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________________ ८५८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष सुठिअ-सुत्तिय सठिअ देखो सढिअ। सुण्हा स्त्री [सास्ना] गौ का गल-कम्बल । सुढ सक [स्मृ] याद करना । °ल पुं. बैल । 'लचिंध पुं [°लचिह्न] भ० सुहिअ वि [दे] श्रान्त । संकुचित अंगवाला। ऋषभदेव । महादेव । सुण सक [श्रु] सुनना। सुण्हा स्त्री [स्नुषा] पुत्र-वधू । सणंद पुं[सुनन्द] एक राजर्षि । भ० वासुपूज्य | सुतणु स्त्री [सुतनु] नारी, स्त्री। को प्रथम भिक्षा-दाता गृहस्थ । पुन. एक देव- | सुतरं अ [सुतराम्] निश्चित अर्थ के अतिशय विमान । देखो सुनंद। का सूचक अव्यय । सुणंदा स्त्री [सुनन्दा] भ० पार्श्वनाथ की मुख्य सुतवसिय न [सुतपसित] तपश्चर्या का श्राविका। तृतीय चक्रवर्ती को पटरानी सुन्दर अनुष्ठान । तीसरा स्त्री-रत्न । भूतानन्द आदि इन्द्रों के सुतार वि. अत्यन्त निर्मल । अतिशय ऊँचा । लोकपालों की अग्रमहिपियाँ । अच्छा तैरनेवाला । अत्युच्च आवाजवाला । सुतारया स्त्री. भ० सुविधिनाथ की शासनसुणक्खत्त पुं [सुनक्षत्र] एक जैन मुनि । भ० महावीर का शिष्य एक मुनि । सुतारा ( देवी । सुग्रीव की पत्नी । आभूषण विशेष । सुणक्खत्ता स्त्री [सनक्षत्रा] पक्ष की दूसरी सुतोसअ वि [स्तोष्य] सुख से तुष्ट करने रात। योग्य। सुणग देखो सुणय। सुत्त सक [सूत्रय ] बनाना। सुणण न [श्रवण] सुनना। सुत्त देखो सुअ = श्रुत । सुणय, पुंस्त्री [शुनक] कुत्ता। पुं. छन्द | सुत्त देखो सोत्त = स्रोतस् । श्रोत्र । सुणह । विशेष । सुत्त वि [सुप्त] सोया, शयित । सुणहिल्लया स्त्री [शुनकी] कुत्ती । सुत्त वि [सूक्त] सुचारु रूप से कहा हुआ । न. सुणावण न [श्रावण] सुनाना । सुभाषित। सुणाविअ वि [श्रावित] सुनाया हुआ। सुत्त न [सूत्र] धागा, वस्त्र-तन्तु । नाटक का सुणासीर पुं [सुनासीर] इन्द्र , देव-राज । प्रस्ताव । शास्त्र-विशेष । °आर पुं [°कार] सुणाह देखो सुनाभ । ग्रन्थकार । °कंठ ' [°कण्ठ] विप्र । °कड सुणिअ पुं [शौनिक] कसाई । न [कृत] द्वितीय जैन आगम-ग्रन्थ । °ग न सुणुसुणाय अक [ सुननाय ] 'सुन्'-'सुन्' [क] यज्ञोपवीत । °धार पुं. देखो हार । आवाज करना। °फासियणिज्जुत्ति स्त्री [°स्पर्शिकनियुक्ति सुण्ण न [शून्य] निर्जन स्थान । वि. रिक्त। सूत्र की व्याख्या । °रुइ स्त्री ["रुचि] निष्फल, निष्प्रयोजन । न. एकाशन-व्रत । शास्त्र-श्रद्धा । °हार पुं [°धार] प्रधान नट, देखो सुन्न । बढ़ई। सुण्णआर देखो सुण्णार। सुण्णइअ ) वि [ शून्यित ] शून्य किया | | सुत्ति स्त्री [शुक्ति] सीप, घोंघा । °मई स्त्री सुण्णविअ हुआ। [°मती] चेदि देश की प्राचीन राजधानी । सुण्णार पुं[सुवर्णकार] सोनी । सुत्ति स्त्री [सूक्ति] सुन्दर वचन । °वत्तिया सुण्ह देखो सण्ह = सूक्ष्म । स्त्री [°प्रत्यया] एक जैन मुनि-शाखा । सुण्हसिअ वि [दे] सोने की आदतवाला । । सुत्तिय देखो सोत्तिअ = सौत्रिक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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