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________________ बुद्धि-वेअरणी संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ७६९ वुद्धि देखो वुड्ढि । मैथुन की इच्छा होती है। आचारांग आदि वुप्पंत वि [उप्यमान] बोया जाता। जैन-ग्रन्थ । विज्ञ । 'व वि [°वत्] । °वि, वुप्पाय सक [ व्युत् + पादय् ]व्युत्पन्न करना, °विउ वि [°विद्] वेदों का जानकार । होशियार करना। °वत्त न [°व्यक्त] चैत्य-विशेष । वित्त न वुप्फ न [दे] शेखर, शिरःस्थित । [वर्त] देखो °वत्त। वुब्भ वह = वह. का कर्मणि रूप । वेअ न [वेद्य] सुख तथा दुःख का कारण-भूत वुब्भमाण देखो वुज्झमाण । कर्म । 'वुर देखो पुर। वेअ पुं [वेग] शीघ्र गति, दौड़, तेजी। 'वुरिस देखो पुरिस = पुरुष । प्रवाह । रेतस् । मूत्र आदि निःसारण-यन्त्र । वुल्लाह पुं [दे] अश्व की एक उत्तम जाति । संस्कार-विशेष । वुसह देखो वसभ। वेअंत पुं [वेदान्त] उपनिषद् का विचार वुसि स्त्री [वृषि] मुनि का आसन । राइ, __करनेवाला दर्शन-विशेष । राइअ वि [°राजिन्] संयमी, साधु । देखो वेअग वि [वेदक] भोगनेवाला । न. सम्यक्त्व बुसि, वुसी। का एक भेद । वि. सम्यक्त्व-विशेषवाला सि वि [वृषिन्] संविग्न, साध, संयमी। जीव । °छहिय वि [छिन्नवेदक] जिसका वुसिम वि [वश्य] अधीन होनेवाला। पुरुष-चिह्न आदि काटा गया हो वह । वुसी स्त्री [वषी] मुनि का आसन । °म वि | वेअच्छ न [वैकक्ष] छाती में यज्ञोपवीत की [°मत्] संयमी, साधु । देखो बुसि । तरह पहना जाता वस्त्र, माला आदि । बन्धवुस्सग्ग देखों विओसग्ग। विशेष, मर्कट-बन्ध । कन्धे के नीचे लटकना। वूढ देखो वुड्ढ = वृद्ध वेअड सक [खच] जड़ना। बूढ वि [व्यूढ] धारण किया हुआ । ढोया वेअडिअ वि [दे] फिर से बोया हुआ। हुआ । बहा हुआ। उपचित, पुष्ट । निःसृत । वेअडिअ पुं [दे. वैकटिक] मोती वेघनेवाला वूणक पुंन [दे] बालक । शिल्पी, जौहरी। वूय वि [दे] बुना हुआ । देखो वअ = (दे)। | वेअड्डि देखो विअड्डि। वह पुन [व्यह] युद्ध के लिए की जातो सैन्य वेअड्ढ न [दे] भिलावाँ । की रचना-विशेष । समूह । वेअड्ढ पुं [वैताठ्य] पर्वत-विशेष । वे देखो वइ = वै । वेअड्ढ न [वैदग्ध्य] विदग्धता । वे अक [वि + इ] नष्ट होना । वेअण न [वेतन] मजूरी का मूल्य, तनखाह । वे । सक [व्ये] संवरण करना । वेअणा देखो विअणा। वेअणिज्ज । वि [वेदनीय] भोगने योग्य । वेअ सक [वेदय् ] अनुभव करना । भोगना । वेअणिय J न. सुख-दुःख आदि कारण-भूत जानना। कर्म । वेअ अक [वि + एज विशेष काँपना । वेअय देखो वेअग। वेअ अक [वेप् ] कांपना । वेअरणी स्त्री [वैतरणी] नरक-नदी। परमावेअ [वेद] ऋग्वेद आदि शास्त्र-ग्रन्थ । धार्मिक देवों की एक जाति, जो वैतरणी की मोहनीय कर्म का एक भेद, जिसके उदय से विकुर्वणा करके उसमें नरक-जीवों को डालता वेअ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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