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________________ मढ-मणि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष मढ देखो मड्ड। मणंसि वि [मनस्विन्] प्रशस्त मनवाला । मढ पुंन [मठ] व्रतियों-संन्यासियों का आश्रम । मणंसिल° । स्त्री [मनःशिला] लाल वर्ण मढिअ वि [दे] खचित । परिवेष्टित । मणंसिला ) की एक उपधातु, मैनशिल । मढी स्त्री [मठिका] छोटा मठ । मणग पुं [मनक] शय्यंभवसूरि का पुत्र और मण सक [मन्] मानना । जानना। चिन्तन बाल शिष्य । देखो मणय । करना। मणगुलिया स्त्री [दे] पीठिका । मणय पुं [मनक] द्वितीय नरक-भूमि का मण पुन [ मनस् ] मन, अन्तःकरण, चित्त ।। तीसरा नरकेन्द्रक । देखो मणग। °अगुत्ति स्त्री ["अगुप्ति] मन का असंयम । मणयं अ [मनाग्] अल्प, थोड़ा । °करण न. चिन्तन, पर्यालोचन । 'गुत्त वि | मणस देखो मण = मनस् । [°गुप्त] मन का संयमी। गुत्ति स्त्री मणसिल ) देखो मणंसिला। [°गुप्ति] मन का संयम । जाणुअ वि [ज्ञ] | | मणसिला । मन का ज्ञाता। मनोहर । °जीविअ वि [°जीविक] मन को आत्मा माननेवाला । | मणसीकर सक [मनसि + कृ] चिन्तन करना, जोअ पुं [°योग] मन की चेष्टा । °ज्ज, मन में रखना। °ण्णु, °ण्णुअ देखो °जाणुअ । 'थंभणी स्त्री मणस्सि देखो मणंसि। मणा ["स्तम्भनी] मन को स्तब्ध करनेवाली विद्या । नाण न [°ज्ञान] मनःपर्यव ज्ञान । मणाउ देखो मणयं। मणाउं °पज्जत्ति स्त्री [°पर्याप्ति] पुद्गलों को मन के रूप में परिणत करने की शक्ति । °पज्जव मणागं पुं [°पर्यव] दूसरे के मन की अवस्था को मणाल देखो मुणाल । जाननेवाला ज्ञान । पसिणविज्जा स्त्री मणालिया स्त्री [मृणालिका] । देखो मुणा[°प्रश्नविद्या] मन के प्रश्नों का उत्तर देने- | लिआ। वाली विद्या । बलिअ वि [बलिन्, 'क] मणासिला देखो मणंसिला। मनो-बलवाला । "मोहण वि [°मोहन] मन मणि पुंस्त्री. मुक्ता आदि रत्न । अंग पुं को मुग्ध करनेवाला । योगि वि [°योगिन्] ! [°अङ्ग] कल्प-वृक्ष की एक जाति जो आभूमन की चेष्टावाला। °वग्गणा स्त्री | षण देती है । आर पुं [°कार] जौहरी । [°वर्गणा] मन के रूप में परिणत होनेवाला | कंचण न [°काञ्चन] रुक्मि-पर्वत का एक पुद्गल-समूह। °वज्ज न [ वज्र] एक | शिखर । कूड न [°कूट] रुचक पर्वत का विद्याधर-नगर । °समिइ स्त्री [°समिति] एक शिखर । °क्खइअ वि [°खचित] रत्नमन का संयम । “समिय वि ["समित] मन | जटित । 'चइया स्त्री ["चयिता] नगरीको संयम में रखनेवाला । "हंस पुं. छन्द- विशेष । "चूड पुं. एक विद्या-धर नृप । विशेष । °हर विसुन्दर । °हरण पुन. एक जाल न. मणि-माला । तोरण न. नगरमात्रा-पद्धति । "भिराम वि [°अभिराम] विशेष । °प देखो °व। पेढिया स्त्री मनोहर । म वि [°आप] सुन्दर । देखो [°पीठिका] मणि-मय पीठिका । 'प्पभ पुं मणो । [प्रभ] एक विद्याधर । °भद्द पुं [°भद्र] मणं देखो मणयं । एक जैन मुनि । भूमि स्त्री. मणि-खचित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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