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________________ प्रभावप्रमाणता] जिस स्थान पर भव्य और प्रभव्य जीवों के स्थिति और अनुभाग बन्ध आदि कराने वाले परिणाम समान होकर प्रवृत्त होते हैं, उन्हें प्रभव्यसिद्धिकप्रायोग्य परिणाम कहते 1 ११२, जैन-लक्षणावली प्रभावप्रमारणता - प्रत्यक्षादेरनुत्पत्तिः प्रमाणाभाव उच्यते । साऽऽत्मनोऽपरिणामो वा विज्ञानं वाऽन्यवस्तुनि || प्रमाणपञ्चकं यत्र वस्तुरूपे न जायते । वस्तुसत्ताववोधार्थं तत्राभावप्रमाणता || ( प्रमाल ३८१-८२; प्र. क. मा. पृ. १८६ व १६५ उ.) 1 प्रत्यक्षादि प्रमाणों की प्रनुत्पत्ति को, अथवा उक्त प्रत्यक्षादि प्रमाणरूप श्रात्मा के परिणत न होने को श्रथवा अन्य वस्तु विषयक विज्ञान को प्रभाव प्रमाण कहते हैं । श्रभिगत -- १. सम्मत्तम्मि अभिगग्रो विजाणमो वा वि अब्भवगओ वा । ( बृहत्क. भा. ७३४)। २. सम्यक्त्वे य ग्राभिमुख्येन गतः प्रविष्टः सोऽभिगत उच्यते, यो वा जीवादिपदार्थानां 'विज्ञायक:' विशेषेण ज्ञाता सोऽभिगतः, यद्वा यः अभ्युपगतः - 'यावज्जीवं मया गुरुपादमूलं न मोक्तव्यम्' इति कृताभ्युपगमः सोऽभिगतः । ( बृहत्क. वृ. ७३४ ) । अथवा प्रथवा जो सम्यक्त्व के श्रभिमुख हो चुका है, जीवादि पदार्थों का विशेषरूप से ज्ञाता है, जो यह प्रतिज्ञा कर चुका है कि मैं जीवन पर्यन्त गुरु के पादमूल को नहीं छोडूंगा, उसे अभिगत कहते हैं । यह उत्सारकल्पयोग्य के कुछ गुणों में से एक है । अभिगतचारित्रार्य- देखो अधिगतचारित्रार्थ | अभिगमन- अभिगमनं सर्वबाह्यान्मण्डलादभ्यन्तरप्रवेशनम् । (जीवाजी. मलय. वृ. ३- २, पृ. १७६; सूर्य प्र. वृ. १३ - ८१) । बाहिरी मण्डल से भीतरी मण्डल में प्रवेश करने को भिगमन कहते हैं । अभिगमर्श -- - १. सो होइ अभिगमरुई सुणाणं जेण प्रत्थदि । एक्कारसमंगाई पइन्नगं दिट्ठिवाय । (उत्तरा २८ - २३, पृ. ३२० ) । २. अर्थ - तः सकलसूत्रविषयिणी रुचिरभिगमरुचिः । ( धर्मसं. स्व. वृ. २, २२, पृ. ३८ ) । जिसने अर्थ स्वरूप से ग्यारह अंग, प्रकीर्णक और दृष्टिवाद रूप सकल श्रुतज्ञान का अभ्यास किया है Jain Education International [ अभिगृहीता भाषा उसे श्रभिगमरुचि कहते हैं । अभिगृहीत - १. अभिग्गहिदं यद्द शाभिमुख्येन गृहीतं स्वीकृतं श्रश्रद्धानम् अभिगृहीतमुच्यते । (भ. प्रा. विजयो. टी. ५६ ) । २. अभिग्गहिदं परोपदेशादाभिमुख्येन स्वीकृतम्, परोपदेशजम् इत्यर्थः । ( भ. प्रा. मूला. टी. ५६ ) । ३. अभि श्राभिमुख्येन तत्त्वबुद्ध्या, गृहीतं यथा भौत - भागवत - बौद्धादिभिः । ( पंचसं स्वो वृ. ४-२ ) । २ दूसरे के उपदेश से ग्रहण किये गये मिथ्यात्व को अभिगृहीत मिथ्यात्व कहते हैं । अभिगृहीत दृष्टि - प्रभिमुखं गृहीता दृष्टिः, इदमेव तत्त्वमिति बुद्धवचनं सांख्य कणादादिवचनं वा । ( त. भा. सिद्ध. वृ. ७ - १८, पृ. १०० ) । तत्त्व - यथार्थ वस्तुस्वरूप यही है, इस प्रकार बुद्ध, सांख्य व कणाद श्रादि के वचनों पर श्रद्धा करने at भी दृष्टि कहते हैं । श्रभिगृहीता ( मिथ्यात्व) क्रिया -- तत्राभिगृहीता त्रयाणां त्रिषष्ट्यधिकानां प्रवादिशतानाम् । (त. भा. सिद्ध. वृ. ६-६ ) । तीन सौ तिरेसठ प्रवादियों के तत्त्व पर श्रद्धा रखने को अभिगृहीता क्रिया कहते हैं । श्रभिगृहीता भाषा - १. जा पुण भासा प्रत्थं अभिगि भासिया सा श्रभिग्गहिया । ( दशवं. चू. २८०, पृ. २३६ ) । २. श्रर्थमभिगृह्य योच्यते घटादिवत् । ( दशवै. नि. हरि. वृ. २७७, पृ. २१० ) । ३. भाषा चाभिगृहे वोद्धव्या-अर्थमभिगृह्य या प्रोच्यते घटादिवदिति । (श्राव. ह. वृ. मल. हेम. टि. पृ. ८० ) । ४. अभिगृहीता प्रतिनियतार्थावधारणम् । ( प्रज्ञाप. मलय. वृ. ११ - १६६ ) । ५. अभिगृहीता प्रतिनियतार्थावधारणरूपा यथेदमिदानीं कर्तव्यमिदं नेति । यद्वा XX X अभिगृहीता तु प्रर्थमभिगृह्य योच्यते घटादिवत् । (धर्मसं. मान. स्वो वृ. ३-४१, पृ. १२३ ) । ६. अनेकेषु कार्येषु पृष्टेषु यदेकतरस्यावधारणमिदमिदानीं कर्तव्यमिति सा श्रभिगृहीता ऽथवा घट इत्यादिप्रसिद्धप्रवृत्तिनिमित्तकपदाभिधानं सेति द्रष्टव्यम् । ( भाषार. टी. ७८ ) । १ अर्थ को ग्रहण करके जो भाषा बोली जाती हैजैसे 'घट' श्रादि- वह श्रभिगृहीता भाषा कही जाती है । ६ अनेक कार्यों के पूछे जाने पर 'इस समय इसे करो' इस प्रकार किसी एक का निश्चय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016021
Book TitleJain Lakshanavali Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages446
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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