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________________ १५२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उड्ढं-उत्तुइय विशेष, आठ । लोग, लोय लोक] मानी । गर्व । स्वर्ग, देव-लोक । °वाय पुं [°वात] ऊँचा उण्णय पुं [उन्नय] नीति का अभाव । गया हुआ वायु । उण्णा स्त्री [ऊर्णा] ऊन, भेड़ के रोम । उड्ढं ऊपर देखो। °पिपीलिया स्त्री [°पिपीलिका] चींटी।। उड्ढंक न [दे] मार्ग का उन्नत भू-भाग ।। उण्णाअक वि [उन्नायक] उन्नति-कारक । पुंन. उड्ढल । पुं [दे] उल्लास, विकास । छन्दःशास्त्र प्रसिद्ध मध्य-गुरु चतुष्कल की उड्ढल्ल संज्ञा। उड्ढविय वि [ऊध्वित] ऊँचा किया हुआ । उण्णाग [उन्नाक] ग्राम-विशेष । उडढा स्त्री [ऊर्वा] ऊर्ध्व-दिशा । उण्णाम पुं [उन्नाम] उन्नति, ऊँचाई । अभिउड्ढि (दे] देखो उद्धि। मान । गर्व का कारण-भूत कर्म । उड्ढि देखो वुड्ढि । उण्णाम सक [उद् + नमय] ऊँचा करना । उड्ढि देखो इद्धि । उण्णाल सक [उद् + नमय] ऊँचा करना। उण्णालिय वि [दे] कृश । उन्नमित । उड्ढिय देखो उद्धरिअ = उद्धृत । उण्णिअ वि [उन्नीत] वितर्कित, विचारित । उड्ढिया स्त्री (दे] पात्र-विशेष । कम्बल उण्णिअ वि [औणिक] ऊन का बना हुआ। वगैरह ओढ़ने का वस्त्र । उण्णिद्द वि [उन्निद्र] विकसित, उल्लसित । उणं देखो पुण = पुनर् । निद्रा-रहित । उण न [ऋण] करजा। उण । उण्णी सक [उद् + नी] ऊँचा ले जाना। उणा | देखो पुण। कहना। उणाइ उण्णुइअ पुं [दे] हुँकार । आकाश की तरफ उणपन्न स्त्रीन [एकोनपञ्चाशत् उनचास । | मुंह किए हुए कुत्ते की आवाज । वि. गर्वित । उणाइ पुं [उणादि] व्याकरण का एक | उण्ह पुं [उष्ण] गरमी । वि. तप्त । प्रकरण । उण्हवण न [उष्णन] गरम करना। उणाइ पुं [दे] प्रिय, पति, नायक । उण्हिआ स्त्री [दे] कृसर, खिचड़ी। उणो देखो पुण। उण्हीस पुंन [उष्णीष] पगड़ी, मुकुट । उण्ण न [ऊर्ण]भेड़ या बकरी के रोम, रोआँ । उण्होदयभंड पुं [दे] भमरा । °कप्पास पुं [°कापास] ऊन । °णाभ पुं उण्होला स्त्री [दे] कोट-विशेष । [°नाभ] मकड़ी। उताहो अ [उताहो] अथवा । °उण्ण देखो पुण्ण = पूर्ण । उत्त वि [उक्त] कथित ।। उण्णअ सक [उद्+नद्] पुकारना, आह्वान | उत्त वि [उप्त] बोया हुआ। निष्पादित, करना। उत्पादित । उण्णइ स्त्री [उन्नति] अभ्युदय ।। पति-विशेष । उण्णम अक [उत् + नम्] ऊँचा होना, उन्नत | °उत्त वि [गुप्त] रक्षित । होना। उत्त देखो पुत्त । उण्णम वि [दे] समुन्नत, ऊंचा।। उत्तइय। वि [उत्तेजित] । उण्णय वि [उन्नत] ऊँचा । गुणवान् । अभि- | उत्तुइय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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