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________________ समुस्सय-समोहण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ८२१ समुस्सय पुं [समुच्छय] ऊँचाई। उन्नति, । समोगाढ वि [समवगाढ] सम्यग् अवगाढ । उत्तमता । कर्मों का उपचय । संघात, समूह, | समोच्छइअ वि [समवच्छादित] आच्छाराशि, ढग। दित । अतिशय ढका हुआ । समुस्सविय वि [समुच्छयित] ऊंचा किया | समोणम अक [ समव+नम् ] सम्यग् हुआ। नमना-नीचा होना। समुस्सस वि [ समुच्छ्व स् ] देखो समू- समोणय वि [समवनत] अति नमा हुआ। सस। समोत्थइअ ) वि [समवस्थगित] आच्छासमुस्सिअ वि [समुच्छ्रित] ऊर्ध्व-स्थित । समोत्थय । दित । [समवस्तृत] । समुस्सिणा सक [समुत् + श्रु] निर्माण करना, | समोत्थर सक [समव + स्तु] आच्छादन बनाना । संस्कार करना, सँवारना, जीर्ण करना, ढकना । आक्रमण करना । मन्दिर आदि को ठीक करना। | समोयार पुं [समवतार] अन्तर्भाव, समावेश । समुस्सुग । देखो समसुअ । समोलइय वि [दे] समुत्क्षिप्त । . समुस्सुय । समोलुग्ग वि [समवरुग्ण] रोगी । समुह देखो संमुह। समोवअ अक [समव+पत्] सामने आना। समुहय वि [समुद्धत] समुद्घात-प्राप्त । | नीचे उतरना। समुहि देखो स-मुहि = श्व-मुखि । समोसड्ढ । वि [समवसृत] समागत, समूसण न [समूषण] त्रिकटुक- सूंठ, पीपल | समोसढ पधारा हुआ । तथा मरिच । समोसर अक [समव + सृ] पधारना, आगसमूसवय देखो समुस्सविय। मन करना । नीचे गिरना। समूसस अक [ समुत् + श्वस ] ऊँचा समोसर अक [समप + स] पीछे हटना । जाना । उल्लसित होना । ऊर्ध्व श्वास लेना। करना। समूससिअ न [समुच्छ्वसित] निःश्वास । । समोसरण पुन [समवसरण] एकत्र मिलन, समूसिअ देखो समुस्सि। मेला । समुदाय, समवाय । साधु-समुदाय । समूसुअ वि [समुत्सुक] अति उत्कंठित । जहाँ पर उत्सव आदि के प्रसंग में अनेक साधु समूह पुन. समुदाय, राशि, संघात । लोग इकट्ठे होते हों वह स्थान । परतीथिकों समूह (अप) देखो समुह । या जैनेतर दार्शनिकों का समवाय । धर्म या समे सक [समा + इ] जानना । प्राप्त करना । आगम-विचार । 'सूत्रकृताङ्ग सूत्र' के प्रथम अक. संहत होना, इकट्ठा होना। आगमन श्रुतस्कन्ध का बारहवां अध्ययन । पधारना, करना, सम्मुख आना। आगमन । जिन-भगवान् उपदेश देते हैं वह समेअ ) वि [समेत] समागत, समायात । स्थान । तव पुं [°तपस्] तप-विशेष । समेत । युक्त । समोसव सक [दे] टुकड़ा-टुकड़ा करना । समेर देखो स-मेर स मर्याद । समोसिअ अक [समव + सद्] क्षीण होना, समोअर अक [समव+तृ] समाना, अन्तर्भाव | नाश पाना। होना । नीचे उतरना । जन्म-ग्रहण करना। | समोसिअ पुंदे] पड़ोसी । प्रदोष । वि. वध्य । समोआर पं [समवतार] अन्तर्भाव । समोहण सक [समुद् + हन्] समुद्घात करना, समोइन्न वि [समवतीर्ण] नीचे उतरा हुआ। आत्म-प्रदेशों को बाहर निकाल कर उनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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