SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माहारकसमुद्घात] २२६, जैन-लक्षणावली [आहारद्रव्यवर्गणा और प्रत्यंग उत्पन्न होते हैं उसे प्राहारकशरीरांगो- आहारक और कार्मण शरीर सम्बन्धी पुद्गलस्कन्धों पांग नामकर्म कहते हैं। का जो एक जीवमें परस्पर बन्ध होता है उसे पाहारपाहारकसमुद्घात-१. अथोक्तविधिना अल्पसा- कार्मणशरीरबन्ध कहते हैं। वद्य-सूक्ष्मार्थग्रहणप्रयोजनाहारकशरीरनिर्वृत्त्यर्थ प्रा- प्राहारकाहारकबन्धन-देखो आहारक-पाहारकहारकसमुद्धातः। (त. वा. १,२०, १२, पृ.७७)। बन्धन । पूर्वगृहीतानामाहारकपुद्गलानां स्वैरेवाहार२. पाहारके प्रारभ्यमाणे समुद्घात आहारकसमुद्- कपुद्गलैगृह्यमाणः सह यः सम्बन्धः स पाहारकाघातः । स च आहारकशरीरनामकर्माश्रयः। (जीवा- हारकबन्धनम् । (पंचसं. मलय. वृ. ३-११, पृ. जी. मलय. व. १-१३, पृ. १७; पंचसं. मलय. वृ. १२१, कर्मप्र. यशो. टी. १, पृ. ७)। २-१७, पृ. ६४)। पूर्वगृहीत आहारकपुद्गलों का गृह्यमाण प्राहारक१ अल्प पाप और सूक्ष्म तत्त्वों के अवधारण रूप पुद्गलों के साथ सम्बन्ध होने को प्राहारकाहारकप्रयोजन को सिद्ध करने वाले प्राहारक शरीर को बन्धन कहते हैं। रचना के लिए जो समुद्घात (प्रात्मप्रदेशबहिर्गमन) आहार-तैजस-कार्मरणशरीरबन्ध--पाहार-तेयाहोता है उसे पाहारकसमुदघात कहते हैं। कम्मइयसरीरबंधो (आहार-तेया-कम्मइयसरीरआहारकसंघातननाम-यदुदयात् माहारकशरीर. खंधाणं एक्कम्हि जीवे णिविटाणं जो अण्णोण्णेण स्वपरिणतान् पुद्गलानात्मा सङ्घातयति अन्योऽन्य- बंधो सो आहार-तेया-कम्मइयसरीरबंधो णाम )। सन्निधानेन व्यवस्थापयति तद् पाहारकसंघातन- षट्खं. ५, ६,५६-पु. १४, पृ. ४४)। नाम । (कर्मवि. दे. स्वो. वृ. ३५, पृ. ४७)। पाहारक, तेजस और कार्मण शरीरों सम्बन्धी पूदजिस कर्म के उदय से प्राहारक शरीररूप से परिणत गलस्कन्धों का जो एक जीव में परस्पर बन्ध होता हुए पुद्गल परमाणुओं को प्रात्मा संघातित करता है है उसे प्राहार-तैजस-कार्मणशरीरबन्ध कहते हैं। -परस्पर के संनिधान (समीपता) से व्यवस्थापित आहार-तैजसशरीरबन्ध-पाहारतेयासरीरबंधो करता है-उसे पाहारकसंघातन नामकर्म कहते हैं। (पाहार-तेयासरीरक्खंधाणं एकम्हि जीवे णिविट्राणं पाहारकाङ्गोपाङ्गनाम-देखो आहारशरीरांगो- जो अण्णोण्णेण बंघो सो आहार-तेयासरीरबंघो ग। यदुदयाद् आहारकशरीरत्वेन परिणतानां णाम)। (षट्खं. ५, ६,५४-पु. १४, पृ. ४३) । पुदगलांनामाङ्गोपाङ्गविभागपरिणतिरुपजायते तद् आहारक और तेजस शरीरों के पुदगलस्कन्धों का आहारकाङ्गोपाङ्गनाम । (कर्मवि. दे. स्वो. व. ३३, एक जीव में जो परस्पर वन्ध होता है उसे पाहारपृ. ४६)। तैजस शरीरबन्ध कहते हैं। जिस कर्म के उदय से प्राहारकशरीररूप से परिणत पाहारद्रव्यवर्गणा-१. आहारदव्ववग्गणा णाम हुए पुद्गल परमाणुओं का अंग-उपांग के विभाग का॥ आहारदव्ववग्गणं तिण्णं सरी से परिणमन होता है उसे पाहारकाङ्गोपाङ्ग नाम- पवत्तदि । ओरालिय-वेउव्विय- आहारसरीराणं कर्म कहते हैं। जाणि दव्वाणि घेत्तण ओरालिय-वे उव्विय-आहारपाहारकाययोग- अाहरति आत्मसात् करोति सरीरत्ताए परिणामेदूण परिणमंति जीवा ताणि सूक्ष्मानाननेनेति आहारः । तेन आहारकायेन योगः दव्वाणि आहारदव्वग्गणा णाम । (षट्खं. ५, ६, आहारकाययोगः । (धव. पु. १, पृ. २६२)। ७२८-३०-पु. १४, पृ. ५४६)। २. जिस्से परसूक्ष्म पदार्थोंको प्रात्मसात् करने वाले प्राहारकाय से माणुपोग्गलवखंधे घेतण तिण्णं सरीराणं गहणं णिप्पजो योग होता है उसे पाहारकाययोग कहते हैं। ती पवत्तदि होदि सा आहारदव्ववग्गणा णाम । आहारकार्मरणशरीरबन्ध-ग्राहार-कम्मइयशरी- (धव. पु. १४, पृ. ५४६); जाणि ओरालिय-वेउ. रबंधो (आहार-कम्मइयसरीरवखंधाणं एक्कम्हि जीवे बिय-पाहारसरीराणं पायोग्गाणि दव्वाणि ताणि णिविट्ठाणं जो अण्णोण्णेण बंधो सो प्राहार-कम्मइय- घेत्तूण पाविऊण अोरालिय-वेउव्विय आहारसरीरत्ताए सरीरबंधो णाम-देखो सू. ४८ की धवला)। (षट- पोरालिय-वेउव्विय-पाहारसरीराणं सरूवेण ताणि खं. ५, ६, ५५-पु. १४, पृ. ४३) । परिणामेदूण परिणमाविय जेहि सह परिणमंति बंधं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016021
Book TitleJain Lakshanavali Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages446
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy