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________________ संव-सव्व संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ८२७ गाली देना । आह्वान करना। सौगन्ध । दिव्य, दोषारोप की शुद्धि के लिए सव सक [सू] उत्पन्न करना, जन्म देना। किया जाता अग्नि-प्रवेश आदि । सव देखो सो = सु । सवाग सव अक [स्त्र] झरना, चूना। सवाय देखो स-वाग = श्व-पाक । सव पुं [श्रवस्] कान । ख्याति । सवाय पुं [दे] श्येन पक्षी। सव न [शव] मुरदा, मृत शरीर । सवाय पुं [दे] स-वाय = स-पाद, स-वाद, सद्सवंती स्त्री [स्रवन्ती] नदी। वाच । सवक्की देखो सवत्ती। सवार न [दे] सुबह । सवक्ख देखो स-वक्ख %D स-पक्ष । सवास पुं दें। ब्राह्मण । सवग्गीय वि [सवर्गीय] सवर्ग-संबन्धी । सवास देखो स-वास = स-वास । सवच देखो स-पच = श्व-पच । सविअ वि [शप्त] शाप-ग्रस्त, आक्रुष्ट । सवजा देखो सपज्जा। सविउ [सवित] सूर्य । हस्त-नक्षत्र का सवडंमुह ) वि (दे] अभिमुख, संमुख । अधिपति देव । हस्त नक्षत्र । सवडहुत्त । सविक्ख वि [सापेक्ष] अपेक्षा रखनेवाला । सवण देखो समण = श्रमण । सविज्ज देखो स-विज्ज = स-विद्य । सवण [श्रवण] कर्ण । नक्षत्र-विशेष । एक सविद्रा स्त्री [श्रविष्ठा] घनिष्ठा नक्षत्र । ऋषि । न. सुनना। सविण देखो सुमिण = स्वप्न । सवण देखो स-वण = स-व्रण । सवितु देखो सविउ । सवण न [सवन] कर्मों में प्रेरणा । सविस न [दे] सुरा। सवणता । स्त्री [श्रवणता] सुनना। अव- सविह न [सविध] पास । सवणया , ग्रह-ज्ञान । सव्व वि [सव्य वाम । सवण्ण वि [सवर्ण] समान वर्णवाला। सव्व वि [श्रव्य] श्रवण-योग्य । सवण्ण न [सावर्ण्य] समान-वर्णता । सव्व स [सर्व] समस्त । सम्पूर्ण । °ओ अ सवत्त पुं [सपत्न] दुश्मन । वि. विरुद्ध । [तस्] सबसे । सब ओर से । °ओभद्द वि समान। [°तोभद्र] सब प्रकार से सुखी। न. सब सवत्तिणी देखो सवत्ती। प्रकार से सुख । शुभाशुभ के ज्ञान का साधनसवत्तिया । स्त्री [सपत्निका] । स्त्री | भूत एक चक्र । महाशुक्र देवलोक में स्थित सवत्ती , [सपत्नी] पति की दूसरी एक विमान । पाँचवाँ वेयक विमान । स्त्री। एक नगर । अच्युतेन्द्र का एक पारियानिक सवय देखो स-वय = स-वयस्, स-व्रत । विमान । दृष्टिवाद का एक सूत्र । पुं. यक्ष की सवर देखो सबर। एक जाति । देव-विमान-विशेष । °ओभद्दा सवरिआ देखो सपज्जा। स्त्री ['तोभद्रा प्रतिमा-विशेष, एक व्रत । सवल देखो सबल। °कामसमिद्ध पुं[°कामसमृद्ध] षष्ठी तिथि । सवलिआ स्त्री [दे] भरोच का एक प्राचीन °कामा स्त्री. विद्या-विशेष, जिसकी साधना जैन मन्दिर । से सर्व इच्छाएं पूर्ण होती हैं। °गय वि सवह पुं [शपथ] आक्रोश-वचन, गाली। ["गत] व्यापक। *गा स्त्री. उत्तर रुचक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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