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________________ अक्ख-अक्खीण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अक्ख देखो अक्खा = आ + ख्या । अक्खाइया स्त्री आख्यायिका] उपन्यास, अक्खइय वि [आख्यात] उक्त, कथित वार्ता, कहानी। | अक्खाउ वि [आख्यातृ] कहनेवाला। अक्खउहिणी देखो अक्खोहिणी। अक्खाग पु [आख्याक] म्लेच्छों की एक अक्खंड वि [अखण्ड] संपूर्ण । अखण्डित । जाति । निरन्तर, अविच्छिन्न । अक्खाडग ) पु[अक्षवाटक] जूआ खेलने अक्खंडल पुं [आखण्डल] इन्द्र । अक्खाडय 5 का अड्डा । अखाड़ा, व्यायामअक्खड सक [आ + स्कन्द्] आक्रमण करना। स्थान । प्रेक्षकों को बैठने का आसन । अक्खणवेल न [दे] संभोग । संध्या काल । अक्खाण न [आख्यान] कथन, निवेदन । अक्खणिआ स्त्री [दे] विपरीत मैथुन । वार्ता, उपकथा। अक्खम वि [अक्षम] असमर्थ । अनुचित । अक्खाय वि [आख्यात] प्रतिपादित, कथित । अक्खय वि [अक्षत] घावरहित । संपूर्ण । पुं.. न. क्रियापद । ब. अखण्ड चावल । अक्खाय न [अखात] हाथी को पकड़ने के °rयार वि [°चार] निर्दोष आचरणवाला।। लिए किया जाता गढ़ा, खड्डा । . अक्खय वि [अक्षय] क्षय का अभाव । जिसका | अक्खाया स्त्री [आख्याता] एक प्रकार की कभी नाश न हो वह। जैन दीक्षा। °निहि पुन [°निधि] एक प्रकार की तप अक्खि त्रि [अक्षि] आंख । श्चर्या । तइया स्त्री [°तृतीया] वैशाख अक्खिअ वि [आक्षिक] पासा से जुआ खेलनेशुक्ल तृतीया। वाला, जुआड़ी। अक्खर पुन [अक्षर] अक्षर, वर्ण। ज्ञान अक्खिअ वि [आख्यात] प्रतिपादित, कथित । चेतना । वि. नित्य । त्थ पु[र्थि] शब्दार्थ । अक्खितर न [अक्ष्यन्तर] आंख का कोटर । पुट्टिया स्त्री [°पुष्ठिका] लिपिविशेष । अक्खित्त वि [आक्षिप्त] सब तरह से प्रेरित । समास पु अक्षरों का समूह । श्रुत-ज्ञान का व्याकुल । जिस पर टीका की गई हो वह । एक भेद । आकृष्ट । सामर्थ्य से लिया हुआ । अक्खल पु [दे] अखरोट वृक्ष । न. अखरोट | अक्खित्त न [अक्षेत्र] मर्यादित क्षेत्र के बाहर वृक्ष का फल । का प्रदेश । अक्खलिय वि [दे] प्रतिध्वनित । व्याकुल । | अक्खिव सक [आ + क्षिप्] आक्षेप करना, अक्खलिय वि [अस्खलित] अबाधित, निरु- टीका करना, दोषारोप करना। रोकना । पद्रव । अपतित । गँवाना । व्याकुल करना। स्वीकार करना । अक्खवाया स्त्री [दे] दिशा । घबराना। अक्खा सक [आ + ख्या] कहना, बोलना । | अक्खिव सक [आ + क्षिप्] आक्रोश करना। उपदेश देना । प्रतिपादित करना। अक्खीण वि [अक्षीण] क्षयरहित, अखूट । अक्खा स्त्री [आख्या] नाम । परिपूर्ण । महाणसिय वि [°महानसिक] अक्खाय न [आख्यातिक] क्रियापद, क्रिया जिसको निम्नोक्त अक्षीण महानसी शक्ति प्राप्त वाचक शब्द । हुई हो वह । महाणसी स्त्री [°महानसी] वह अक्खाइय वि [अक्षितिक] स्थायी, शाश्वत । । अद्भुत आत्मिक शक्ति जिससे थोड़ा भी Jain Education International : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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