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________________ ८३२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष साउलय-साण साउलय वि [साकुलत] आकुलता-युक्त । । सागरोवम पुन [सागरोपम] दस-कोटाकोटिसाउली स्त्री [दे] । देखो साहुली। पल्योपम-परिमित काल । साउल्ल पुं[दे] अनुराग। सागार वि [साकार] आकार-सहित । विशेसाएज्ज देखो साइज्ज । षांश को ग्रहण करने की शक्ति, विशेष-ग्रहण, साएय न [साकेत] । °पुर न. । 'पुरी स्त्री. | ज्ञान । अपवाद-युक्त । °पस्सि वि [°दर्शिन्] अयोध्या नगरी। ज्ञानवाला। साएया स्त्री [साकेता] अयोध्या नगरी । सागार वि. गृह-युक्त, गृहस्थ । सांतवण न [सान्तपन] व्रत-विशेष । सागारि । वि [सागारिन्, °रिक] गृह साक देखो साग। सागारिय , का मालिक, उपाश्रय का साकेय न [साकेत] नगर-विशेष, अयोध्या।। वि. गृहस्थ-सम्बन्धी । न. प्रत्याख्यान-विशेष । मालिक, साधु को स्थान देनेवाला गृहस्थ, साकेय वि [ साङ्केत ] संकेत-सम्बन्धी । न. शय्यातर। सूतक, प्रसव और मरण की अशुद्धि, अशौच । गृहस्थ से युक्त । न. प्रत्याख्यान का एक भेद । मैथुन । वि. मैथुन । वि. शय्यातर गृहस्थ का, साग पुं [शाक] वृक्ष-विशेष । तक्र-सिद्ध बड़ा | उपाश्रय के मालिक से सम्बन्ध रखनेवाला । आदि खाद्य । शाक। सागेय देखो साकेय = साकेत । सागडिअ वि [शाकटिक] गाड़ीवान् । साड सक [शाटय, शातय ] सड़ाना, विनाश सागय न [स्वागत] प्रशस्त आगमन । अतिथि करना । छेदन करना। सत्कार, बहु-मान । कुशल । साड पुं [ शाट, शात ] शाटन, विनाश । सागर पुं. समुद्र । एक राज-पुत्र । राजा शाटक, उत्तरीय वस्त्र, चद्दर । वस्त्र । अन्धकवृष्णि का एक पुत्र । एक वणिक्व्यापारी। सातवें बलदेव तथा वासुदेव के साडअ | पुंन [शाटक] वस्त्र, कपड़ा। साडग पूर्व भव के धर्म-गुरु । पुन. कूट-विशेष । साडणा स्त्री [ शाटना, शातना ] खण्ड-खण्ड समय-परिमाण-विशेष, दश-कोटाकोटि-पल्यो होकर गिराने का कारण, विनाश-कारण । पम-परिमित काल । एक देव-विमान । कत पुन [°कान्त] एक देव-विमान । °चंद पुं साडिअ वि [ शाटित, शातित ] सड़ाकर [°चन्द्र] एक जैन आचार्य । एक व्यक्ति । गिराया हुआ, विनाशित। °चित्त पुन [°चित्र] कूट-विशेष । दत्त पुं. | साडिआ स्त्री [शाटिका] वस्त्र । एक जैन मुनि । तीसरे बलदेव का पूर्वजन्मीय साडिल्ल देखो साड = शाट । नाम । एक श्रेष्ठि-पुत्र । एक सार्थवाह। साडी स्त्री [शाटी | साडी स्त्री [शाटी] वस्त्र । हरिषेण चक्रवर्ती का एक पुत्र । °दत्ता स्त्री. साडी स्त्री [शकटी] गाड़ी। °कम्म पुंन भधर्मनाथजी की दीक्षा-शिविका । भविमल- [°कर्मन्] गाड़ी बनाना, बेचना, चलाना नाथजी की दीक्षा-शिविका । °देव पुं. हरिषेण | आदि शकट-जीविका । चक्रवर्ती का एक पुत्र । वह पुं [व्यह] | साडीया देखो साडिआ। सैन्य की रचना-विशेष । देखो सायर - साडोल्लय देखो साडअ। सागर। साण सक [शाणय] शाण पर चढ़ाना, तीक्ष्ण सागरिअ देखो सागारिय। करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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