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________________ ५० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अत्थणिऊरंग-अत्थुअ अत्थणिऊरंग पुन [अर्थनिपूराङ्ग] देखो । अस्थि वि [अर्थिन्] याचक । धनी, मालिक, अच्छणिउरंग। स्वामी । गरजू, चाहनेवाला । अत्थत्थि वि [अर्थाथिन्] धन की इच्छावाला । | अत्थि न [अस्थि] हाड़, हडडी ।। अत्थम अक [अस्तम् + इ] अस्त होना, अस्थि अ [अस्ति] सत्त्व-सूचक अव्यय है, अदृश्य होना। | प्रदेश, अवयव । अवत्तव्व वि [अवक्तव्य] अत्थयारिआ स्त्री [दे] सखी । सप्तभङ्गी का पाँचवाँ भङ्ग, स्वकीय द्रव्य अत्थर सक [आ+स्तु] बिछाना, शय्या | आदि की अपेक्षा से विद्यमान और एक ही करना, पसारना। साथ कहने को अशक्य पदार्थ । 'काय पुं अत्थरय वि [आस्तरक] आच्छादन करने | प्रदेशों का-अवयवों का समूह । °णत्थवाला । पुं. बिछौने के ऊपर का वस्त्र । वत्तव्व वि [°नास्त्यवक्तव्य] सप्तभङ्गी का अत्थरय वि [अस्तरजस्क शुद्ध । सातवाँ भङ्ग, स्वकीय द्रव्यादि की अपेक्षा से अत्थवण देखो अत्थमण । विद्यमान, परकीय द्रव्यादि की अपेक्षा से अत्थसिद्ध पुं[अर्थसिद्ध] दशमी तिथि । अविद्यमान और एक ही समय में दोनों धर्मों अत्था देखो अठ्ठा = आस्था । से कहने को अशक्य पदार्थ । °त्त न [°त्व] अत्था ) सक [अस्ताय] अस्त होना, विद्यमानता। °त्ता स्त्री [°ता] हयाती। अत्थाअ । डूब जाना, अदृश्य होना । °त्तिणय पुं [इतिनय] द्रव्याथिक नय । अत्थाअ वि [अस्तमित] डबा हुआ। नत्थि वि [°नास्ति] सप्तभङ्गी का तीसरा अत्थाइया स्त्री [दे] गोष्ठी-मण्डप । भङ्ग-प्रकार, स्वद्रव्यादि की अपेक्षा से अत्थाण न [आस्थान] सभा, सभा-स्थान । विद्यमान और परकीय द्रव्यादि की अपेक्षा से अत्थाणिय वि [अस्थानिन्] गैर-स्थान में अविद्यमान वस्तु । नत्थिप्पवाय न [°नास्तिप्रवाद] बारहवें जैन अङ्ग-ग्रन्थ का लगा हुआ। अत्थाणी स्त्री [आस्थानी] सभा-स्थान । एक भाग, चौथा पूर्व । अत्थाणीअ वि [आस्थानीय] सभा-संबन्धी । अत्थिक्क न [आस्तिक्य] आत्मा-परलोक आदि अत्थाम वि [अस्थामन्] निर्बल ।। पर विश्वास । अत्थार पुंदे] सहायता । अत्थिय देखो अत्थि = अर्थिन् । अथारिय पुंदे] नौकर, कर्मचारी । अत्थिय वि [अर्थिक] धनवान् । अत्थावरगह देखो अत्थुग्गह । अत्थिय न [अस्थिक] हाड़ । पुं वृक्ष-विशेष । अत्थावत्ति स्त्री [अर्थापत्ति] अनुक्त अर्थ को न. बहु बोजवाला फल-विशेष । अटकल से समझना, एक प्रकार का अनुमान- अस्थिय वि [आस्तिक] आत्मा परलोक आदि ज्ञान। की हयाती पर श्रद्धा रखनेवाला । अत्थाह वि [अस्ताघ] थाह-रहित, गंभीर । | अत्थिर देखो अथिर । नासिका के ऊपर का भाग भी जिसमें डूब सके अत्थीकर सक [अर्थी+कृ] प्रार्थना करना। इतना गहरा जलाशय । पुं. अतीत चौबीसी में याचना करना । भारत में समुत्पन्न इस नाम के एक तीर्थंकर- | अत्थु सक [आ + स्तृ] बिछाना, शय्या देव । करना। अत्थाह वि [दे] देखो अत्थरह। | अत्थुअ वि [आस्तृत] बिछाया हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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