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________________ उप्पइअ - उप्पायणा उप्पइअ वि [उत्पाटित] उत्थापित। उठाया हुआ । उ समूह | उपंग [दे] समूह | उपज्ज अक [ उत् + पद्] उत्पन्न होना । उप्पड सक [उत् + पत्] उड़ना, ऊँचा जाना, कूदना । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष [] अत्यन्त । पुं. कीचड़ । उन्नति । उप्पड पुं [उत्पट] क्षुद्र कीट - विशेष । उम्पडिअ देखो उप्पइअ । - उत्पाद । उप्पण सक [उत् + पू] धान्य वगैरह को सूप उप्पह पुं [ उत्पथ ] उन्मार्ग, कुमार्ग । ° जाइ वि ['यायित्] उलटे रास्ते जानेवाला । उप्पा स्त्री देखो उप्पाय उपात्तु वि [उत्पादयितृ] उत्पादक । उप्पाइय न [ औत्पातिक ] भूकम्प आदि उत्पातों का सूचक शास्त्र । अस्वाभाविक । आकस्मिक । उत्पात । आदि से साफ-सुथरा करना । उप्पण्ण वि [ उत्पन्न ] उत्पन्न । उप्पत्त व [] गलित । विरक्त । उपपत्तिवि [उत्पत्ति ] उत्पत्ति । उपपत्तिया स्त्री [ औत्पत्तिकी ] बुद्धि-विशेष, बिना शास्त्राभ्यासादि के ही होनेवाली बुद्धि | उप्पय सक [उत् + पत्] उड़ना, कूदना । उप्पय देखो उप्पव । उप्पय पुं [ उत्पात ] ऊंचे जाना, कूदना, उड्डयन । उत्पत्ति । निवय पुं [निपात] ॐचा - नीचा होना । नाट्य-विधि का एक प्रकार । १६१ उप्पला स्त्री [ उत्पला ] एक इन्द्राणी । इस नाम का 'ज्ञाताधर्मकथा' का एक अध्ययन | स्वनामख्यात एक श्राविका । एक पुष्करिणी । उप्पली स्त्री [उत्पलिनी ] कमलिनी । उप्पल्ल वि [दे] अध्यासित आरूढ़ । उपवसक [ उत् + प्लु] लाँघना, तैरना । ऊँचा जाना, उड़ना । उपas a [ उत्प्रव्रजित] जिसने दीक्षा छोड़ दो हो वह | उलटा क्रम । उप्परोप्पर अ [ उपर्युपरि ] ऊपर-ऊपर | उप्पल न [उत्पल] कमल । विमान- विशेष । संख्या - विशेष | सुगन्धि - द्रव्य - विशेष । पुं. परिव्राजक विशेष | द्वीप - विशेष | समुद्रविशेष | वेंटग पुं [वृन्तक] आजीविक मत का एक साधु-समाज | उप्पलंग न [उत्पलाङ्क] संख्या - विशेष, 'हुहुय' लाख से ( समय की माप - विशेष) को चौरासी गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह । २१ Jain Education International उप्पाड सक [उत् + पाटय् ] ऊपर उठाना । उन्मलन करना । उत्खनन करना । उत्थापन करना । उपयण न [ उत्प्लवन] तैरना । उप्पणी स्त्री [ उत्पतनी] विद्या - विशेष | उप्पर (अप) देखो उवरि । उपाय पुंन [ उत्पात] उत्पतन, ऊर्ध्व-गमन | आकस्मिक उपद्रव । निमित्त - शास्त्र - विशेष | ● निवाय पुं [° निपात] चढ़ना और उतरना । उपरिवाडि, डी स्त्री [ उत्परिपाटि, °टी] उप्पाय पुं [ उत्पाद] उत्पत्ति । पव्वय पुं [पर्वत] एक प्रकार के पर्वत जहाँ आकर कई व्यन्तर-जातीय देव देवियां क्रीड़ा के लिए विचित्र प्रकार के शरीर बनाते हैं । 'पुव्व न [ पूर्व ] प्रथमपूर्व, बारहवें जैन अङ्ग-ग्रन्थ का एक भाग । उपासक [ उत् + पादय् ] उत्पन्न करना । उप्पादअ वि [ उत्पादक ] उत्पन्नकर्त्ता । उपासक [ उत् + पादय् ] उत्पन्न करना, बनाना । उपार्जन करना । उपायग वि [ उत्पादक ] उत्पन्न करने वाला । कीट - विशेष | उप्पायण न [ उत्पादन ] उत्पादन, उपायणया उपायणा उपार्जन | स्त्री [उत्पादना] उपार्जन, उत्पन्न करना । जैन साधु की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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