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________________ २१८ कपंध देखो कमन्ध | कपिंजल पुं. चातक । गौरा पक्षी । कपूर देखो कप्पूर | संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष कप्प अक [कृप्] समर्थ होना । कल्पना, में आना । सक. काटना । काम कप्प सक [ कल्पय् ] करना, बनाना । वर्णन करना । कल्पना करना । कप्प वि [ कल्प्य ] ग्रहण-योग्य | कप्प पुं [कल्प ] प्रक्षालन | आचार, व्यवहार । दशाश्रुतस्कन्धसूत्र | कल्पसूत्र | व्यवहारसूत्र | वि. उचित | ° काल पुं. प्रभूत काल | 'धर वि. कल्प तथा व्यवहार सूत्र का जान कार । Jain Education International कप्प पुं [कल्प ] काल- विशेष, देवों के दो हजार युग परिमित समय । शास्त्रोक्त विधि, अनुष्ठान | शास्त्र - विशेष । कम्बल - प्रमुख उपकरण | देवों का स्थान, बारह देवलोक । बारह देवलोक । निवासी देव, वैमानिक देव | कल्पवृक्ष | शस्त्र - विशेष | अधिवास स्थान । राजा नन्द का एक मन्त्री | वि. समर्थ, शक्तिमान् । सदृश । °ट्ठ पुं [°स्थ] बालक । "ठ्ठि स्त्री [स्थिति] साधुओं का शास्त्रोक्त अनुष्ठान | °ट्टिया स्त्री [स्थिका ] बालिका | तरुण स्त्री । "ट्ठी स्त्री [स्था ] लड़की | कुल-वधू | 'तरु पुं. कल्पवृक्ष । 'त्थी स्त्री ['स्त्री] देवी । दुमदुम [म] कल्प वृक्ष | 'पायव पुं [° पादप] कल्पवृक्ष | 'पाहुड न[ प्राभृत] जैन ग्रन्थ-विशेष | 'रुक्ख पुं | 'वृक्ष ] कल्प वृक्ष | ' वडिसय न [वितंसक) विमान विशेष । विमानवासी देव - विशेष । ' वडिसया स्त्री [rai सिका] जैन ग्रन्थ-विशेष, जिसमें कल्पावतंसक देव- विमानों का वर्णन है । विवि पुं [विपिन्] कल्प वृक्ष । 'साल पुं ['शाल ] कल्प वृक्ष । साहि पुं [शाखिन् ] कल्प वृक्ष | 'सुत न [सूत्र ] श्रीभद्रबाहु स्वामि-विरचित एक जैन ग्रन्थ । कपंध- कप्पोवग सुय [ श्रुत] ज्ञान - विशेष | ग्रन्थ - विशेष | अपुं [ती] उत्तम जाति के देवविशेष, ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान के निवासी देव | ग पुं [क] विधि को जाननेवाला । य पुं. चुङ्गी, राज-देय भाग । कप्पंत पुं [कल्पान्त ] प्रलय-काल । कप्पड पुं [कर्पट] वस्त्र । जीर्ण वस्त्र, कार कपड़ा । कपडि मायावी । लकुटा वि [काटिक] भिक्षुक, कपटी, कप्पणा स्त्री [कल्पना ] रचना, निर्माण । प्ररूपण निरूपण । कल्पना विकल्प | कप्पणी स्त्री [कल्पनी] कैंची । कप्पर पुं [कर्पर] खप्पर, सिर की खोपड़ी । देखो कुप्पर = कर्पर । परिअ वि [दे] दारित | कप्पास पुं [ कार्पास] कपास, रुई, ऊन 1 कप्पासत्थि पुं [ कार्पासास्थि] त्रीन्दिय जीवविशेष, क्षुद्र जन्तु विशेष | कप्पासिअ वि [कार्पासिक ] कपास बेचनेवाला | न. जैनेतर शास्त्र - विशेष । कपास का बना हुआ, सूती वगैरह । कप्पासी स्त्री [कर्पासी] रुई का गाछ । कपिआकप्पिअन [कल्पाकल्प ] एक जैन शास्त्र । कप्पिय वि [कल्पित ] रचित, निर्मित । स्थापित, समीप में रखा हुआ । कल्पनानिर्मित, विकल्पित । व्यवस्थित | छिन्न काटा हुआ । कप्पिय वि [कल्पिक] अनुमत, अनिषिद्ध | योग्य । पुं. गीतार्थ, ज्ञानी साधु । कप्पिया स्त्री [कल्पिका ] जैन ग्रन्थ- विशेष, एक उपाङ्ग-ग्रन्थ | कपूर [कर्पूर] कपूर । कप्पोवग पुं [कल्पोपक] कल्प-युक्त । बारह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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