SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५१ कुरुच्च-कुलक्ख संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष न. ग्रहण, उपादान । देखो कुरुविल्ल । नाम । तंतु पुं [तन्तु] कुल-सन्तति । कुरुच्च वि [दे] अप्रिय । °तिलग पुन [°तिलक] कुल में श्रेष्ठ । °स्थ कुरुड वि [दे] निर्दय । निपुण, चतुर । वि [ स्थ] कुलीन । °त्थेर धुं [°स्थविर] कुरुण न [दे] राजा का या दूसरे का धन । । श्रेष्ठ साधु । °दिणयर पुं [°दिनकर] कुल में कुरुमाल सक दे] टटोलना, धीरे-धीरे हाथ श्रेष्ठ । °दीव पुं । °दीप] कुल प्रकाशक । फेरना। °देव पुं [°देव] गोत्र-देवता । 'देवया स्त्री कुरुय न [दे. कुरुक] कपट । [°देवता] गोत्र-देवता। देवी स्त्री. गोत्रकुरुया स्त्री [दे. कुरुका] स्नान । देवी । धम्म पुं ["धर्म] कुलाचार । पव्वय कुरुर देखो कुरर। पुं [°पर्वत] पर्वत-विशेष । °पुत्त पुं [पुत्र कुरुल { [दे] कुटिल केश। वि. निर्दय । वंश-रक्षक पुत्र । 'बालिया स्त्री [°बालिका] निपुण, चतुर । कुलीन कन्या । "भूसण न [भूषण] वंश को कुरुल अक [कु] आवाज करना, कौए का दिपाने या चमकाने वाला। पुं. एक केवली बोलना। भगवान् । मय पुं [ मद] कुल का अभिमान । कुरुव देखो कुरु। °मयहरिया, महत्तरिया स्त्री [°महत्तकुरुवग देखो कुरवय। रिका] कुटुम्ब की मुखिया । °य देखो "ज । कुरुविंद पुं. मणि-विशेष, रत्न की एक जाति । | रोग पुं. कुल व्यापक रोग । वइ पुंपति] प्रधान संन्यासी । °वंस पुं [°वंश] कुल रूप तृण-विशेष । कुटिलिक-नामक रोग, एक वंश । °वंस पं | वंश्य] कुल में उत्पन्न । प्रकार का जंघा रोग । वित्त पुंन [वर्त] वडिसय पुं [वितंसक] कुल-भूषण, कुलभूषण-विशेष । कुरुविंदा स्त्री [कुरुविन्दा] इस नाम की एक दीपक । वहू स्त्री [°वधू] कुलीन स्त्री। °संपण्ण वि [°सम्पन्न] कुलीन । °समय पुं. वणिग्भार्या । कुलाचार । °सेल पुं [शैल] कुल-पर्वत । कुरुविल्ल [दे] देखो कुरुचिल्ल । °सेलया स्त्री [शैलजा] कुल-पर्वत से कुल पुंन. वंश, जाति । पैतृक वंश । कुटुम्ब ।। निकली हुई नदी । 'हर न [गृह] पितृगृह । सजातीय समूह । गोत्र । एक आचार्य की जीव वि. अपने कुल की बड़ाई बतला कर सन्तति । घर । सान्निध्य, सामीप्य । ज्योतिष आजीविका प्राप्त करनेवाला । "य न. नीड़ । शास्त्र-प्रसिद्ध नक्षत्र-संज्ञा । °उव्व पुं[°पूर्व] | यार पुं [°ाचार] वंश-परम्परा से चला पूर्वज । °कम पुं [क्रम] कुलाचार । कर आता रिवाज । °ारिय पुं [°ार्य] पितृ-पक्ष देखो नीचे गर । कोडि स्त्री [°कोटि] की अपेक्षा से आर्य । °ालय वि. गृहस्थों के जाति-विशेष । “क्कम देखो कम । °गर पुं| घर भीख मांगनेवाला। [°कर] कुल की स्थापना करनेवाला, युग के प्रारम्भ में नीति वगैरह की व्यवस्था करने कुलंकर पुं [कुलङ्कर] इस नाम का एक राजा । वाला महापुरुष । गेह न [°गृह] पितृ-गृह । 'घर न [°गृह] पितृ गृह । °ज वि [ज] | कुलप पुं[कुलम्प] इस नाम का एक अनार्य कुलीन । °जाय वि [°जात] खानदानी कूल देश । उसमें रहनेवाली जाति । का । "जुअ वि [°युत] कुलीन । °णाम न | कुलकुल देखो कुरकुर । [नामन्] कुल के अनुसार किया जाता | कुलक्ख पुं [कुलक्ष] एक म्लेच्छ देश । उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy