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________________ १७६ उवसंपज्ज [ उपसं + पद् । समीप में जाना । स्वीकार करना । प्राप्त करना । उवसंपण्ण वि [ उपसंपन्न ] प्राप्त । समीप-गत । उवसंपया स्त्री [ उपसंपद् ] ज्ञान वगैरह की प्राप्ति के लिए दूसरे गुर्वादि के पास जाना । अन्य गुरु आदि की सत्ता का स्वीकार करना । लाभ । उवसंहर सक [ उपसं + हृ] हटाना । सङ्केलना । समेटना । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उवसंहार पुं [ उपसंहार ] सङ्कोचन, समेट | समाप्ति । उपनय । उवसंहार पुं. उपसंहार । उवसग्ग पुं [ उपसर्ग ] उपद्रव, बाधा । अव्यय - विशेष, जो धातु के पूर्व में जोड़े जाने से उस धातु के अर्थ की विशेषता करता है । उवसग्ग वि [दे] मन्द, आलसी । उवसज्ज अक [ उप + सृज् ] आश्रय करना । उवसज्जण न [ उपसर्जन ] गौण । सम्बन्ध | उवसत्त वि [ उपसक्त ] विशेष आसक्तिवाला । उवसद्द पुं [ उपशब्द ] सुरत समय का शब्द । प्रच्छन्न शब्द | समीप का शब्द | उवसप्प सक [ उप + सृप् ] समीप जाना । उवसम पुं [ उप + शम् ] क्रोध-रहित होना । शान्त होना । ठण्ढा होना । नष्ट होना । उवसम पुं [उपशम] क्रोध का अभाव, क्षमा । इन्द्रिय - निग्रह | पन्द्रहवाँ दिवस | मुहूर्त्तविशेष । 'सम्म न [ सम्यक्त्व] सम्यक्त्व - विशेष | उवसमणा स्त्री [ उपशमना] आत्मिक प्रयत्नविशेष, जिससे कर्म - पुद्गल उदय उदीरणादि के अयोग्य बनाए जाँय वह । उवसमिअ पुं [ औपशमिक ] कर्मों का उपशम । उवसमय वि [ औपशमिक ] उपशम से होनेवाला । उपशम से सम्बन्ध रखनेवाला । उवसाम सक [ उप + शमय् ] शान्त करना । रहित करना । उवसाम पुं [उपशम] उपशान्ति । Jain Education International उवसाम देखो उवसम । उवसामग वि [ उपशमक] क्रोधादि को उपशान्त करनेवाला । उपशम से सम्बन्ध रखने उवसं पज्ज-उवह वाला । उवसामय देखो उवसामग । उवसामिय वि [ औपशमिक ] उपशमसम्बन्धी । पुं. भाव-विशेष । न. विशेष | सम्यक्त्व उवसाह सक [ उप + कथ् ] कहना । उवसाहण वि [ उपसाधन ] निष्पादक । उवसायि वि [ उपसाधित] तैयार किया हुआ । उवत्ति वि [ उपसिक्त ] छिड़का हुआ । उवसिलोअ सक [ उपश्लोकय् ] वर्णन करना, प्रशंसा करना । उवसुत वि [ उपसुप्त ] सोया हुआ । वसुद्ध वि [ उपशुद्ध] निर्दोष । वसूयवि [ उपसूचित ] संसूचित । उवसेर वि [दे] रति-योग्य | उवसेवण न [ उपसेवन ] सेवा, परिचय | उपसेवय वि [ उपसेवक ] सेवा करनेवाला, भक्त । उवसोभ अक [ उप + शुभ्] शोभना । उवसोहा स्त्री [ उपशोभा ] शोभा । उवसोहिय वि [ उपशोधित] निर्मल किया हुआ । उवसग्ग देखो उवसग्ग । उवस्य पुं [ उपाश्रय ] जैन साधुओं के निवास करने का स्थान । उवस्सा स्त्री [ उपश्रा ] द्वेष । उवस्य वि [ उपाश्रित] द्वेषी । अङ्गीकृत समीप में स्थित । न द्वेष | उवस्सुदि स्त्री [ उपश्रुति] प्रश्न - फल को जानने के लिए ज्योतिषी को कहा जाता प्रथम वाक्य । उवहस [ उभय ] दोनों, युगल । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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