SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अण्णाण-अत्त ज्ञान । वि. ज्ञान-रहित, मूर्ख । °अण्हा स्त्री [तृष्णा] तृषा, प्यास । अण्णाण न [दे] दाय, विवाह काल में वधू को | अण्हेअअ वि [दे] भ्रान्त, भूला हुआ। अथवा वर को जो दान दिया जाता है वह । अतक्किय वि [अतकित] अचिन्तित, आकअण्णाय वि [अज्ञात] अविदित । स्मिक । ठीक-ठीक नहीं देखा हुआ, अपरिलअण्णाय पुं [अन्याय] न्याय का अभाव । क्षित। अण्णाय विदे] आर्द्र । अतड त्रि [अतट] छोटा किनारा । अण्णाय वि [अन्याय्य न्याय-विरुद्ध । अतण्हाअ वि[अतृष्णाक]तृष्णा-रहित,निःस्पृह। अण्णाय्य (शौ) ऊपर देखो। अतर देखो अयर। अण्णारिच्छ वि [अन्यादृक्ष] दूसरे के जैसा । | अतव पुं [अस्तव] अ-प्रशंसा, निन्दा। अण्णारिस वि [अन्यादृश] दूसरे के जैसा। | अतसी देखो अयसी। अण्णासय वि [दे] विस्तृत, बिछाया हुआ। अतिउट्ट अक [अति + त्रुट] खूब टूटना, टूट अण्णिय वि [अन्वित] युक्त । जाना । सब बन्धन से मुक्त होना । अण्णिया स्त्री [दे] देखो अण्णी। अतिउट्ट सक [अति + वृत्] उल्लंघन करना । अण्णिया स्त्री [अनिका] एक विख्यात जैन व्याप्त होना। मुनि की माता का नाम । °उत्त पुं [°पुत्र] | अतिउट्ट वि [अतिवृत्त] अतिक्रान्त । अनुगत, एक विख्यात जैन मुनि । व्याप्त। अण्णी स्त्री [दे] देवर की स्त्री। पति की | अतित्थ न [अतीर्थ] तीर्थ का अभाव । वह बहिन, ननद । फूफी, पिता की बहिन । काल, जिसमें तीर्थ की प्रवृत्ति न हुई हो या अण्णु । वि [अज्ञ] अजान, निर्बोध, | उसका अभाव रहा हो । 'सिद्ध वि [°सिद्ध] अण्णुअ । मूर्ख । अतीर्थ काल में जो मुक्त हुआ हो वह, 'अतिअण्णुण्ण वि [अन्योन्य] परस्पर, आपस में । त्थसिद्धा य मरुदेवी'। अण्णूण वि [अन्यून] अहीन, परिपूर्ण । अतिहि देखो अइहि । अण्णे सक [अनु + इ] अनुसरण करना। अतीगाढ़ वि [अतिगाढ] अति-निबिड । क्रिवि. अण्णेस सक [अनु + इष्] खोजना, तहकीकात | अत्यंत, बहुत । करना । चाहना, वांछना । प्रार्थना करना । । अत्त देखो अप्प = आत्मन् । 'लाभ पुं अण्णेसणा स्त्री [अन्वेषणा] खोज, तहकीकात [°लाभ] स्वरूप की प्राप्ति, उत्पत्ति । (प्राप)। प्रार्थना (आचा)। गृहस्थ से दी आ (आचा)। गठस्थ से दी | अत्त वि [आत्तं] पीड़ित, हैरान (कुमा) । जाती भिक्षा का ग्रहण । अत्त वि [आत्त] गृहीत । स्वीकृत । पुं. ज्ञानी अण्णेसय वि [अन्वेषक] गवेषक । मुनि । अण्णोण्ण देखो अण्णुण्ण । अत्त वि [आप्त] ज्ञानादि-गुण-संपन्न, गुणी । अण्णोसरिअ वि [दे] अतिक्रान्त, उल्लंधित । | रागद्वेष वजित । प्रायश्चित्तदाता गुरु । मुक्ति । अण्ह सक [भुज्] भोजन करना। पालन | एकान्त हितकर । प्राप्त । करना । ग्रहण करना। अत्त वि [आत्र] दुःख का नाश करनेवाला, °अण्ह न [अहन्] दिवस, । सुख का उत्पादक। अण्हग ) पुं [आश्रव] कर्म-बन्ध के कारण अत्तअ [अत्र] यहाँ, इस स्थान में। °भव वि अण्हय । हिंसादि। [°भवत्] पूज्य, माननीय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy