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________________ ७८५ संगह-संघदि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष संगह पुं [संग्रह] संचय । संक्षेप, समास । । संगुण वि. गुणित । उपधि, वस्त्र आदि का परिग्रह । नय-विशेष, संगुत्त वि [संगुप्त] छिपाया हुआ। गुप्तिवस्तु-परीक्षा का एक दृष्टिकोण, सामान्य रूप | युक्त, अकुशल प्रवृत्ति से रहित । से वस्तु को देखना । स्वीकार । कष्ट आदि संगेल्ल पुं [दे] समूह । में सहायता करना। वि. संग्रह करनेवाला । | संगेल्लो स्त्री [दे] परस्पर अवलम्बन । समूह । न. दुष्ट ग्रह से आक्रान्त नक्षत्र । संगोढण वि [दे] व्रणित । संगहण न [संग्रहण] संग्रह । गाहा स्त्री संगोप्फ , पुं [संगोफ] मर्कटबन्ध रूप [°गाथा] संग्रह-गाथा । संगोफ , गुम्फन । संगहणि स्त्री [संग्रहणि] संक्षिप्त रूप से | संगोल्ल न दे] संघात, समूह । पदार्थ-प्रतिपादक ग्रन्थ, सार-संग्राहक ग्रन्थ ।। संगोव सक [ सं+गोपय् ] छिपाना । रक्षण . संगहिअ वि [संग्रहिक] संग्रहवाला, संग्रह- करना । नय को माननेवाला। संगोवग वि [संगोपक] रक्षण-कर्ता । संगा सक [सं+गै] गान करना। संगोवाव देखो संगोव। संगा स्त्री [दे] घोड़े की लगाम । संगोवित्तु । वि [संगोपयितु] संरक्षणसंगाम सक [ सङ्ग्रामय् ] लड़ाई करना । संगोवेत्तु । कर्ता। संगाम पुं [सङ्ग्राम] युद्ध । °सूर पुं [°शुर] | संघ सक [कथ्] कहना। एक राजा। संघ पुं. साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाओं संगामिय वि [साङ्ग्रामिक] संग्राम-सम्बन्धी । का समुदाय । समान धर्मवालों का समूह । संगामिया स्त्री [साझामिकी] श्रीकृष्ण समूह । प्राणि-समूह । °दास पुं. एक जैन मुनि वासुदेव की लड़ाई की खबर देने की और ग्रन्थ-कर्ता । °पालिय, °वालिय पुं [°पालित] आर्यवृद्ध मुनि के शिष्य । भेरी। संघअ वि [संहत] निबिड़, सान्द्र । संगामुड्डामरी स्त्री [सङ्ग्रामोड्डामरी] विद्या संघंस पुं [संघर्ष] घिसाव, रगड़ । आघात । विशेष, जिसके प्रभाव से लड़ाई में आसानी से विजय मिलती है। संघट्ट सक [सं + घट्ट] छूना। . अक. संगार पुंदे] संकेत । आघात लगाना । संमर्दन करना । संगाहि वि [संग्राहिन्] संग्रह-कर्ता । संघट्ट पुं[संघट्ट] आघात, संघर्ष । अर्ध जंघा संगिण्ह देखो संगह = सं + ग्रह । तक का पानी। दूसरा नरक का छठवाँ नरसंगिण्हण न [संग्रहण] आश्रय-दान । देखो __ केन्द्रक । भीड़ । स्पर्श । संगहण । संघट्ट वि [संघट्टित] संलग्न । संगिल्ल वि [सङ्गवत् बद्ध, संग-युक्त ।। संघट्टणा स्त्री [संघटना] संचलन । संगिल्ल देखो संगेल। संघट्टा स्त्री [संघट्टा] वल्ली-विशेष । संगिल्ली देखो संगेल्ली। संघड अक [सं+घट] प्रयत्न करना । सम्बद्ध संगिह देखो संगह = सं-ग्रह । होना । सक. निर्माण करना । गढ़ना । संगीअ न [संगीत] गाना । वि. जिसका गान | संघड वि [संघट] निरन्तर । किया गया हो वह । संघडण देखो संघयण। संगुण सक [ सं+गुणय् ] गुणकार करना । | संघदि (शौ) स्त्री [संहति] समूह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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