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________________ ८० देखो अवदार | संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अवत्थरा स्त्री [दे] पाद-प्रहार | अवस्था स्त्री [अवस्था ] दशा, अवस्थिति | अवत्थाव सक [अव + स्थापय् ] स्थिर करना, ठहराना । व्यवस्थित करना । अवत्थिय देखो अवट्टिय | अवत्थिय वि [ अवस्तृत ] प्रसारित । अवत्थु न [ अवस्तु ] अभाव, असत्त्व | वि. अवपंगुर निरर्थक, निष्फल | अवथंभ देखो अवठंभ | अवदग्ग देखो अवयग्ग | अवदल वि [अपदल] साररहित | अपक्व । अवदहण न [ अवदन] दम्भन, गरम लोहे चर्म ( फोड़े आदि ) पर | के कोश आदि दागना । अवदाण न [ अवदान ] शुद्ध कर्म । अवदाय वि [ अवदात ] पवित्र, निर्मल । सफेद । अवदार न [ अपद्वार ] छोटी खिड़की । गुप्त द्वार । अवदाल सक [अव + दलय् ] खोलना । विकसित करना । विजृम्भित करना । अवदिसा स्त्री [अपदिक् ] भ्रान्त दिशा । अवदेस देखो अवएस । अवद्दार अबद्दाल अवद्दाहणा स्त्री. देखो अवदहण । अवदुस न [दे] उलूखल आदि घर का सामान्य उपकरण । अवद्धंस पुं [अवध्वंस ] विनाश । अवधंसि वि [ अपध्वंसिन् ] विनाशकारक | अवधार सक [अव + धारय् ] निश्चय करना । अवधारणा स्त्री. दीर्घकाल तक याद रखने की शक्ति । अवधाव सक [अप + धाव् ] पीछे दौड़ना । अवधिका स्त्री [] उपदेहिका, दीमक । अवधीरियवि [अवधीरित] तिरस्कृत, अपमानित | Jain Education International अवत्थरा - अवमग्ग अवधुण सक [अव + धू] परित्याग करना । अवधूण अवज्ञा करना । अवधूयवि [ अवधूत ] अवज्ञात, तिरस्कृत | विक्षिप्त । अवनय पुं [अपनिद्रक] निद्रा का अभाव । अवगुण सक [] खोलना | अवपक्का स्त्री [अवपाक्या ] छोटा तवा । [अवस्पृष्ट] जिसका स्पर्श किया गया हो वह । सिवि [] संघटित, संयुक्त । अवपूर सक [ अव + पूरय् ] पूर्ण करना । अवपेक्ख सक [ अवप्र + ईक्ष् ] अवलोकन करना । अप्पओग पु [अपप्रयोग] उलटा प्रयोग, विरुद्ध औषधियों का मिश्रण । अवप्फार पुं' [अवस्फार] विस्तार, फैलाव । अवबंध [अवबन्ध ] बन्ध, बन्धन । अवबद्ध वि. बँधा हुआ, नियन्त्रित । अवबाण वि [ अपबाण ] बाणरहित । अवबुज्झ सक [ अव + बुध् ] जानना । समझना । अवबोह पुं [अवबोध ] ज्ञान, बोध | विकास | जागरण । स्मरण । अवबोहि पु [ अवबोधि ] ज्ञान । निश्चय, निर्णय । अवभास अक [ अव + भास् ] प्रकाशित होना । चमकना, अवभास पुं. प्रकाश । ज्ञान । अवभासण वि [ अवभासन] प्रकाश कर्त्ता । अवभासय वि [अवभासक ] प्रकाशक । अवभासिय वि[ अपभाषित] आक्रुष्ट, अभिशप्त । अवम देखो ओम | अवमग्ग पु [अपमार्ग ] खराब रास्ता । अवमग्ग पुं [अपामार्ग] वृक्ष - विशेष, चिचड़ा, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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