SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 612
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरेस-पुव्व संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ५९३ पूरेस पुरेश] नगर-स्वामी। दुर्गन्ध द्रव्य । दुष्ट रसवाला द्रव्य । पुं. शिथिपुरो देखो पुरं। °अ, ग वि [ग] अग्र- लाचारी साधुओं का एक भेद । गामी । गम वि. वही अर्थ । भाइ वि | पुलासिअ पुं [दे] अग्नि-कण । [ भागिन्] दोष को छोड़ कर गुण-मात्र को पुलिंद पुं [पुलिन्द] अनार्य देश-विशेष । ग्रहण करने वाला। पुंस्त्री. उस देश में रहनेवाला मनुष्य ।। पुरोकर सक [पुरस् + कृ] आगे करना। पुलिण न [पुलिन] तट, किनारा । लगातार स्वीकार करना । सम्मान करना। बाईस दिनों का उपवास । पुरोत्तमपुर न. एक विद्याधर नगर का नाम । | पुलिय न [पुलित] गति-विशेष । पुरोवग पुं [पुरोपक] वृक्ष-विशेष । पुलट्ठ वि [प्लुष्ट] दग्ध । पुरोह पुं [पुरोधस्] पुरोहित । पुलोअ सक [दृश , प्र+लोक ] देखना । पुरोहड वि [दे] विषम, असम । पुन आवृत पुलोम पुं [पुलोमन्] दैत्य-विशेष । °तणया भूमि का वास्तु । अग्रद्वार, दरवाजा का अग्र- | स्त्री [°तनया] शची।। भाग । बाड़ा। पुलोमी स्त्री [पौलोमी] इन्ाणी। पुरोहिअ पुं[पुरोहित] होम आदि से शान्ति- | पुलोव देखो पुलोअ। कर्म करनेवाला ब्राह्मण । पुलोअ पुं [प्लोष] दाह दहन । पुल पुं [दे पुल] छोटा फोड़ा, फुनसी । पुल्ल [दे] देखो पोल्ल। पुल वि. समुच्छ्रित, उन्नत । पुल्लि पुंस्त्री [दे] व्याघ्र । सिंह । पुल अक [पुल्] उन्नत होना । पुव । सक [प्लु] गति करना, चलना । पुल सक [ दृश् ] देखना । पुलअ) पुव्व देखो पुण = पू। पुलअ पुं [पुलक] रोमाञ्च । रत्न-विशेष । पुव्व वि [पूर्व] दिशा, अपेक्षा से पहले का, मणि की एक जाति । ग्राह का एक भेद । आद्य । पुरातन । समस्त । ज्येष्ठ भ्राता। कंड पुंन [°काण्ड] रत्नप्रभा नरक-पृथिवी पुन. चौरासी लाख को चौरासी लाख से गुणने का एक काण्ड । पर जो संख्या लब्ध हो उतने वर्ष । बारहवें पुलअण वि [दर्शन] देखनेवाला प्रेक्षक । अंग-ग्रन्थ का एक विशाल विभाग, परिच्छेद । पुलआअ अक [ उत् + लस् ] उल्लसित होना, द्वन्द्व, वधू-वर आदि युग्म । पूर्व-ग्रन्थ का उल्लास पाना। ज्ञान । हेतु । °कालिय वि [°कालिक] पूर्व पुलइज्ज अक [ पुलकाय ] रोमाश्चित होना । काल का, पूर्व काल से सम्बन्ध रखनेवाला । पुलइल्ल वि [पुलकिन्] रोमाञ्च-युक्त । गय न [°गत] बारहवें अंग का विभागपुलंधअ पुं [दे] भौंरा। विशेष । °ण्ह [हण] सुबह से दो पहर पुलंपुल न [दे] निरन्तर । तक का समय । 'पुरिमड्ढ' तप । तव पुन पुलक ) देखो पुलअ = पुलक । [°तपस्] वीतराग अवस्था के पहले का तप । दारिअ वि [°द्वारिक] पूर्व दिशा में गमन पुलय पुंन [पुलक] कीट-विशेष । करने में कल्याण-कारी (नक्षत्र)। °द्ध पुन पुलाग । पुंन [पुलाक] असार अन्न । चना [°ार्ध] पहला आधा । °धर वि. पूर्व-ग्रन्थ पुलाय ) आदि शुष्क अन्न । लहसुन आदि | का ज्ञान । °पय न [पद] उत्सर्ग-स्थान । ७५ पुव्व। पुलग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy