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________________ समिक्षा - समुग्गिर समिआ स्त्री [ समिका, शमिका, शमिता ] चमर आदि इन्द्रों की अभ्यन्तर परिषद् । समिइ स्त्री [ समिति] उपयोग- पूर्वक गमनभाषण आदि क्रिया । सभा, परिषद् । युद्ध । निरन्तर मिलन | ८१७ समीकय वि [समीकृत ] समान किया हुआ । समीचीण वि[समीचीन ] साधु, सुन्दर । समीर अक [ सम् + ईरय् ] प्रेरणा करना । समीर पुं. पवन, वायु । समील देखो संमील । समिइ स्त्री [स्मृति] स्मरण । शास्त्र विशेष, समीव वि [ समीप ] निकट | मनुस्मृति आदि । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष समिइम वि[समितिम] गेहूँ के आटे की बनी समीहा स्त्री. इच्छा । समीहि देखो समिक्खिअ । हुई मंड आदि वस्तु । समिजग पुं [समिक ] त्रीन्द्रियजन्तु की समुआचार पुं[समुदाचार ] समीचीन आचरण । एक जाति । मु[समुचित ] योग्य | समिक्ख स [सम + ईश्] आलोचना करना, गुणदोष-विचार करना । चिन्तन करना । निरीक्षण करना । समिच्च देखो समे । समुअवि [समुदित] परिवृत । एकत्रित । समुन्नवि [समुदीर्ण] उदय प्राप्त । समुईर देखो समुदीर । समुक्कस देखो समुक्करिस | समुक्कत्तिय वि[समुत्कर्तित ] काटा हुआ । समुक्करिस [ समुत्कर्ष] अतिशय उत्कर्ष । समिज्झा अक [सम् +इन्ध् ] चारों तरफ से समुक्कस सक [ समुत् + कृष्] उत्कृष्ट बनाना । अ. गर्व करना । समिच्छण न [समीक्षण ] समीक्षा | समिच्छि देखो समिक्खिअ । चमकना । समिता देखों समिआ = समिका । समुट्ठि वि [समुत्कृष्ट] उत्कृष्ट । समिद्ध वि [समृद्ध] अतिशत सम्पत्तिवाला । समुक्कित्तण न [समुत्कीर्तन ] उच्चारण । समुक्खअवि [समुत्खात ] उखाड़ा हुआ । समुक्खण सक [स्रमुत् + खन्] उखाड़ना । समुक्त्ति वि [ समुत्क्षिप्त ] उठा कर फेंका हुआ । समिरिअ समिरीय समीह सक[सम + ईह, ] वांछा करना । बढ़ा हुआ । समिद्धि स्त्री [ समृद्धि] अतिशय सम्पत्ति | वृद्धि | ल वि. समृद्धिवाला । समिर पुं. पवन, वायु । } देखो स-मिरिईअ = समरी- समुक्खिव सक [ समुत् + क्षिप्] उठा कर चिक | फेंकना । समिला स्त्री [ शमिला सम्या ] युग- कीलक, गाड़ी को घोंसरी में दोनों ओर डाला जाता लकड़ी का खोल । समिल्ल देखो संमिल्ल । महास्त्र [ समिध् ] काष्ठ, लकड़ी । समी स्त्री [शमी] छोंकर का पेड़ । शिबा, छिमी, फली । 'खल्लय न [ दे] पत्ती, शमी वृक्ष का पत्र - पुट । समीअ देखो समीव । छोंकर की १०३ Jain Education International समुग्ग पुं [ समुद्ग ] डिब्बा, संपुट | पक्षिविशेष | समुग्गद (शौ) वि [ समुद्गत ] समुद्भूत । समुग्गम पुं [समुद्गम ] समुद्भव | समुग्गिr a [ ] प्रतीक्षित | समुग्गिण वि [ समुद्गीर्ण] उगामा हुआ । उत्तोलित, ऊपर उठाया हुआ । समुग्गिर सक [ समुद् + गृ] ऊपर उठाना | उगाना । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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