थ प्रकाशित किये उनकी विस्तृत शोधपूर्ण प्रस्तावनाएं न केवल उन ग्रन्थों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, प्रत्युत जैन प्राचार्यों और उनकी कृतियों पर भी विशद प्रकाश डालती हैं। प्राचार्य समन्तभद्र प्राचार्य समन्तभद्र पर मुख्तार साहब की अगाध श्रद्धा थी। दिल्ली में उन्होंने सन् १९२६ में समन्तभद्राश्रम की स्थापना की थी और 'अनेकान्त' नामक शोधपूर्ण मासिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया था। बाद में यही संस्था 'वीर सेवा मंदिर' के रूप में प्रतिष्ठित हुई और 'अनेकान्त' उसका मुख पत्र बना। प्राचार्य समन्तभद्र भारतीय दार्शनिक जगत में अद्वितीय माने जाते हैं, और उनके ग्रन्थ जैन दर्शन के आधार-ग्रन्थों के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मुख्तार साहब ने प्राचार्य समन्तभद्र के जीवन पर सर्वप्रथम विस्तार के साथ प्रकाश डाला। उनके ग्रन्थों का सम्पादन किया। उनका विद्वत्तापूर्ण-विवेचनविश्लेषण प्रस्तुत किया। जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने समन्तभद्र स्मारक की एक विशाल योजना भी बनायी थी, किन्तु वह क्रियान्वित नहीं हो पायी। 'अनेकान्त' शोध-पत्र __ मुख्तार साहब ने 'अनेकान्त' नाम से जिस शोध मासिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया था वह धीर सेवा मंदिर' के मुख-पत्र के रूप में अब भी चल रहा है। अनुसन्धान के क्षेत्र में इस पत्र ने जो शोधसामग्री विद्वत समाज के सामने प्रस्तुत की, उससे अनेक नये तथ्य उद्घाटित हुए और अनुसन्धान-कार्य को नयी दिशा-दृष्टि प्राप्त हुई। प्राचार्य जुगलकिशोर मुख्तार प्राचार्य जुगलकिशोर मुख्तार स्वयं में एक संस्था थे । उनका सम्पूर्ण जीवन साहित्य और समाज के लिए समर्पित रहा । उनका जन्म मगसिर सुदी एकादशी, वि. सं. १९३४ में, सरसावा में हुआ था। कुछ समय तक उन्होंने मुख्तार का कार्य कुशलता के साथ किया। वह जैन समाज के पुनर्जागरण का युग था। मुख्तार साहब एक क्रान्तिकारी समाज-सुधारक के रूप में आगे आये। उन्होंने सामाजिक क्रान्ति की दिशा को सुदृढ़ शास्त्रीय प्राधार दिये । 'जैन गजट' तथा 'जैन हितैषी' के सम्पादक के रूप में उन्होंने सामाजिक पुनर्जागरण का सिंहनाद किया। उनके द्वारा रचित 'मेरी भावना के कारण वे जैन जन-मानस में पैठ गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016021
Book TitleJain Lakshanavali Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages446
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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