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________________ ६२६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष भाज-भाव भाज अक [भ्राज] चमकना । वृक्ष की एक जाति। भाड पुन [दे] भट्ठी। भायणिज देखो भाइणिज्ज। भाडय न [भाटक] किराया । भायर देखो भाउ । भाडिय वि भाटकित] भाड़े पर लिया। भायल पुं[दे] उत्तम जाति का घोड़ा। भाडिया । स्त्री [भाटिका, °टीभाड़ा। भार पुं. बोझा, गुरुत्व । भारवाली वस्तु । भाडी । कम्म न [°कर्मन्] बैल, गाड़ी काम सम्पादन करने का अधिकार । परिमाणआदि भाड़े पर देने का काम-धन्धा । विशेष । परिग्रह, धन-धान्य आदि का संग्रह । भाण देखो भण = भण् । ग्गसो अ [°ग्रशस्] भार-भार के परिभाण देखो भायण। माण से। वह वि. वह वि. बोझा भाणिअ वि [भाणित] पढ़ाया हुआ, पाठित । ढोनेवाला। कहलाया हुआ। भारई स्त्री [भारती] भाषा, वाणी, वाक्य, भाणु पुं [भानु] सूर्य । किरण । भगवान् । वचन । सरस्वती । देखो भारही।। धर्मनाथ का पिता, एक राजा । स्त्री. शक्र | भारदाय , न भारद्वाज गोतम गोत्र की की एक अग्र-महिषा। कण्ण पु । कण भारद्दाय ) एक शाखा । पुं. उसमें उत्पन्न । रावण का एक अनुज । °मई स्त्री [°मती] | पक्षि-विशेष । मुनिविशेष । रावण की एक पत्नी। मालिणी | भारय देखो भा मालिनी] विद्या-विशेष । °मित्त न | भारह न भारत भारतवर्ष । पाण्डव कौरवों [°मित्र] उज्जयिनी के राजा बलमित्र का | का युद्ध । महाभारत । महाभारत ग्रन्थ । एक छोटा भाई । °वेग पुं. एक विद्याधर । सिरी नाट्य-शास्त्र । वि. भारतवर्ष-सम्बन्धी । स्त्री [°श्री] राजा बलमित्र की बहिन । °खेत्त न [ क्षेत्र] भारतवर्ष । भाम देखो भमाड = भ्रमय ।। भारहिय वि [भारतीय] भारत-सम्बन्धी । भामर न [भ्रामर] भ्रमरी का बनाया हुआ भारही स्त्री [भारती] । देखो भारई। मधु । पुं. दोधक छन्द का एक भेद । भारिअ वि [भारिक]भारी, भारवाला, गुरु । भामरी स्त्री [भ्रामरी] वीणा-विशेष । प्रद- भारिअ वि [भारित] भारवाला, भारी । क्षिणा । जिसपर भार लादा गया हो वह । भामिअ वि [भ्रमित] घुमाया हुआ। भ्रान्त भारिआ देखो भन्जा। किया हुआ, भ्रान्तचित्त किया हुआ । भारिल्ल वि [भारवत्] भारी, बोझवाला । भामिणी स्त्री [भागिनी] भाग्यवाली। भारुड पुं [भारुण्ड]दो मुंह वाला पक्षी । भामिणी स्त्री [भामिनी] कोप-शीला स्त्री। भाल न. ललाट । महिला। भालुंकी [दे] देखो भल्लंकी। भाय देखो भाउ। भाल्ल पुंन [दे] काम-पीड़ा । भायंत भा का वकृ.। | भाव सक [भावय्] वासित करना, गुणाधान भायण पुन [भाजन] पात्र। आधार । करना । चिन्तन करना । योग्य । भाव अक [भास्] दिखाना, लगना। पसन्द भायण न [भाजन] आकाश । होना, उचित मालूम होना। भायणंग पुं [भाजनाङ्ग] पात्र देनेवाले कल्प- | भाव पुं. पदार्थ, वस्तु । अभिप्राय, आशय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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