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________________ ३० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अणंत-अणगारिय बनावटी लिंग आदि। बारह अंग-ग्रन्थों से ; तीर्थंकर का नाम । संसारिय वि [ संसारिक] भिन्न जैन शास्त्र । वि. शरीर-रहित ।। अनन्त काल तक संसार में जन्म-मरण पाने°घरिणी स्त्री [गृहिणी] रति । °पडि- वाला । °सेण पु [°सेन] चौथा कुलकर । सेविणी स्त्री [प्रतिषेविणी] अमर्यादित रीति एक अन्तकृद् मुनि । से विषय-सेवन करनेवाली स्त्री । °पविट्ठ न अणंतइ पु [अनन्तजित्] चालू काल के [प्रविष्ट] बारह अंग-ग्रन्थों से भिन्न जैन चौदहवें जिन-देव । ग्रन्थ । °बाण पु काम के बाण । °लवण पु अणंतग । देखो अणंत । न. वस्त्र-विशेष । [°लवन] रामचन्द्रजी का एक पुत्र । °सर पु अणंतय । पु ऐरवत क्षेत्र के एक जिनदेव । [°शर] काम के बाण । °सेणा स्त्री [ सेना] अणंतर वि [अनन्तर] व्यवधान-रहित । पु, द्वारका की एक विख्यात गणिका। वर्तमान समय । अणंतरहिय वि [अनन्तहित] अव्यवहित । अणंत पू[अनन्त] चालू अवसर्पिणी काल के सजीव, सचित्त, चेतन । चौदहवें तीर्थंकर-देव । विष्णु, कृष्ण । शेष अणंताणुबंधि पु [अनन्तानुबन्धिन्] अनन्त नाग । जिसमें अनन्त जीव हों ऐसी वनस्पति, काल तक आत्मा को संसार में भ्रमण करानेकन्द मूल वगैरह । न. केवल-ज्ञान । आकाश । वाले कषायों की चार चौकड़ियों में प्रथम वि. शाश्वत । निःसीम, अपरिमित । बहुत, चौकड़ी, अतिप्रचंड क्रोध, मान, माया और विशेष । °काइय वि | कायिक] अनन्त लोभ । जीववाली वनस्पति, कन्द-मूल आदि । °काय अणंस वि [अनंश अखण्ड । पु कन्द-मूल आदि अनन्त जीववाली अणक्क पुदे] एक म्लेच्छ देश । एक म्लेच्छ वनस्पति । °खुत्तो अ [कृत्वस्] अनन्त जाति । बार । °जीव पु देखो °काइय। °जीविय अणक्ख पु[दे] क्रोध । लज्जा । वि [ जीविक] देखो 'काइय । °णाण न अणक्खर न [अनक्षर] श्रुत-ज्ञान का एक ["ज्ञान] केवल-ज्ञान । णाणि वि । भेद-वर्ण के बिना संपर्क के, छींकना, [ज्ञानिन] केवल ज्ञानी, सर्वज्ञ । °दंसि वि चुटकी बजाना, सिर हिलाना आदि संकेतों से ['दर्शिन्] सर्वज्ञ । °पासि वि ["शिन] ऐरवत क्षेत्र के बीसवें जिन-देव । °मिस्सिया दूसरे का अभिप्राय जानना । स्त्री [मिश्रिका] सत्यमित्र भाषा का एक अणगार वि अनगार] जिसने घर-बार त्याग भेद; जैसे अनन्तकाय से भिन्न प्रत्येक वनस्पति । __ किया हो वह, साधु, यति, मुनि । घर-रहित, से मिली हुई अनन्तकाय का भी अनन्तकाय भिक्षुक । पु. भरतक्षेत्र के भावी पांचवें कहना। °मीसय न [°मिश्रक] देखो तीर्थंकर का एक पूर्वभवीय नाम । "मिस्सिया। रह पुरथ] विख्यात राजा सुय न [श्रुत] 'सूत्रकृतांग' सूत्र का एक दशरथ के बड़े भाई का नाम । °विजय पु अध्ययन । भरतक्षेत्र के २४वें और ऐरवत क्षेत्र के अणगार वि [ऋणकार] करजा करनेवाला । बीसवें भावी तीर्थंकर का नाम । °वीरिय वि ! दुष्ट शिष्य, अपात्र । [°वीर्य] अनन्त बलवाला। पु एक केवल- अणगार वि [अनाकार] आकाररहित । ज्ञानी मुनि का नाम । एक ऋषि, जो कार्त- अणगारिय वि [आनगारिक] साधु-सम्बन्धी, वीर्य के पिता थे। भरतक्षेत्र के एक भावी मुनि का । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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