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________________ ४९४ पउमुत्तरपुं [ पद्मोत्तर ] नववें चक्रवर्ती श्रीमहापद्मराज के पिता का नाम । मन्दर पर्वत के भद्रशाल वन का एक दिग्हस्ती पर्वत । पउमुत्तरा स्त्री [ पद्मोत्तरा ] एक प्रकार की शक्कर । उरवि [प्रचुर ] बहुत । पउर वि [पौर] पुर-सम्बन्धी । नगर में रहने वाला । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पउरव पुं [पौरव ] पुरुनामक चन्द्र वंशीय नृप का पुत्र । पउराण (अप) देखो पुराण । परिस वि [ पौरुषेय ] पुरुष कृत । परिस पुंन [ पौरुष ] पुरुषत्व, पुरुषार्थ, वीरता । पउरुस पउल सक [पच्] पकाना | उलिअ वि [ प्रज्ज्वलित ] दग्ध । पउल्ल देखी पउल | पउल्ल वि [पक्क] पका हुआ । पउल्लग न [पचनक] रसोई का पात्र । उवि वि [ प्रकुपित ] विशेष कुपित । पउस सक [प्र + द्विष्] द्वेष करना । उस वि [दे] देश-विशेष में उत्पन्न । पउस्स देखो पउस । परहण (अप) देखो पवहण । पऊढ न [दे] गृह | ए अ [] पहले, पूर्व पणियार पुं [प्रैणीचार ] व्याध की एक जाति जो हरिणों को पकड़ने के लिए हरिणी समूह को चराते एवं पालते हैं । पएर पुं [दे] बाड़ का छिद्र । मार्ग । कंठदीनार नामक भूषण - विशेष | गले का छिद्र । आर्त्तस्वर । वि. दुश्शील, दुराचारी । एस पुं [दे] पड़ोसी । एस पुं [ प्रदेश ] जिसका ऐसा सूक्ष्म अवयव । स्थान, जगह । देश का Jain Education International विभाग न कर्म दल का हो सके संचय | एक भाग, पंजमुत्तर - पओग कर्म- द्रव्यों का प्रान्त । परिमाण - विशेष, निरंश - अवयव - परिमित माप । छोटा भाग । परमाणु । णुक | | 'कम्म न ['कर्मन् ] कर्मविशेष, प्रदेश - रूप कर्म । ग्गन [] कर्मों के दलिकों का परिमाण | 'घण वि ['घन ] निबिड प्रदेश | णाम न [ नामन् ] कर्मविशेष | णाम पुं [नाम] परिणाम | 'बंध पुं [° बन्ध] कर्म - दलों का आत्म- प्रदेशों के साथ सम्बन्धन । संकम पुं [° संक्रम] कर्म- द्रव्यों को भिन्न स्वभाव वाले कर्मों के रूप में परिणत करना । पसण न [ प्रदेशन] उपदेश | एस वि [ प्रदेशक] उपदेशक, प्रदर्शक । एसि पुं [ प्रदेशिन्] एक राजा जो श्रीपाश्वनाथ भगवान् के केशि नामक गणधर से प्रबुद्ध हुआ था । एसिणी स्त्री [] पड़ोस में रहनेवाली स्त्री । पए सिणी स्त्री [ प्रदेशिनी] अंगुष्ठ के पास की उँगली, तर्जनी | पएसिय देखी पदेसिय । पओअ पुं [ पयोद ] मेघ । पओअ देखो पओग । पओअण न [ प्रयोजन ] निमित्त कारण । कार्य | मतलब | ओइद (शौ) वि [ प्रयोजित ] जिसका प्रयोग कराया गया हो वह | ओग पुं [ प्रयोग] प्रयोजन | शब्द-योजना | जीव का व्यापार, वेतन का प्रयत्न । प्रेरणा । उपाय | जीव के प्रयत्न में कारण-भूत मन आदि । वाद-विवाद, शास्त्रार्थ । 'कम्म न [कर्मन् ] मन आदि की चेष्टा से आत्मप्रदेशों के साथ बँधनेवाला कर्म । 'करण न. जीव के व्यापार द्वारा होनेवाला किसी वस्तु का निर्माण । किरिया स्त्री [°क्रिया ] मन आदि की चेष्टा । 'फड्डयन [° स्पर्धक ] मन आदि के व्यापार-स्थान की वृद्धि-द्वारा कर्म-पर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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