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________________ भगंदर-भत्ति संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ६२१ देव, ज्योतिष्क देव-विशेष । गुदा और अण्ड- । भट्टिणी स्त्री [भट्टिनी] नाटक की भाषा में कोश के बीच का स्थान । °दत्त पुं. नप- | वह रानी जिसका अभिषेक न किया गया हो। विशेष । °व देखो °वंत । °वई स्त्री [°वती] | भटु (शौ) देखो भट्टारय। ऐश्वर्यादि-सम्पन्ना, पूज्या । पाँचवाँ जैन अंग- | भट्ट वि [भ्रष्ट] च्युत, स्खलित । नष्ट । अन्य भगवती-सूत्र । °वंत वि ["वत्] | भटू पुंन [भ्राष्ट्र ] भुनने का बर्तन । ऐश्वर्यादिगुण-सम्पन्न । पुं. परमेश्वर । भट्ठि । स्त्री [दे] धूलि-रहित मार्ग । भगंदर पु [भगन्दर] गुदा के भीतर का | भट्टी फोड़ा। भड पुं [भट] योद्धा। वीर। म्लेच्छों की भगंदल देखो भगन्दर । जाति । वर्ण-संकर जाति । राक्षस । °खइआ भगिणी देखो बहिणी। स्त्री [°खादिता] दीक्षा-विशेष । भगिरहि ) पुं [भगीरथि] सगर चक्रवर्ती भडक्क पुंस्त्री [दे] आडम्बर, ठाठमाठ । भगीरहि ) का एक पुत्र, भगीरथ । भडग पुं [भटक] अनार्य देश-विशेष । उस देश भग्ग वि [भग्न] खण्डित । पराजित । भागा की म्लेच्छ जाति । देखो भड। हुआ। °इ पुं[°जित्] क्षत्रिय परिव्राजक-विशेष । भडारय (अप) देखो भट्टारय । भग्ग वि [दे] लिप्त, पोता हुआ । भडित्त न [भटित्र] शूल-पक्व मांसादि । भग्ग न [भाग्य] नसीब । भडिल वि [दे] सम्बोधन-सूचक शब्द । भग्गव पु [भार्गव] शुक्र ग्रह । ऋषि-विशेष । भण सक [भण्] कहना, बोलना, प्रतिपादन भग्गवेस न [भार्गवेश] गोत्र विशेष । करना। भच्च पुं [दे] भानजा। भणग वि [भण, °क] प्रतिपादन करनेवाला । भच्छिअ वि [भत्सित] तिरस्कृत । भणिइ स्त्री [भणिति] उक्ति, वचन । भज देखो भय = भज् । भण्ण सक [भण्] कहना, बोलना। भज्ज सक [भ्रस्ज्] पकाना, भुनना । भत्त पुंन [भक्त] आहार । अन्न । ओदन । भज्ज देखो भंज। सात दिनों का उपवास । वि. भक्ति-युक्त । भज्ज देखो भय = भज् । °कहा स्त्री [कथा] आहार-कथा । °च्छंद भज्जण न [भ्रज्जन] भुनन । भुनने का पात्र । 'छंद पुं [च्छन्द] भोजन की अरुचि , भज्जा स्त्री [भार्या] पत्नी । °पच्चक्खाण न [प्रत्याख्यान] आहारभज्जि । स्त्री[भजिका भाजी, पत्राकार त्याग । मरण का एक प्रकार। परिण्णा भन्जिआ । तरकारी । मार्ग-भोजन । स्त्री [°परिज्ञा] ग्रन्थ-विशेष । °पाणय न भजिम वि [भ्रजिम] भुनने-योग्य । [पानक] खान-पान । °वेला स्त्री. भोजनभट्ट पुं. एक मनुष्य-जाति । भाट । वेदाभिज्ञ समय। पण्डित, ब्राह्मण, मालिकपन । भत्त वि [भूत] उत्पन्न, संजात । भट्टारग । पुं [भट्टारक] पूजनीय । नाटक भत्ति देखो भत्तु । भट्टारय , की भाषा में राजा । भत्ति स्त्री [भक्ति] सेवा, विनय, आदर । भट्टि देखो भत्तु = भर्तृ । रचना । एकाग्र-वृत्ति-विशेष । कल्पना, उपभट्टिअ पं [दे] विष्णु, श्रीकृष्ण । चार । प्रकार । विच्छित्ति-विशेष । अनुराग । भट्टिणी स्त्री [भर्ती] मालिकिन । विभाग । अवयव । श्रद्धा । मंत, °वंत वि www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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