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________________ २१० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष कच्छा-कट्ट खाना । संशय-कोटि । स्पर्धा-स्थान । घर की कजला स्त्री. इस नाम की एक पुष्करिणी । भीत । प्रकोष्ठ । कजलाव अक [वुड डूबना। कच्छा स्त्री. कटि-मेखला । वई स्त्री [°वती] कजलिअ देखो कज्जलइअ । देखो कच्छगावई। °वईकूड न [°वतीकूट] कजव पुंदे] विष्ठा, मैला । तृण वगैरह महाविदेह वर्ष में स्थित ब्रह्मकूट पर्वत का एक : कज्जवय का समूह , कूड़ा। शिखर । कज्जिय वि [कार्यिक] कार्यार्थी, प्रयोजनार्थी । कच्छादब्भ पुंदे. कक्षादर्भ] रोग-विशेष । कजोवग पं [कार्योपग] अठासी महाग्रहों में कच्छु स्त्री [कच्छू] खुजली, खाज । खाज को एक ग्रह का नाम । उत्पन्न करनेवाली औषधि, कपिकच्छु । °ल, कज्झाल न [दे] सेवाल । ल्ल वि [मत्] खाज रोगवाला। कटरि (अप) अ [कटरे] इन अर्थों का द्योतक कच्छुट्टिया स्त्री [दे. कच्छपटिका] कछौटी । अव्यय-आश्चर्य । प्रशंसा । लँगोटी। कटार (अप) न [दे] छुरी। करिअ वि [दे] इर्षित । न. ईर्ष्या ।। कट्ट सक [कृत्] काटना, छेदना । कच्छुरिअ वि [कच्छुरित] व्याप्त, खचित । कट्ट वि [कृत्त] काटा हुआ, छिन्न । कच्छुरी स्त्री [दे] कपिकच्छ , केवाच । | कद्र न [कष्ट] दुःख । वि. कष्ट-कारक । कच्छुल पुं. गुल्म-विशेष । कट्टर पंन [दे] कढ़ी में डाला हुआ घी का कच्छुल्ल पुं. स्वनामख्यात एक नारद-मुनि । बड़ा। कच्छू देखो कच्छु। कट्टर न [दे] खण्ड, अंश, टुकड़ा । कच्छोटी स्त्री [दे] कछौटी, लँगोटी। कट्टराय न [दे] छुरी। कज वि [कार्य] जो किया जाय वह । करने- कटारी स्त्री दे] छरी । योग्य । न. प्रयोजन । कारण । काम । जाण कट्रिअ वि [त्तित] काटा हुआ, छेदित । वि [°ज्ञ] कार्य को जाननेवाला । °सेण पुं कटु वि [कत] कर्ता । [°सेन] अतीत उत्सर्पिणीकाल में उत्पन्न | कट्टु अ [कृत्वा] करके । स्वनामख्यात एक कुलकर पुरुष । कट्टोरग पुं [दे] कटोरा । प्याला, पात्र विशेष । कन्जआ (शौ) स्त्री [कन्यका] कन्या । कट्ठ न [कष्ट] दुःख, पीड़ा । पाप । वि. कष्टकजउड पुं[दे] अनर्थ । दायक । °हर न [°गृह] कठघरा । कन्जमाण वि [क्रियमाण] जो किया जाता कट्ठ न [काष्ठ] काठ, लकड़ी। पुं. राजगृह हो वह । नगर का निवासी एक स्वनाम-ख्यात श्रेष्ठी । कजल न. काजल । सुरमा । °प्पभा स्त्री °कम्मत न [°कर्मान्त] लकड़ी का कार[प्रभा] सुदर्शना-नामक जम्बू-वृक्ष की उत्तर खाना । करण न. श्यामक-नामक गृहस्थ के दिशा में स्थित एक पुष्करिणी। एक खेत का नाम । °कार पुं. काष्ठ-कर्म से कजलइअ वि [कजलित] काजलवाला । जीविका चलानेवाला। कोलंब पुं श्याम । [°कोलम्ब] वृक्ष की शाखा के नीचे झुकता कन्जलंगी स्त्री [कजलाङ्गी] कज्जल-गृह, हुआ अग्र-भाग । “खाय पुं ["खाद] कीट. दीप के ऊपर रखा जाता पात्र, जिसमें काजल | विशेष, घुण । 'दल न. रहर की दाल । इकट्ठा होता है। °पाउया स्त्री [°पादुका] खड़ाऊँ। पुत्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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