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________________ ३६५ ठंभ-ठावय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ठंभ देखो थंभ = स्तम्भ । । रखा हुआ द्रव्य । °मोस पुं[°मोष] न्यास ठकुर । पुं [ठक्कुर] ठाकुर, क्षत्रिय, | की चोरी, न्यास का अपलाप । ठक्कुर राजपूत । ग्राम वगैरह का स्वामी।। ठविआ स्त्री [दे] प्रतिमा, मूर्ति, प्रतिकृप्ति । ठक्कार पुं [ठःकार] '8:' अक्षर । ठविर देखो थविर । ठग । सक [स्थग] बन्द करना, ढकना । ठा अक [स्था] बैठना, स्थिर होना, रहना, गति का रुकाव करना। ठग पुं [ठक] धूर्त । ठाण पुं [दे] मान, अभिमान । ठगिय वि [दे] वञ्चित । ठाण पुंन [स्थान] स्थिति, अवस्थान । स्वरूपठगिय देखो ठइय = स्थगित । प्राप्ति । निवास, रहना । कारण । पयंक आदि ठट्ठार पुं [दे] धातु के बर्तन बनाकर जीविका आसन । भेद । पद, जगह । गुण, पर्याय, चलानेवाला, ठठेरा। धर्म। आश्रय, आधार, वसति, मकान । ठड्ढ वि [स्तब्ध] हक्काबक्का, कुण्ठित, तृतीय जैन अंग ग्रन्थ; 'ठाणांग' सूत्र । जड़। 'ठाणांग' सूत्र का अध्ययन, परिच्छेद । ठप्प वि [स्थाप्य] स्थापनीय । कायोत्सर्ग। भट्ट वि [°भ्रष्ट] अपनी जगह ठय सक [ स्थग् ] बन्द करना, रोकना। से च्युत । चारित्र से पतित । °ाइय वि ठयण [स्थगन] रुकाव, अटकाव । वि. रोकने [°तिग] कायोत्सर्ग करनेवाला । °ायय न [°ायत] ऊंचा स्थान । वाला। ठरिअ विदे] गौरवित । ऊर्ध्व-स्थित । ठाण न [स्थान] कुंकण (कोंकण) देश का एक ठलिय वि [दे] शून्य, रिक्त किया गया ।। नगर । तेरह दिन का लगातार उपवास । ठल्ल वि [दे] दरिद्र । ठाणग न [स्थानक] शरीर की चेष्टा-विशेष । ठव सक [ स्थापय् ] स्थापन करना। ठाणि वि [स्थानिन्] स्थानयुक्त । ठवणा स्त्री स्थापना] प्रतिकृति, चित्र, मूत्ति, ठाणिज्ज वि [दे] सम्मानित । न. गौरव । आकार । स्थापन, सांकेतिक वस्तु ।जैन साधुओं ठाणु देखो खाणु। खंड न [°खण्ड] स्थाणु की भिक्षा का एक दोष, साधु को भिक्षा में | का अवयव । वि. स्थाणु की तरह ऊँचा और देने के लिए रखी हुई वस्तु । सम्मति । __ स्थिर रहा हुआ, स्तम्भित शरीरवाला । पर्युषण, आठ दिनों का जैन पर्व-विशेष । ठाणुक्कडिय । वि [स्थानोत्कटुक] उत्कटुक °कुल पुन. भिक्षा के लिए प्रतिषिद्ध कुल । | ठाणुक्कुडय , आसनवाला। न. आसन°णय पुं [°नय] स्थापन को ही प्रधान | विशेष । माननेवाला मत । °पुरिस पुं [°पुरुष] पुरुष | ठाम ? (अप) । देखो ठाण । की मूर्ति या चित्र । यरिय पुं [°चार्य] जिस वस्तु में आचार्य का संकेत किया जाय ठाय पु [स्थाय] स्थान, आश्रय । वह । °सच्च न [°सत्थ] स्थापना-विषयक ठाव सक [स्थापय्] स्थापन करना, धारण सत्य, जिन भगवान् की मूर्ति को जिन कहना करना, रखना। यह स्थापना-सत्य है। ठावणया) देखो ठवणा। ठवणा स्त्री [स्थापना] वासना । ठावणा । ठवणी स्त्री [स्थापनी] न्यास, न्यास रूप से ठावय [स्थापक] स्थापन करनेवाला। । देखो। ठाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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