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________________ ४०७ णिव्वुड्ढ-णिसल्ल संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिव्वुड्ढ देखो णिवुड्ढ । वहन करने योग्य । णिव्वुड्ढ वि [नियंढ] निर्वाहित, निभाया णिव्बोल सक [कृ] क्रोध से होठ को मलिन हुआ। करना। णिव्वुत्त देखो णिवृत्त । णिस' देखो णिसा। णिव्वुत्त देखो णिव्वत्त = निर्वृत्त । णिस सक [नि + अस्] स्थापन करना । णिव्युत्ति देखो णिव्वत्ति। णिसंत वि [निशान्त] सुना हुआ। अत्यन्त णिव्वुद देखो णिव्वुअ । ठण्ढा । प्रभात । णिव्वुदि देखो णिव्वुइ । णिसंस वि [नृशंस] क्रूर । णिव्वुब्भ' देखो णिव्वह = निर् + वह । णिसग्ग पुं [निसर्ग] स्वभाव, प्रकृति । णिव्वूढ वि [नियंढ] जिसका निर्वाह किया निसर्जन, त्याग। गया हो वह । कृत, निर्मित । जिसने निवोह णिसग्ग वि [नैसर्ग] स्वाभाविक । न. जात्यन्ध किया हो वह, पार-प्राप्त । त्यक्त, परिमुक्त । की तरह स्वभाव से अज्ञता । बाहर निकाला हुआ, निस्सारित । किसी ग्रन्थ । णिसग्गिय वि नैसगिक] स्वाभाविक । से उद्धत कर बनाया हुआ ग्रन्थ । णिसज्ज पं. देखो णिसज्जा। णिव्वूढ वि [दे] स्तब्ध । न. घर का पश्चिम णिसज्जा स्त्री [निषद्या] आसन । उपवेशन, आँगन । बैठना । देखो णिसिज्जा। णिव्वेअ पुं [निर्वेद] मुक्ति की इच्छा। खेद, णिसटू वि [निसष्ट] निकाला हुआ । दिया विरक्ति । संसार को निर्गुणता का अवधारण-निश्चय (ज्ञान) करना। हुआ। णिसट्ट वि [दे] प्रचुर। णिव्वेअण न [निवेदन] खेद, वैराग्य । वि. णिसटू (अप) वि [निषण्ण] बैठा हुआ। वैराग्यजनक । णिसढ पुं [निषध] हरिवर्ष क्षेत्र से उत्तर में णिव्वेट सक [निर् + वेष्टय] नाश करना, स्थित एक पर्वत । एक वानर, राम-सैनिक । क्षय करना । घेरना । बाँधना । बैल, साँढ़ । बलदेव का एक पुत्र । देशणिव्वेढ सक [निर् + वेष्टय] त्याग करना । विशेष । निषध देश का राजा । स्वर-विशेष । मजबूती से वेष्टन करना । कूड न [°कूट] निषध पर्वत का एक णिव्वेढ वि [दे] नग्न । शिखर । दह पुं [°द्रह] द्रह-विशेष । णिव्वेद देखो णिव्वेअ। णिसण्ण वि [निषण्ण] उपविष्ट, स्थित । णिव्वेर वि [निर्वैर] वैर-रहित । कायोत्सर्ग का एक भेद । णिव्वेरिस वि [दे] निर्दय । अत्यन्त, अधिक । णिसण्ण वि [निःसंज्ञ] संज्ञा-रहित । णिव्वेल्ल अक [निर् + वेल्ल्] फुरना, सत्य णिसत्त वि [दे] सन्तुष्ट । ठहरना । स्फूर्ति पाना । साबित होना। णिसम सक [नि + समय] सुनना । णिव्वेस वि [निष] द्वेष-रहित । णिसमण न [निशमन] श्रवण, आकर्णन । णिव्वेस पुं [निर्वेश] लाभ, प्राप्ति । णिसम्म अक [नि+सद्] बैठना। शयन णिव्वेहणिया स्त्री [निर्वेधनिका] वनस्पति- करना। विशेष । |णिसर देखो णिसिर । णिव्वोढव्व वि [निर्वोढव्य] निर्वाह-योग्य, | णिसल्ल देखो णिस्सल्ल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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