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________________ २९२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष गुट्ठ-गुत्तण्हाण गुट्ट न [दे] स्तम्ब । गुणी पुरुष । °मंत वि [वत्] गुण-युक्त। गुट्ठ देखो गोट । °रयणसंवच्छर न [रत्नसंवत्सर] तपगुट्ठी देखो गोदी। श्वर्या-विशेष । °व, °वंत वि [°वत्] गुणगुड सक [गुड] हाथी को कवच वगैरह से युक्त। व्वय न [व्रत] जैन गहस्थ को सजाना । लड़ाई के लिए तैयार करना, पालने-योग्य व्रत-विशेष । सिलय न सजाना। [°शिलक] राजगृह नगर का एक चैत्य । गुड सक [गुड्] नियन्त्रण करना । °सेढि स्त्री [°श्रेणि] कर्म-पुद्गलों की रचनागुड पुं. गुड़ लाल शक्कर । एक प्रकार का विशेष । °सेण पुं [°सेन] इस नाम का एक कवच । सत्थ न [°सार्थ नगर-विशेष। । प्रसिद्ध राजा। हर वि [°धर] गुणी । गुडदालिअ वि. [दे] पिण्डीकृत । तन्तु-धारक । °ायर पुं [°कर] गुणों की गुडा स्त्री. हाथी का कवच । अश्व का कवच । खान, अनेक गुणवाला। गुडिअ वि [गुडित] कवचित, वर्मित, कृत गुण देखो एगूण। संनाह। "गुण वि. गुना, आवृत्त । गुडिआ स्त्री [गुटिका] गाली । गुणण न [गुणन] गुणकार । ग्रन्थ-परावर्तन, गुडोलद्धिआ स्त्री [दे] चुम्बन । आवत्ति । गुड्डर पुंन [दे] तम्बू, वस्त्र-गृह । गुणयालीस स्त्रीन [ एकोनचत्वारिंशत् ] गुण सक [गुणय] गिनना। आवृत्ति करना, उनचालीस । याद करना। गुणवुड्ढि स्त्री [गुणवृद्धि] लगातार आठ गुण पुं उच्चारण । रसना, मेखला । पुन. गुण, दिनों का उपवास । पर्याय, स्वभाव, धर्म । ज्ञान, सुख वगैरह एक | गुणसेण पुं [गुणसेन] एक जैन आचार्य जो ही साथ रहनेवाला धर्म । ज्ञान, विनय, दान. सुप्रसिद्ध हेमाचार्य के प्रगुरु थे। शौर्य, सदाचार वगैरह दोष-प्रतिपक्षी पदार्थ । । गुणा स्त्री [दे] मिष्टान्न-विशेष । लाभ। प्रशंसा। रज्जू, डोरा । व्याकरण-प्रसिद्ध गुणाविय वि [गुणित] पाठित । ए, आ और अर् रूप स्वर-विकार । जैन गुणिअ वि [गुणित] जिसका गुणा किया गया गृहस्थ को पालने का व्रत-विशेष । रूप, रस, हो वह । चिंतित, याद किया हुआ । पठित । गन्ध वगैरह द्रव्याश्रित धर्म । प्रत्यञ्चा । कार्य, जिस पाठ की आवृत्ति की गई हो वह, पराप्रयोजन । गौण । अंश, विभाग। उपकार । वत्तित । कर वि.लाभ-कारक । कार पुं.गुणा करना, | गुणिल्ल वि [गुणवत्] गुणी । अभ्यास-राशि । °चंद पुं [°चन्द्र] एक गुण्ण देखो गोण्ण । राजकुमार । एक जैन मुनि और ग्रन्थकार । गुण्ह (अप) देखो गिण्ह । श्रेष्ठि-विशेष । 'ट्ठाण न [ स्थान] गुणों का गुत्त न [गोत्र] साधुपन । स्वरूप-विशेष, मिथ्यादृष्टि वगैरह चौदह गुण- गुत्त वि [गुप्त] प्रच्छन्न । रक्षित । स्व-पर की स्थानक । °Bिअ पुं [आर्थिक] गुण को प्रधान | रक्षा करनेवाला, मन वगैरह की निर्दोष माननेवाला मत, नय-विशेष । °ड्ढ वि प्रवृत्तिवाला । एक स्वनाम-प्रसिद्ध जैनाचार्य । [य] गुणवान् । °ण, ‘ण्णु वि [ज्ञ] | गुत्त देखो गोत्त। गुण का जानकार । °पुरिस पुं [°पुरुष] [ गुत्तण्हाण न [दे] पितृ-तर्पण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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