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________________ उवधायग-उवठावणा संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष १७१ उवधायग वि [उपघातक] विनाशक । उवजिण सक [उप+अर्ज ] उपार्जन करना । उवचय पुं [उपचय] वृद्धि । समूह । शरीर । उवज्झय । पुं । उपाध्याय ] अध्यापक । इन्द्रिय-पर्याप्ति । पुष्टि । उवज्झाय । सूत्राध्यापक जैन मुनि को दी उवचर सक [उप+ चर] सेवा करना । समीप | __ जाती एक पदवी। में घूमना-फिरना । आरोप करना । समीप में | उवज्झिय वि [दे] आकारित, बुलाया हुआ। खाना। उपद्रव करना। उपासना करना, उवझाय देखो उवज्झाय । उपचार करना। उवट्टण देखो उव्वट्टण। उवचर सक [उप+ चर् ] व्यवहार करना। उवट्टणा देखो उव्वट्टणा । उवचरय वि [उपचरक]सेवा के बहाने से दूसरे | उवट्ठ वि [उपस्थ। एक स्थान में सतत अव का अहित करने का मौका देखनेवाला। पुं. स्थित । °काल पुं. आने की वेला । जासूस । उवटुंभ पुं [उपष्टम्भ] अवस्थान । अनुकम्पा । उवचरिय वि [उपचरित] कल्पित । उवटुप्प वि [ उपस्थाप्य ] उपस्थित करने उवचि सक [उप + चि] इकट्ठा करना । पुष्ट __ योग्य । व्रत-दीक्षा के योग्य । करना। उवट्ठव सक [ उप + स्थापय् ] युक्ति से उवचिट्ट सक [उप+ स्था] उपस्थित होना, संस्थापित करना । उपस्थित करना । व्रतों समीप आना। का आरोपण करना, दीक्षा देना। उवचिणिय । वि [ उपचित ] पुष्ट, पीन । उवट्ठवणा स्त्री [उपस्थापना] चारित्र-विशेष, उवचिय " स्थापित, निवेशित । उन्नति । एक प्रकार की जैन दीक्षा । शिष्य में व्रत की व्याप्त । बढ़ा हुआ । स्थापना। उवच्चया स्त्री [उपत्यका] पर्वत के पास की | | उवट्ठवणीय वि [उपस्थापनीय] देखो नीची जमीन। उपटुप्प। उवच्छंदिद (शौ) वि [ उपच्छन्दित ] उवढ़ा सक [उप+स्था] उपस्थित होना। अभ्यथित । उवट्ठाण न [उपस्थान] बैठना, व्रत-स्थापन । उवजंगल वि [दे] दीर्घ । एक ही स्थान में विशेष काल तक रहना, उवजा अक [उप+जन्] उत्पन्न होना। अनुष्ठान, आचार । 'दोस पुं [°दोष] उवजाइ स्त्री [उपजाति] छन्द-विशेष । नित्यवास दोष । °साला स्त्री [°शाला] उवजाइय देखो उवयाइय। सभा-स्थान । उवजाय वि [उपजात] उत्पन्न । उवट्ठाणा स्त्री [उपस्थाना] जिसमें जैन साधुउवजीव सक [ उप + जीव ] आश्रय लेना। लोग एक बार ठहर कर फिर भी शास्त्रउवजीवग वि [उपजीवक] आश्रित । निषिद्ध-अवधि के पहले ही आकर ठहरें वह उवजीवि वि [उपजीविन्] आश्रय लेनेवाला। स्थान। उपकारक। उवट्ठाव देखो उवट्ठव। उवजोइय वि [उपज्योतिष्क] अग्नि के समीप | उवट्ठावणा देखो उवट्ठवणा। में रहनेवाला । पाक-स्थान में स्थित । न । समीप स्थित उवन अक [उत् + पद्] उत्पन्न होना। तैयार । आश्रित । मुमुक्षु । उवजण न [उपार्जन कमाना। उवठावणा देखो उवट्ठवणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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