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________________ रद्धि-रयण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ६७५ रद्धि वि [दे] प्रधान, श्रेष्ठ । | रयग देखो रयय = रजक । रप्प सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना। रयण न [रजन] रंगना। रप्फ पुं [दे] वल्मीक । रोग-विशेष । रयण वि [रचन] करनेवाला, निर्माता । रप्फडिआ स्त्री [दे] गोधा, गोह । रयण पुं [रदन] दाँत । रब्बा वि [दे] राब, यवागू । रभस देखो रहस- रभस । रयण पुन [रत्न] माणिक्य, मणि आदि । रम अक [रम्] क्रीड़ा या संभोग करना । स्वजाति में श्रेष्ठ । छन्द-विशेष । द्वीप-विशेष । रमण न. क्रीड़ा । संभोग । स्मर-कूपिका । पुं. पर्वत-विशेष का एक कूट । पुं. ब. रत्न-द्वीप जघन । पति । छन्द-विशेष । का निवासी । °उर न [°पुर] नगर-विशेष । रमणिज्ज वि [रमणीय] सुन्दर । न. एक 'चित्त पुं [°चित्र विद्याधर वंश का राजा । देव-विमान । पुं. नन्दीश्वर द्वीप के मध्य में °दीव पुं [ द्वीप] द्वीप-विशेष । निहि पुं उत्तर दिशा की ओर स्थित एक अञ्जन [°निधि] समुद्र । 'पुढवी स्त्री [°पृथ्वी] रत्नप्रभा नामक पहली नरक-पृथिवी । पुर गिरि। रमणी स्त्री. नारी । एक पुष्करिणी । देखो °उर । °प्पभा, 'प्पहा स्त्री [°प्रभा] रमणीअ वि रमणीय] मनोरम । पहली नरक-भूमि । भीम राक्षसेन्द्र की पट रानी । रत्न का तेज । °मय वि. रत्नों का रमा स्त्री. लक्ष्मी । बना हुआ। °माला स्त्री. छन्द-विशेष । रमिअ वि [रमित रमाया हुआ । °मालि पुं [°मालिन्] विद्याधर-वंश में रम्म वि [रम्य] मनोरम । पुं. एक प्रान्त । उत्पन्न नमिराज का पुत्र । °मुस वि [°मुष्] चम्पक का गाछ । न. एक देव-विमान ! रत्न चुरानेवाला । °रह पूं [°रथ] विद्यारम्मग । पुं [रम्यक] प्रान्त-विशेष । एक धर वंश का राजा। रासि पुं [राशि] रम्मय , युगलिक-क्षेत्र, जम्बू-द्वीप का वर्ष समुद्र । 'वई पुं [ पति] रत्नों का मालिक, विशेष । न. एक देव-विमान । पर्वत-विशेष धनी । °वई स्त्री [°वती] एक रानी । वज्ज का एक कूट । पुं [°वन] विद्याधर-वंशीय राजा । वह वि. रम्ह देखो रंफ। रत्नधारक । °संचय न. रुचक पर्वत का कूट । रय सक [रज्] रँगना। एक नगर । °संचया स्त्री. मंगलावती नामक रय सक [रचय] बनाना । निर्माण करना। विजय की राजधानी । ईशानेन्द्र की वसुन्धरा रय पुन [रजस्] धूल । पुष्प-रज । सांख्य- इन्द्राणी की राजधानी । समया स्त्री. मंगलादर्शन में प्रकृति का एक गुण । बध्यमान वती विजय की राजधानी। °सार पुं. एक कर्म । °त्ताण न [°त्राण] जैन मुनि का राजा । एक सेठ। °सिंह पुं. संवेगचूलिकाउपकरण । "स्सला स्त्री [°स्वला] ऋतुमती | कुलक के कर्ता जैन आचार्य । सिंह पुं[°शिख] स्त्री। हर पुन. । हरण न जैन मुनि का | एक राजा । °सेहर पुं[शेखर] एक राजा। एक उपकरण । पनरहवीं शताब्दी के जैन आचार्य और ग्रंथरय वि [रत] आसक्त । स्थित । न. रति- कार । °अर, °गर [कर] रत्न की कर्म। खान । समुद्र । भिा स्त्रो [°भा] देखो रय पुं. वेग। °प्पभा। °मय देखो 'मय, “यरसुअ पुं रय देखो रव। [°करसुत] चन्द्रमा । एक वणिक्-पुत्र । WorldTH Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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